देश की खबरें | राष्ट्रहित में न्यायिक सक्रियता कुछ हद तक स्वीकार्य, उच्चतम न्यायालय ने कहा

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा मामले में दलीलों को खारिज करते हुए मंगलवार को कहा कि राष्ट्र हित में ‘न्यायिक सक्रियता’ एक हद तक निश्चित तौर पर मान्य है। शीर्ष अदालत ने उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सेंट्रल विस्टा परियोजना को विभिन्न मंचों पर चुनौती देने वाली याचिकाओं को न्यायालय को अपने पास स्थानांतरित नहीं करना चाहिये था क्योंकि इससे अन्य अदालतों या पैनलों के पास जाने के वैधानिक अधिकारों की अवहेलना हुई।

एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली, पांच जनवरी उच्चतम न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा मामले में दलीलों को खारिज करते हुए मंगलवार को कहा कि राष्ट्र हित में ‘न्यायिक सक्रियता’ एक हद तक निश्चित तौर पर मान्य है। शीर्ष अदालत ने उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सेंट्रल विस्टा परियोजना को विभिन्न मंचों पर चुनौती देने वाली याचिकाओं को न्यायालय को अपने पास स्थानांतरित नहीं करना चाहिये था क्योंकि इससे अन्य अदालतों या पैनलों के पास जाने के वैधानिक अधिकारों की अवहेलना हुई।

शीर्ष अदालत ने बहुमत के अपने फैसले में दिल्ली के लुटियन क्षेत्र में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक तीन किमी के दायरे में केंद्र की महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा परियोजना का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 2:1 से अपने फैसले में कहा कि इस परियोजना के अंतर्गत नयी संसद भवन के निर्माण के लिये पर्यावरण मंजूरी और भूमि के उपयोग में परिवर्तन संबंधी अधिसूचना वैध हैं।

पीठ के समक्ष दलीलें दी गयी कि शीर्ष अदालत को खुद ही दिल्ली उच्च न्यायालय और अन्य न्यायिक मंचों से याचिकाओं का स्थानांतरण नहीं करना चाहिए था, क्योंकि इससे कुछ याचिकाकर्ता अपने वैधानिक अधिकारों से वंचित हुए।

न्यायमूर्ति खानविलकर ने 432 पन्ने के बहुमत के फैसले में लिखा है, ‘‘किसी भी मामले में जब कोई मुद्दा इस अदालत में पहुंचता है और इस प्रकृति का होता है, तो अदालत की बुनियादी चिंता ठोस और पूर्ण न्याय करने की होती है, बल्कि व्यापक जनहित में सभी पहलुओं के त्वरित समाधान की भी होती है। संवैधानिक दायरे में हमें इसे अवश्य करना चाहिये। न्यायिक सक्रियता राष्ट्र हित में निश्चित तौर पर कुछ हद तक मान्य है। ’’

उन्होंने कहा कि मामलों का स्थानांतरण करते समय जो सिद्धांत काम करता है, वह है संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत (न्याय प्रदान करने के लिए शीर्ष अदालत को असाधारण शक्ति) पूर्ण न्याय करने का शीर्ष अदालत का कर्तव्य।

फैसले में कहा गया है, ‘‘जनहित याचिकाओं के आने के पश्चात मामले में कई याचिकाएं दायर की जाती हैं जिससे बुनियादी परियोजनाओं के खिलाफ लंबी मुकदमेबाजी से इतनी देरी होती है कि परियोजनाएं हमेशा के लिए दफन हो जाती हैं या खजाने (ईमानदार करदाताओं की रकम) पर अत्यधिक बोझ पड़ने से इसकी व्यावहारिकता खत्म हो जाती है। ऐसे में अदालत की पूर्ण ही नहीं बल्कि ठोस न्याय प्रदान करने की शक्ति इस्तेमाल की जाती है।’’

उन्होंने कहा कि संबंधित मामलों के आधार पर संवैधानिक अदालतों को तकनीकी जटिलताओं में उलझे बिना राष्ट्रहित में जल्द से जल्द कानूनी चुनौतियों का समाधान करना चाहिए।

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