देश की खबरें | सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके न्यायिक अधिकारी को बदनाम नहीं किया जा सकता: उच्चतम न्यायालय

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने एक जिला न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के मामले में एक व्यक्ति को 10 दिन कारावास की सजा सुनाने संबंधी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुए मंगलवार को टिप्पणी की कि कोई सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके न्यायिक अधिकारियों को बदनाम नहीं कर सकता।

नयी दिल्ली, 30 मई उच्चतम न्यायालय ने एक जिला न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के मामले में एक व्यक्ति को 10 दिन कारावास की सजा सुनाने संबंधी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुए मंगलवार को टिप्पणी की कि कोई सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके न्यायिक अधिकारियों को बदनाम नहीं कर सकता।

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करने की इच्छुक नहीं है।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने मौखिक टिप्पणी की, ‘‘आपके अनुकूल आदेश नहीं दिया गया, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप न्यायिक अधिकारी को बदनाम करेंगे। न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ कार्यपालिका से ही नहीं, बल्कि बाहरी ताकतों से भी आजादी है। यह दूसरों के लिए भी एक सबक होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उसे न्यायिक अधिकारी पर कोई भी आक्षेप लगाने से पहले दो बार सोचना चाहिए था। उसने न्यायिक अधिकारी को बदनाम किया। न्यायिक अधिकारी की छवि को हुए नुकसान के बारे में सोचिए।’’

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने उच्चतम न्यायालय से नरमी बरतने का आग्रह किया और कहा कि कारावास की सजा बहुत अधिक है।

वकील ने कहा कि यह मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा है और याचिकाकर्ता पहले ही 27 मई से जेल में है।

इसके बाद शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम यहां कानून के संबंध में फैसला करने के लिए हैं, ना कि दया दिखाने के लिए। खासकर ऐसे लोगों के प्रति।’’

याचिकाकर्ता कृष्ण कुमार रघुवंशी ने एक जिला न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए उसके खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर शुरू किए गए अवमानना के आपराधिक मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।

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