जरुरी जानकारी | वाहन विनिर्माताओं से डीलरों के हित अलग नहीं हैं: उच्चतम न्यायालय

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसने एक कार डीलर को एक भ्रामक विज्ञापन को लेकर सेवा में कमी के चलते 7.43 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था, और कहा कि डीलरों का हित वाहन विनिर्माता से अलग नहीं है।

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसने एक कार डीलर को एक भ्रामक विज्ञापन को लेकर सेवा में कमी के चलते 7.43 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था, और कहा कि डीलरों का हित वाहन विनिर्माता से अलग नहीं है।

शिकायतकर्ता ने देहरादून स्थित एबी मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड से फोर्ड फिएस्टा (डीजल) कार खरीदी थी और उन्होंने अपनी शिकायत में दावा किया कि फोर्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 31.4 किमी प्रति लीटर के औसत माइलेज का दावा करते हुए अखबारों में एक भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित किया था, जबकि गाड़ी का वास्तविक माइलेज 15-16 किमी प्रति लीटर था।

उन्होंने जिला उपभोक्ता फोरम के सामने एक शिकायत दर्ज की, जिस पर सुनवाई के बाद डीलर के साथ विनिर्माता को वाहन की वापसी कर उन्हें 7,43,200 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। इसके अलावा मुकदमे की लागत के रूप में 10,000 रुपये की राशि देने का आदेश भी दिया गया।

इसके बाद फोर्ड इंडिया ने राज्य आयोग के समक्ष एक अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। बाद में एनसीडीआरसी ने पुनरीक्षण याचिका को मंजूर कर लिया।

इसबीच डीलरों को कार की कीमत का भुगतान करने के लिए जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम के दिशानिर्देशों के दायित्व के बोझ तले दबना पड़ा।

शीर्ष अदालत एनसीडीआरसी के आदेश के खिलाफ डीलर द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि चूंकि डीलरों का हित वाहन के विनिर्माता से अलह नहीं है, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता मंचों द्वारा पारित आदेश उन डीलरों के खिलाफ कायम नहीं रह सकता, जिनका हित वाहन के विनिर्माता के साथ जुड़ा है। पीठ ने कहा कि वास्तव में वाहन विनिर्माता से मिलता है।

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