जामिया यूजीसी से पैसा लेने के लिए अदालत की ढाल नहीं ले सकता: उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उससे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र के लिए धन जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.

दिल्ली हाईकोर्ट (Photo Credits: PTI)

नयी दिल्ली, 9 जुलाई : दिल्ली उच्च न्यायालय ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उससे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र के लिए धन जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. उच्च न्यायालय ने कहा है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूजीसी से धन प्राप्त करने के लिए अदालत की ढाल नहीं ले सकता है. अदालत ने सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक के रूप में कार्यरत एक प्रोफेसर द्वारा अपने वेतन के भुगतान की मांग करने वाली एक लंबित याचिका के संबंध में जामिया की ओर से दायर आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह मौखिक आदेश पारित किया.

जामिया ने यह कहते हुए आवेदन दाखिल किया था कि यूजीसी द्वारा नियमित बजट या ‘भारतीय विश्वविद्यालयों में महिला अध्ययन के विकास’ की योजना के तहत सहायता नहीं देने के कारण प्रोफेसर के वेतन का भुगतान नहीं किया जा सका है. विश्वविद्यालय ने उच्च न्यायालय से अपील की थी कि वह आयोग को अनुदान जारी करने और योजना के तहत छह करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दे. हालांकि, उच्च न्यायालय ने सवाल किया कि जब विश्वविद्यालय के कुलपति और रजिस्ट्रार सहित अन्य सभी अधिकारियों को वेतन मिल रहा है तो संबंधित शिक्षक को क्यों नहीं. अदालत ने कहा, “आप अपनी संपत्ति बेचें और पैसे का भुगतान करें. यूजीसी से पैसे लेने के लिए आप अदालत की ढाल नहीं ले सकते. अपने कुलपति और रजिस्ट्रार से कहें कि वे अपना वेतन रोक दें और संबंधित शिक्षक को भुगतान करें.” यह भी पढ़ें : अमरनाथ त्रासदी से जुड़े तथ्य को देश के सामने रखना चाहिए: यशवंत सिन्हा

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्म प्रसाद की पीठ ने कहा, “अन्य सभी अधिकारियों को वेतन देने के लिए आपके पास पैसा है, लेकिन संबंधित शिक्षक के लिए आप चाहते हैं कि हम यूजीसी को निर्देश दें. कुलपति और रजिस्ट्रार को वेतन मिल रहा है, लेकिन गरीब शिक्षक को नहीं.” जामिया के स्थायी वकील प्रीतिश सभरवाल ने दलील दी कि यह केंद्र यूजीसी का है और विश्वविद्यालय इसे यूजीसी की योजना के तहत चला रहा है. उन्होंने कहा कि यूजीसी ने विश्वविद्यालय को केंद्र के विलय के लिए पत्र भेजा था, न कि शिक्षण पदों के लिए. शिक्षकों के वेतन के लिए धन यूजीसी से आना है, जिसने अनुदान जारी करना बंद कर दिया है. पीठ ने कहा कि विश्वविद्यालय ने पिछली सुनवाई में कहा था कि वह प्रोफेसर को सभी बकाया राशि का भुगतान करेगा.

पीठ ने कहा कि अदालत ने जामिया का आश्वासन स्वीकार कर लिया था और कहा था कि प्रोफेसर को मासिक आधार पर तय समय पर वेतन का भुगतान जारी रहेगा. छह जुलाई को हुई सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा पूछे गए एक विशिष्ट सवाल पर कि क्या कुलपति, रजिस्ट्रार और अन्य शिक्षकों को वेतन मिल रहा है, विश्वविद्यालय के वकील ने हां में जवाब दिया था. उच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया, “यह आवेदन कुछ और नहीं, बल्कि पिछले आदेश को दरकिनार करने का प्रयास है, जो एक सहमति आदेश था. हमें आवेदन पर विचार करने की कोई वजह नजर नहीं आती है. लिहाजा इसे खारिज किया जाता है.”

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