देश की खबरें | जेल शिक्षा हासिल करने का अधिकार नहीं छीनती : एल्गार मामले के आरोपी की याचिका पर उच्च न्यायालय ने कहा

मुंबई, 24 सितंबर जेल की सजा किसी व्यक्ति से आगे की शिक्षा हासिल करने का अधिकार नहीं छीनती। बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के आरोपी महेश राउत को मुंबई के एक कॉलेज में विधि कोर्स में दाखिला लेने की इजाजत देते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति एएस गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने 19 सितंबर के अपने आदेश में कहा कि सीट आवंटन के बावजूद कॉलेज में दाखिला लेने का मौका न देना मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

खंडपीठ जून 2018 में गिरफ्तार किए गए राउत की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने मुंबई विश्वविद्यालय को उसे सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ लॉ में शैक्षणिक वर्ष 2024-27 में विधि कोर्स में दाखिला देने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।

राउत के वकील मिहिर देसाई ने खंडपीठ को बताया कि उच्च न्यायालय ने उनके मुवक्किल को 2023 में जमानत दे दी थी, लेकिन वह जेल से बाहर नहीं आ सका, क्योंकि अभियोजन पक्ष ने जमानत आदेश को चुनौती दी। उच्चतम न्यायालय ने जमानत आदेश पर रोक लगा दी, जो आज भी बरकरार है।

मुंबई विश्वविद्यालय और सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ लॉ ने याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि विधि कोर्स एक पेशेवर कोर्स है, जिसमें अभ्यर्थी की 75 फीसदी हाजिरी होना अनिवार्य है और राउत इस शर्त को जाहिर तौर पर पूरा नहीं कर पाएगा।

इस पर उच्च न्यायालय ने कहा कि जब राउत ने सामान्य प्रवेश परीक्षा (सीईटी) में बैठने की अनुमति मांगी थी, तब किसी ने इसका विरोध नहीं किया था।

उसने कहा कि सीईटी में बैठने का मकसद निश्चित रूप से विधि कोर्स में दाखिला लेना था।

उच्च न्यायालय ने कहा, “जेल की सजा किसी व्यक्ति के आगे की शिक्षा हासिल करने के अधिकार पर प्रतिबंध नहीं लगाती है। सीट आवंटन के बावजूद कॉलेज में दाखिला लेने की इजाजत न देना याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।”

राउत एक विशेष अदालत की अनुमति के बाद महाराष्ट्र सीईटी विधि परीक्षा में शामिल हुआ था और राज्य उम्मीदवारों की मेधा सूची में 95वें स्थान पर था।

उसे अनंतिम रूप से सिद्धार्थ कॉलेज में एक सीट आवंटित की गई थी और उसकी बहन ने सीट रोकने के लिए आवश्यक शुल्क का भुगतान भी किया था।

दस्तावेजों के सत्यापन के लिए राउत का व्यक्तिगत रूप से कॉलेज में उपस्थित होना आवश्यक था।

चूंकि, वह इस समय न्यायिक हिरासत में है और नवी मुंबई की तलोजा सेंट्रल जेल में बंद है, इसलिए वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में असमर्थ था।

उच्च न्यायालय ने कहा, “चूंकि, कॉलेज दस्तावेजों के सत्यापन के लिए अभ्यर्थी की भौतिक उपस्थिति को अनिवार्य करता है, इसलिए हम इस बात पर विचार करने की जिम्मेदारी कॉलेज पर छोड़ते हैं कि वह याचिकाकर्ता के अधिकृत प्रतिनिधि/परिजन को कॉलेज में उपस्थित होने और दस्तावेजों को सत्यापित करने या वैकल्पिक रूप से तलोजा सेंट्रल जेल से दस्तावेजों पर याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर लेने की अनुमति देता है।”

खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि उसने राउत को कोई अन्य छूट नहीं दी है और कहा कि वह अन्य अभ्यर्थियों की तरह बाकी सभी नियमों और विनियमों का पालन करेगा।

राउत को 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया गया था। पुणे पुलिस के अनुसार, इस सम्मेलन को माओवादियों ने वित्त पोषित किया था।

पुलिस का आरोप है कि सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन पुणे में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक पर हिंसा हुई।

बाद में राष्ट्रीय अभिकरण एजेंसी (एनआईए) ने इस मामले की जांच अपने हाथों में ले ली थी।

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