देश की खबरें | कर्नाटक: राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के कथित तौर पर मौखिक निर्देश से हुए कामों पर सरकार से रिपोर्ट मांगी
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बेंगलुरु, 19 सितंबर कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के वरुणा निर्वाचन क्षेत्र और श्रीरंगपट्टनम में कथित तौर पर मौखिक निर्देश पर नियमों का उल्लंघन कर 387 करोड़ रुपये के कार्य कराए जाने के संबंध में सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
गहलोत ने मुख्य सचिव शालिनी रजनीश को पत्र लिखकर इस संबंध में प्रस्तुत विस्तृत प्रतिवेदन का हवाला दिया है तथा आरोप को “गंभीर प्रकृति का” बताया है।
यह पत्र ऐसे समय में आया है जब राज्यपाल ने 16 अगस्त को सिद्धरमैया के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत जांच की अनुमति दी थी। जांच की यह इजाजत एमयूडीए भूखंड आवंटन मामले के संबंध में प्रदीप कुमार एस.पी., टी.जे. अब्राहम और स्नेहमयी कृष्ण की याचिकाओं में उल्लिखित कथित अपराधों के लिए दी गयी थी।
राज्यपाल ने पत्र में कहा कि मैसूर के पी.एस. नटराज नामक व्यक्ति ने 27 अगस्त को उन्हें एक विस्तृत प्रतिवेदन सौंपा है, जिसमें उन्होंने बताया है कि एमयूडीए ने मुख्यमंत्री के मौखिक निर्देश पर वरुणा और श्रीरंगपट्टनम निर्वाचन क्षेत्र में कर्नाटक शहरी विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 15 और 25 का उल्लंघन करते हुए 387 करोड़ रुपये के कार्य किए हैं।
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि प्राधिकरण में धनराशि उपलब्ध न होने के बावजूद मौखिक निर्देश पर निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा, “इसके अलावा, उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसा करके प्राधिकरण ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है और उन्होंने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का अनुरोध किया।”
राज्यपाल ने कहा, “चूंकि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, इसलिए मामले की जांच करने और दस्तावेज के साथ विस्तृत रिपोर्ट जल्द से जल्द प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।”
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 12 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की उस याचिका पर सुनवाई पूरी कर ली थी जिसमें मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) मामले में उनके खिलाफ अभियोग चलाने के लिए राज्यपाल गहलोत द्वारा दी गई मंजूरी की वैधता को चुनौती दी गई थी। अदालत ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया।
सिद्धरमैया ने 19 अगस्त को राज्यपाल के आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
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