नयी दिल्ली, 25 नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित लड़की के उपचार के लिए अधिकारियों को आर्थिक सहायता और दवाओं की खरीद की प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को केंद्र से जवाब मांगा।
पीड़ित लड़की ने अपनी मां के जरिये याचिका दायर अदालत को बताया है कि वह ‘स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी’ (एसएमए) टाइप-एक रोग से पीड़ित है, जो एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है।
याचिका में बताया गया कि यह बीमारी मांसपेशियों में कमजोरी का कारण बनती है और एसएमए का सबसे गंभीर रूप है, जिसके लिए ‘जोलगेन्स्मा’ नाम की जीवन रक्षक जीन थेरेपी की आवश्यकता होती है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने केंद्र को नोटिस जारी कर सरकार के वकील से संबंधित अधिकारियों से निर्देश प्राप्त करने को कहा।
अदालत ने कहा कि केंद्र को तीन दिसंबर को होने वाली मामले की अगली सुनवाई से पहले जवाब दाखिल करना होगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जीन थेरेपी पर करीब 17.5 करोड़ रुपये खर्च होंगे और चूंकि लड़की एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है इसलिए उसके पास इलाज का इतना खर्च वहन करने का साधन नहीं है।
वकील ने दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति का हवाला दिया, जिसके अनुसार सरकार ने ऐसी बीमारियों की पहचान कर उन्हें वर्गीकृत किया है।
वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने 16 अगस्त को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से अनुरोध किया था।
वकील ने अदालत को बताया कि मंत्रालय से जोलगेन्स्मा की खरीद के लिए मदद मांगी गई थी और यह अभ्यावेदन विचाराधीन है।
अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में पंजीकृत है, जो नीति के अनुसार उत्कृष्टता केंद्रों में से एक है।
याचिकाकर्ता के वकील ने हालांकि कहा कि खरीद के लिए राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति (एनआरडीसी) से अनुमति लेनी होगी।
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