नयी दिल्ली, छह अगस्त बीते सप्ताह तेल तिलहन बाजार में कारोबार का मिला जुला रुख रहा। अत्यधिक आयात होने के कारण विदेशों से आयात किये जाने वाले खाद्यतेलों की कीमतों में गिरावट आई जबकि तिलहन की कमी के कारण सरसों, मूंगफली और बिनौला जैसे देशी तेल तिलहनों के दाम में मामूली सुधार दर्ज हुआ।
बाजार सूत्रों ने कहा कि माल की कमी होने और किसानों द्वारा नीचे भाव में बिकवाली नहीं करने से सरसों, मूंगफली और बिनौला जैसे देशी तेल तिलहन की कीमतों में मामूली सुधार देखने को मिला जबकि अत्यधिक आयात होने तथा बैंकों का ऋण साखपत्र घुमाते रहने की मजबूरी की वजह और बंदरगाहों पर लागत से कम कीमत पर इस तेल को बेचे जाने के कारण सोयाबीन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली।
सूत्रों ने कहा कि देश में जुलाई के महीने में खाद्यतेलों का रिकॉर्डतोड़ आयात लगभग 17.6 लाख टन होने का अनुमान है। साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) को सरकार को जुलाई महीने के रिकॉर्ड आयात के बारे में अवगत कराना चाहिये।
उन्होंने कहा कि खाद्यतेलों का जो आयात हो रहा है, वह बैंकों के ऋण साख पत्र को चलाते रहने के लिए किया जा रहा है। आयातित तेलों की बिक्री बंदरगाहों पर आयात लागत से कम कीमत पर की जा रही है। सोयाबीन तेल को आयात लागत से लगभग 4-4.5 रुपये प्रति किलो की कम कीमत पर बेचा जा रहा है जबकि इसके मुकाबले पामोलीन को आयात की लागत से एक रुपये किलो के नुकसान पर बेचा जा रहा है। यानी पामोलीन में सोयाबीन के मुकाबले नुकसान कम है।
मूंगफली, सरसों और बिनौना जैसे सॉफ्ट आयल (नरम तेल) का स्टॉक देश में पहले ही बेहद कम है। यानी अब ऋण साख पत्र घुमाने रहने के कारण आयातक, सोयाबीन की जगह पामोलीन का आयात बढ़ायेंगे। ऐसे में त्यौहारों के समय देश में नरम तेलों (सॉफ्ट आयल) की कमी हो सकती है।
सरसों की अगली फसल आने में लगभग सात महीने का समय है। सोयाबीन तेल का आयात आने में 35-45 दिन लगते हैं। सरकार को इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही अपनी नीतियां बनानी होगी ताकि त्यौहारों के समय नरम खाद्यतेलों की कमी ना होने पाये।
सूत्रों ने कहा कि भारत अपनी खाद्यतेल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 55-60 प्रतिशत के लगभग आयात पर निर्भर है। उस देश में खाद्य तेल, आयात के बाद लागत से कम भाव पर बिके, यह अजीब विसंगति है। कम से कम देश के तेल संगठनों को इस परिस्थिति को लेकर सरकार को अवगत कराना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि मंडियों में सरसों की आवक घट रही है और यह आवक पहले के 4.50-4.75 लाख बोरी से घटकर चार लाख बोरी रह गई है। ब्रांडेड कंपनियों के पास अच्छे माल की कमी है और किसान नीचे भाव में तिलहन बेच नहीं रहे। इसलिए सरसों तेल तिलहन कीमतों में मामूली सुधार है वैसे सस्ते आयातित तेलों की भरमार को देखते हुए यह अभी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर बिक रहा है।
उन्होंने कहा कि सरसों की अगली फसल आने में देर को देखते हुए सरकार को इसे निकालने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये क्योंकि दीवाली के समय और जाड़े में इसकी मांग बढ़ती है। सरकार को सरसों फसल, व्यापारियों के बजाय तेल पेराई मिलों को देना चाहिये। व्यापारी इस सरसों का स्टॉक जमा कर सकते हैं।
सूत्रों ने कहा कि जुलाई में रिकॉर्डतोड़ आयात ने देश के सोयाबीन का बुरा हाल कर रखा है और इस बारे में ‘मोपा’ और ‘सोपा’ तेल संगठन चुप हैं। सस्ते आयातित सोयाबीन तेल की बहुतायत की वजह से देशी सोयाबीन की खपत नहीं है और किसान पिछले साल से कम भाव पर मजबूरी में ही थोड़ी बहुत बिक्री कर रहे हैं, इन परिस्थितियों के बीच समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन तिलहन के भाव पूर्वस्तर पर बने रहे।
दूसरी ओर, सस्ते आयातित सोयाबीन के रिकॉर्ड आयात और बंदरगाह पर कम भाव पर बिक्री करने से सोयाबीन तेल के दाम समीक्षाधीन सप्ताह में कमजोर बंद हुए।
उन्होंने कहा कि मूंगफली और बिनौला के तिलहन स्टॉक की भारी कमी है। मूंगफली की अगली फसल आने में दो से ढाई महीने लगेंगे। इस वजह से मूंगफली तेल तिलहन में सुधार है। इसी प्रकार बिनौला भी अक्टूबर-नवंबर से पहले मंडियों में नहीं आयेगा और इसकी कमी के बीच इसके तेल कीमत में सुधार है।
सूत्रों ने कहा कि अत्यधिक आयात के कारण सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में भी गिरावट आई जिसकी एक वजह बंदरगाहों पर आयात लागत के मुकाबले इनकी सस्ते में बिक्री करना भी है।
पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 100 रुपये सुधरकर 5,800-5,850 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 120 रुपये सुधरकर 11,120 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 40 रुपये और 25 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 1,840-1,935 रुपये और 1,840-1,950 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 5,090-5,185 रुपये प्रति क्विंटल और 4,855-4,950 रुपये प्रति क्विंटल पर अपरिवर्तित रहे क्योंकि किसान पिछले साल के मुकाबले कम दाम पर बिकवाली नहीं कर रहे।
समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल के भाव भी क्रमश: 10 रुपये, 100 रुपये और 100 रुपये टूटकर क्रमश: 10,550 रुपये, 10,250 रुपये और 8,800 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।
दूसरी ओर, माल की कमी होने से समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तिलहन, मूंगफली गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड के भाव क्रमश: 25 रुपये, 50 रुपये और 20 रुपये मजबूत होकर क्रमश: 7,775-7,825 रुपये, 18,750 रुपये और 2,725-3,010 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।
अत्यधिक आयात के कारण समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 50 रुपये की गिरावट के साथ 8,250 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 100 रुपये घटकर 9,500 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला का भाव समीक्षाधीन सप्ताहांत में 100 रुपये घटकर 8,600 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
अच्छे माल की कमी और देशी खाद्यतेलों में तेजी के आम रुख के अनुरूप बिनौला तेल समीक्षाधीन सप्ताह में 25 रुपये सुधरकर 9,725 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
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