देश की खबरें | कीमो-प्रतिरोधी ट्यूमर से ग्रस्त व्यक्ति को दिल्ली के अस्पताल में सर्जरी के बाद मिला नया जीवन

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. दिल्ली के एक निजी अस्पताल में कीमो-प्रतिरोधी ट्यूमर से ग्रस्त 51 वर्षीय व्यक्ति को सर्जरी के बाद नए सिरे से जिंदगी जीने का अवसर मिला है।

नयी दिल्ली, 23 जुलाई दिल्ली के एक निजी अस्पताल में कीमो-प्रतिरोधी ट्यूमर से ग्रस्त 51 वर्षीय व्यक्ति को सर्जरी के बाद नए सिरे से जिंदगी जीने का अवसर मिला है।

अस्पताल के अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि वाई आकार के श्वासनली-ब्रोंकियल स्टेंट का इस्तेमाल कर यह ऑपरेशन किया गया।

चिकित्सकों ने कहा कि मरीज की श्वासनली में आवर्तक कीमो-प्रतिरोधी कैंसर था जो कैरीना (श्वासनली द्विभाजक) तक फैला हुआ था और इसमें दाहिना ऊपरी भाग भी शामिल था। अस्पताल ने एक बयान में कहा कि शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल के निदेशक एवं श्वसन रोग विभाग के प्रमुख डॉ. विकास मौर्य के नेतृत्व में चिकित्सकों के एक दल ने हाल ही में 30 मिनट के अंदर स्टेंट डालने की इस प्रक्रिया को अंजाम देकर मरीज की जिंदगी को बढ़ा दिया।

चिकित्सकों ने कहा कि जब मरीज आया था तो उसकी हालत देखकर लग रहा था कि वह कुछ दिन या हफ्ते ही जी पाएगा और वह चार अलग-अलग अस्पतालों में अपनी बीमारी के इलाज की कोशिश कर चुका था।

बयान में कहा गया, “परीक्षण के बाद, यह पाया गया कि उसकी छाती में आवर्तक संक्रमण है, सांस लेने में तकलीफ और हेमोटाइसिस (खांसी के साथ खून आने की समस्या) भी है। कीमोथेरेपी करवाने के बावजूद ट्यूमर बढ़ रहा था और ल्यूमेन (हवा के गुजरने की वाहिका) इसकी वजह से सिकुड़ती जा रही थी, जिससे मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। इससे संक्रमण और बढ़ रह था तथा रक्त एकत्र होकर रिस रहा था।”

मौर्य ने कहा, “यह जटिल मामला था क्योंकि हम कीमोथेरेपी से मरीज का उपचार नहीं कर सकते थे क्योंकि यह ट्यूमर कीमो-प्रतिरोधी था और संक्रमण भी था। बीमारी के काफी गंभीर होने की वजह से मरीज और उसके परिवार वाले नहीं चाहते थे कि ऑपरेशन थियेटर में मरीज को बेहोशी की दवा दी जाए।”

उन्होंने कहा, “इसलिये, पहने हमने संक्रमण को नियंत्रित किया और फिर वाई आकार का श्वासनली-ब्रोंकियल स्टेंट लगाया वह भी मरीज को पूरी तरह बेहोश किये बिना अर्ध मुर्छित हालत में रखते हुए। स्टेंट से हवा वाहिकाएं फैल सकीं और मरीज का सांस लेना सुगम हो पाया।”

डॉक्टर ने कहा कि यह प्रक्रिया करीब आधे घंटे चली और इससे मरीज को नया जीवन मिला अन्यथा सांस नली सिकुड़ने के कारण कुछ दिनों या हफ्तों में उसकी जान जा सकती थी।

मरीज की हालत अब ठीक है और वह आराम से सांस ले रहा है तथा नियमित जांच के लिए अस्पताल आ रहा है।

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