नयी दिल्ली, 20 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि यह ‘खेद जनक’ है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने सोलन जिले में सीमेंट फैक्टरी और खनन क्षेत्र के वास्ते ‘ सेफ्टी जोन’ बनाने के लिए अधिग्रहित जमीन के छह मालिकों के लिए मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित नहीं किया।
शीर्ष अदालत ने इन भू स्वामियों को 15 दिनों के भीतर 3.05 करोड़ रुपये के मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति जे.पी.पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ ने रेखांकित किया कि हिमाचल प्रदेश सरकार को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में इस मामले में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुआवजे के तौर पर तय राशि का भुगतान शीघ्र किया जाए।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह जानकर खेद है कि पूरक निर्णय के तहत मुआवजे के रूप में निर्धारित 3,05,31,095 रुपये की राशि दो साल से अधिक समय के बाद भी भूमि स्वामियों को नहीं दी गई है और कल्याणकारी राज्य के रूप में हिमाचल प्रदेश ने इसे जल्द से जल्द भुगतान करने का कोई प्रयास नहीं किया है।’’
शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के जुलाई 2022 के मामले में पारित आदेश के खिलाफ मेसर्स अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड की ओर से दायर अपील पर यह निर्णय दिया।
उच्च न्यायालय ने कंपनी को भूमि अधिग्रहण कलेक्टर, अर्की द्वारा पारित दो मई, 2022 के पूरक पुरस्कार में निर्धारित मुआवजे के लिए तय राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था। साथ ही दोनों संस्थाओं के बीच कानूनी संबंधों के तहत अनुमेय होने पर मेसर्स जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) से इसे वसूलने की स्वतंत्रता भी दी थी।
न्यायालय ने कहा कि भूमि स्वामियों से भूमि का स्वामित्व लेने के बाद उन्हें मुआवजा देने में देरी करना अनुच्छेद 300ए के संवैधानिक प्रावधान और कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विरुद्ध है।
संविधान के अनुच्छेद 300ए में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्राधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
धीरज रंजन
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