रायपुर, दो अक्टूबर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गांधी जयंती के अवसर पर शनिवार को राज्य के गौठानों में गोबर से विद्युत उत्पादन परियोजना की शुरूआत की । गोबर गैस की बिजली से अब गौठानों में स्थापित रूरल इंडस्ट्रियल पार्क की मशीनों को चलाया जाएगा।
जनसपंर्क विभाग के अधिकारियों ने शनिवार को यहां बताया कि मुख्यमंत्री ने आज बेमेतरा जिला मुख्यालय के बेसिक स्कूल ग्राउंड में आयोजित किसान सम्मेलन के दौरान छत्तीसगढ़ के गौठानों में गोबर से बिजली उत्पादन परियोजना का वर्चुअल शुभारंभ किया।
इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना को साकार करते हुए गांवों को स्वावलंबी बनाने में जुटी है और अब छत्तीसगढ़ के गांव गोबर से विद्युत उत्पादन के मामले में स्वावलंबी होंगे।
उन्होंने कहा कि एक समय था जब विद्युत उत्पादन का काम सरकार और बड़े उद्योगपति किया करते थे और अब हमारे राज्य में गांव के ग्रामीण टेटकू, बैशाखू, सुखमती, सुकवारा भी बिजली बनाएंगे और बेचेंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गोबर खरीदी का मजाक उड़ाने वाले लोग अब इसकी महत्ता को देख लें।
अधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में बेमेतरा जिले के राखी, दुर्ग जिले के सिकोला तथा रायपुर जिले के बनचरौदा गौठान में गोबर से विद्युत उत्पादन की शुरूआत की।
उन्होंने बताया कि बघेल ने इस मौके पर बेमेतरा जिले में 503 करोड़ रूपए की लागत वाले विकास और निर्माण कार्यों का भूमिपूजन तथा लोकार्पण किया। अधिकारियों ने बताया कि सुराजी गांव योजना के तहत छत्तीसगढ़ राज्य के लगभग छह हजार गांवों में गौठानों का निर्माण करा कर उन्हें रूरल इंडस्ट्रियल पार्क के रूप में विकसित किया गया है। ,
उन्होंने बताया कि यहां गोधन न्याय योजना के तहत दो रूपए किलो में गोबर की खरीदी कर बड़े पैमाने पर जैविक खाद का उत्पादन और अन्य आयमूलक गतिविधियां समूह की महिलाओं द्वारा संचालित की जा रही है।
उन्होंने बताया कि गोबर से विद्युत उत्पादन की परियोजना के प्रथम चरण में बेमेतरा जिले के राखी, दुर्ग के सिकोला और रायपुर जिले के बनचरौदा गांव में गोबर से विद्युत उत्पादन की यूनिट लगाई गयी है । एक यूनिट से 85 क्यूबिक घन मीटर गैस बनेगी, जिससे इससे 153 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होगा।
इस प्रकार तीनों गौठानों में स्थापित बायो गैस जेनसेट इकाईयों से लगभग 460 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होगा। जिससे गांवों, गौठानों में प्रकाश की व्यवस्था के साथ-साथ वहां स्थापित मशीनों का संचालन हो सकेगा।
अधिकारियों ने बताया कि गोबर से विद्युत उत्पादन की यूनिट से बिजली उत्पादन के बाद शेष स्लरी के पानी का उपयोग बाड़ी और चारागाह में सिंचाई के लिए होगा तथा बाकी अवशेष से जैविक खाद तैयार किया जाएगा।
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