देश की खबरें | महाराष्ट्र राजनीतिक संकट: ठाकरे ने बहुमत साबित करने से पहले इस्तीफा दिया, इसलिए बहाल नहीं किया जा सकता: न्यायालय
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि पिछले साल 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना सही नहीं था। हालांकि न्यायालय ने पूर्व की स्थिति बहाल करने से इनकार करते हुए कहा कि ठाकरे ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।
नयी दिल्ली, 11 मई उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि पिछले साल 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना सही नहीं था। हालांकि न्यायालय ने पूर्व की स्थिति बहाल करने से इनकार करते हुए कहा कि ठाकरे ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।
महाराष्ट्र में पिछले साल शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे नीत महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिरने और सामने आये राजनीतिक संकट से जुड़ी अनेक याचिकाओं पर सर्वसम्मति से अपने फैसले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना का व्हिप नियुक्त करने का विधानसभा अध्यक्ष का फैसला ‘अवैध’ था।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा , चूंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना किये बिना इस्तीफा दे दिया था, इसलिए राज्यपाल ने सदन में सबसे बड़े दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कहने पर सरकार बनाने के लिए शिंदे को आमंत्रित करके सही किया।
पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारि, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल रहे।
उसने कहा, ‘‘सदन में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल का ठाकरे को बुलाना उचित नहीं था क्योंकि उनके पास मौजूद सामग्री से इस निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई कारण नहीं था कि ठाकरे सदन में बहुमत खो चुके हैं।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, पूर्व स्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया था। इसलिए राज्यपाल का सदन में सबसे बड़े दल भाजपा के कहने पर सरकार बनाने के लिए शिंदे को आमंत्रित करने का फैसला सही था।’’
शीर्ष अदालत ने विधायकों को अयोग्य करार देने के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार से जुड़े पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2016 के नबाम रेबिया फैसले को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भी भेज दिया।
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