खेल की खबरें | मनु की कहानी : गीता से प्रेरणा, सामुदायिक सेवा के लिए 400 यूरो का जुर्माना, तोक्यो से सबक

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Sports at LatestLY हिन्दी. ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ गीता का यह सार मनु भाकर ने आत्मसात कर लिया था और इसी ने ओलंपिक में पदक की राह में कदम कदम पर उनकी प्रेरणा का काम किया ।

शेटराउ (फ्रांस), 28 जुलाई ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ गीता का यह सार मनु भाकर ने आत्मसात कर लिया था और इसी ने ओलंपिक में पदक की राह में कदम कदम पर उनकी प्रेरणा का काम किया ।

एक शीर्ष खिलाड़ी को वर्षों की मेहनत और पसीने के बाद ओलंपिक पदक जीतने का मौका मिलता है जो 22 साल की निशानेबाज मनु भाकर के लिए भी अलग नहीं था । मानसिक तैयारी के लिए उन्होंने तोक्यो के कड़वे अनुभव के बाद से ‘भगवद गीता’ पढ़ना शुरू किया जिससे अब वह कर्म करने में विश्वास करती हैं।

मनु ने कहा, ‘‘तोक्यो के बाद मैं धार्मिक हो गई हूं लेकिन बहुत ज्यादा नहीं (हंसते हुए कहा)। मेरा मानना ​​है कि एक ऊर्जा है जो हमारा मार्गदर्शन करती है और हमारी रक्षा करती है। और हमारे चारों ओर एक आभा है जो उस ऊर्जा से बढ़ती है। मुझे लगता है कि हमें उस ईश्वर पर थोड़ा विश्वास होना चाहिए जिसने हमें बनाया है।’’

उन्हें उच्च दबाव वाले फाइनल में गीता के श्लोक याद आ रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘गीता का सबसे मशहूर श्लोक है कि परिणाम की चिंता मत करो, बस लगन से काम करते रहो। फाइनल में मेरे दिमाग में बस यही चल रहा था।

हरियाणा के झज्जर में जन्मी मनु 2018 युवा ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने के बाद सुर्खियों में आईं। इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई पदक जीते। अपने पहले ओलंपिक में मिली निराशा के बाद उन्होंने रविवार को 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर आखिरकार अपना सपना साकार कर लिया।

एक ऐसे देश में जहां ओलंपिक पदक गिने चुने ही हैं तो कांस्य पदक भी सोने के बराबर ही लगता है। मनु ने अपने दूसरे ओलंपिक की तैयारी के लिए कोच जसपाल राणा द्वारा तैयार की गई दिनचर्या का पालन किया।

तोक्यो ओलंपिक के सबक के साथ दुनिया भर में चल रही कड़ी ट्रेनिंग का तरीका उनके लिए अहम रहा।

मनु को दबाव से निपटने में स्टैंड में खड़े कोच राणा की मौजूदगी से भी ताकत मिली। उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में राणा के साथ फिर से जुड़ने से वह एक बेहतर एथलीट बन गई हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘जसपाल सर की ओर से देखने से मुझे हिम्मत मिलती है। हमने साथ मिलकर जो भी कड़ी मेहनत की, उसका यह नतीजा निकला है। ’’

तोक्यो ओलंपिक में क्वालीफिकेशन के दौरान पिस्टल में खराबी ने उन्हें निराश कर दिया था और मनु का कहना है कि अगर वह दर्दनाक अनुभव नहीं होता तो वह पोडियम पर खड़ी नहीं होती।

उन्होंने कहा, ‘‘तोक्यो में चीजें निश्चित रूप से योजना के अनुसार नहीं रही थीं लेकिन कहीं न कहीं मैं लापरवाह रही। मैं किसी न किसी कारण से पीछे रह गई। मुझे लगता है कि अगर आप कुछ नहीं जीत सकते तो आप उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। अगर तोक्यो का सबक नहीं होता तो मैं आज यहां नहीं होती। ’’

राणा ने मनु के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किये हुए थे और अगर वह अपने कोच द्वारा दिये गये स्कोर को बनाने में विफल रहती तो उन्हें जुर्माना भरना पड़ता जिसका इस्तेमाल दुनिया भर के जरूरतमंदों की मदद के लिए किया जाता।

मनु ने कहा, ‘‘उनका काम करने का तरीका बाकियों से काफी अलग है। आमतौर पर वह एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं और अगर आप उतना स्कोर करते हैं तो ठीक है। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘और अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो उस स्कोर में जो अंक कम थे तो आपको उतना ही दान करना होता। मान लीजिए हमने 582 स्कोर का लक्ष्य बनाया और मैंने 578 स्कोर बनाया तो वो चार अंक 40 यूरो के बराबर होंगे। कभी कभी देश के हिसाब से 400 यूरो भी हो जाते। ’’

राणा ने कहा, ‘‘मुझे याद है कि एक बार देहरादून में उन्होंने गायों को खिलाने के लिए हजारों रुपये का गुड़ खरीदा था। इस पैसे का इस्तेमाल दुनिया भर के भिखारियों को खिलाने में भी किया जाता है। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘हाल में हम लक्जमबर्ग में थे और उन्होंने एक रेस्तरां में कलाकारों को 40 यूरो दिये। ’’

मनु अभी आराम करने के मूड में नहीं है, वह महिलाओं की 25 मीटर पिस्टल और 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम स्पर्धाओं में पदक की उम्मीद लगाये है।

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