कोविड-19: बुद्धिजीवियों ने किया आगाह, यूरोपीय यूनियन एकजुट नहीं हुआ तो अराजकता फैल जाएगी

पत्र में कहा गया है, ''इस समय कोरोना वायरस से संक्रमित हजारों यूरोपीय लोगों की जान बचाने की ही चुनौती नहीं है बल्कि अन्य रोगियों की जान को भी खतरा है। यूरोपीय लोग बहुत अहम हैं।''

वारसा, आठ अप्रैल (एपी) यूरोप के 200 से अधिक बुद्धिजीवियों, कलाकारों और राजनीतिक नेताओं ने यूरोपीय यूनियन के नेताओं का खुला पत्र लिखकर कोरोना वायरस संकट से उत्पन्न आर्थिक दिक्कतों को दूर करने के लिये तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया है। साथ ही उन्होंने आगाह किया कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो ''अराजकता और अधिनायकवाद'' फैल सकता है।

पत्र में कहा गया है, ''इस समय कोरोना वायरस से संक्रमित हजारों यूरोपीय लोगों की जान बचाने की ही चुनौती नहीं है बल्कि अन्य रोगियों की जान को भी खतरा है। यूरोपीय लोग बहुत अहम हैं।''

यह पत्र पौलेंड के अर्थशास्त्रियों के एक समूह और अन्य अकादमिक विद्वानों ने लिखा है, जिसपर नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक ओल्गा तोकार्कजुक और निदेशक एग्नीजेंस्का ओलांद ने हस्ताक्षर किये हैं। इसके अलावा इसपर इतालवी इतिहासकार कार्लो गिन्जबर्ग, स्पेन के लेखक फर्नान्डो सावातेर, डच सांस्कृतिक विचारक मिकी बेल, अमेरिकी अर्थशास्त्री जेफ्री साक्स ने भी हस्ताक्षर किये हैं। बुधवार तक 220 से अधिक नामचीन बुद्धिजीवी और राजनीतिक नेता इसपर हस्ताक्षर कर चुके हैं।

पत्र यूरोपीय यूनियन के अध्यक्ष डेविड सेसोली, यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वोन डेर लेयेन को संबोधित करते हुए लिखा गया है।

पत्र में कहा गया है कि कोरोना वायरस से निपटने के लिये जो समाधान अपनाए गए हैं वे यूरोप के उदार लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था और एकीकरण का भविष्य तय करेगें।

पत्र में कहा गया है कि 2008 के आर्थिक संकट के दौरान यूरोपीय यूनियन का रुख संतोषजनक नहीं था और वह ऐसी गलती थी जिसके गंभीर परिणाम आज तक सामने आ रहे हैं।

पत्र में यूरोपीय यूनियन से सभी यूरोपीय नागरिकों को वित्तीय मदद और कारोबारों में रियायतें देने की अपील की गई है, खासकर संवेदनशील छोटे और मंझोले कारोबारों को।

पत्र में कहा गया है, ''संकट के समय विकल्प तलाशे जाते हैं। एक ओर जहां यह संकट हमें यूरोपीय यूनियन के पतन, अराजकता और अधिनायकवाद की ओर ले जा सकता है, वहीं दूसरी ओर यह यूरोप और उसके नागरिकों के बीच सामाजिक बंधन को पुर्नजीवित करने का अवसर भी साबित हो सकता है। ''

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