जरुरी जानकारी | बजट के इतर कर्ज को जोड़ दे तो 2021-22 में राजकोषीय घाटा 6.9%, इस वर्ष 10.2% रहेगा: रिपोर्ट

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. वैसे आगामी अप्रैल से शुरू हो रहे नए वित्त वर्ष में प्रस्तावित तीस हजार करोड़ रुपये का बजट से अलग लिया जाने वाला उधार चालू वित्त वर्ष 2020-21 में इस तरह के 1.3 लाख करोड़ रुपये के बजट से इतर के कर्ज की तुलना में काफी कम है।

वैसे आगामी अप्रैल से शुरू हो रहे नए वित्त वर्ष में प्रस्तावित तीस हजार करोड़ रुपये का बजट से अलग लिया जाने वाला उधार चालू वित्त वर्ष 2020-21 में इस तरह के 1.3 लाख करोड़ रुपये के बजट से इतर के कर्ज की तुलना में काफी कम है।

वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में राजकोषीय घाटा 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया है। संशोधित अनुमान के अनुसार यह चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 9.5 प्रतिशत तक चला जाएगा।

एसबीआई रिसर्च ने कहा है कि इन अनुमानों में दोनों वित्त वर्ष के लिये बजट से इतर उधारी को शामिल नहीं किया गया है। चालू वित्त वर्ष में इस तरह का कर्ज अनुमानित 1.3 लाख करोड़ रुपये का रहेगा जब कि अगले वर्ष यह 30,000 करोड़ रुपये रुपये के बराबर अनुमानित है।

अब अगर इस उधारी को जोड़ा जाए तो 2020-21 में राजकोषीय घाटा जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 10.2 प्रतिशत और 2021-22 में 6.9 प्रतिशत बैठता है।

केंद्र के 6.9 प्रतिशत और राज्यों के 4 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के आधार पर अगले वित्त वर्ष में संयुक्त रूप से बाजार ऋण 23.3 लाख करोड़ रुपये बैठेगा । इसमें केंद्र का शुद्ध कर्ज 8.9 लाख करोड़ रुपये और सकल कर्ज 12.05 लाख करोड़ रुपये होगा।

कुल मिलाकर केंद्र और राज्यों की सकल उधारी 2021-22 में 23.3 लाख करोड़ रुपये होगी। जबकि शुद्ध उधारी 18.1 लाख करोड़ रुपये होगी जो 2020-21 के बराबर है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की एजेंसियों के जरिये बड़े स्तर पर बजट से इतर कर्ज ले रही है। इसका उद्देश्य इस प्रकार के ऋणों को अपने बही-खाते में दिखाने से बचना है।

हालांकि राज्यों द्वारा संचालित इकाइयों के बजट के अतिरिक्त संसाधनों (ईबीआर) में कमी दिखायी गयी है। वित्त वर्ष 2021-22 में इन इकाइयों के लिए अनुमानित ईबीआर 3.47 लाख करोड़ रुपये दिखाया गया है जो चालू वित्त वर्ष 2020-21 में 3.88 लाख करोड़ रुपये है।

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, इस्पात और बिजली के ईबीआर बढ़े हैं जबकि अन्य के लिये मामले में कम हुई है।

वित्त वर्ष 2021-22 में राष्ट्रीय लघु बचत योजना और बांड के जरिये जुटाये गये ईबीआर को कम कर 30,000 करोड़ रुपये किया गया है जबकि 2020-21 में यह 1.3 लाख करोड़ रुपये था।

इस बीच, राज्यों की सकल उधारी के अनुमान को 2020-21 के लिये बढ़ाकर 8.7 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है जो पहले के अनुमान 7.2 लाख करोड़ रुपये रहने वाली थी।

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