भारत-चीन के लिए अच्छा रहा साल 2024! बातचीत से सैन्य गतिरोध हुआ समाप्त, कैलाश यात्रा पर बनी सहमति

2024 में भारत-चीन संबंधों में महत्वपूर्ण सुधार हुआ, खासकर पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध समाप्त करने के बाद. दोनों देशों के बीच उच्च स्तर की वार्ता और समझौते से सीमा पर शांति स्थापित हुई और व्यापारिक रिश्तों में भी वृद्धि देखने को मिली. चीन की आर्थिक मंदी के बावजूद, भारत के साथ व्यापार और निवेश में वृद्धि हुई, और दोनों देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने के प्रयास किए.

बीजिंग, 25 दिसंबर: गुजरता साल भारत-चीन संबंधों की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा जो चार वर्ष से अधिक समय तक उनके संबंधों में गतिरोध के बाद समाधान लेकर आया. चीन-भारत के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच टकराव की यह सबसे लंबी अवधि थी जो पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध को समाप्त करने के समझौते के साथ खत्म हुई.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल में लोकसभा में इस मुद्दे पर एक बयान देते हुए अप्रैल-मई 2020 में ‘‘पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों को जमा करने’’ का जिक्र किया था.

इसी के परिणामस्वरूप जून 2020 में गलवान घाटी में संघर्ष हुआ और दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच संबंधों में दरार आ गई. साल 1962 के युद्ध के बाद का तनाव 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बीजिंग यात्रा तक बना रहा था. इस बार, दोनों देशों ने शीर्ष कमांडरों के बीच और परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) के माध्यम से समय-समय पर बातचीत की, जिसके परिणामस्वरूप बफर जोन बनाकर पूर्वी लद्दाख में चार बिंदुओं - गलवान घाटी, पैंगोंग झील, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा से चरणबद्ध तरीके से सैनिकों की वापसी हुई.

अंततः 21 अक्टूबर को भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर देपसांग और डेमचोक के टकराव वाले बाकी बिंदुओं पर गश्त और सैनिकों की वापसी पर एक समझौते को अंतिम रूप दिया.

इसी के परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बैठक हुई, जो पांच वर्षों में उनकी पहली बैठक थी. इसके बाद, जयशंकर ने नवंबर में ब्राजील में जी-20 बैठक के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की, जहां वे इस बात पर सहमत हुए कि विशेष प्रतिनिधि (एसआर) और विदेश सचिव स्तर की प्रणाली के तहत बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी.

भारत-चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा के जटिल विवाद पर व्यापक रूप से ध्यान देने के लिए 2003 में गठित विशेष प्रतिनिधि व्यवस्था का नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल और विदेश मंत्री वांग करते हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी नवंबर में लाओस के वियनतियाने में आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक में अपने चीनी समकक्ष दोंग जुन से मुलाकात की.

दिसंबर में डोभाल और वांग के बीच 23वीं एसआर वार्ता के बाद, विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कहा कि व्यापक वार्ता सीमा पार सहयोग के लिए एक “सकारात्मक” दिशा पर केंद्रित थी, जिसमें कैलाश मानसरोवर यात्रा और सीमा व्यापार को फिर से शुरू करना शामिल था, जबकि चीनी पक्ष ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच सीमाओं पर शांति बनाए रखने और संबंधों के स्वस्थ और स्थिर विकास को बढ़ावा देने के लिए उपाय करना जारी रखने सहित छह सूत्री सहमति बनी.

चीन की ओर से इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि उसने 2020 में एलएसी के पास अपने सैनिकों को क्यों भेजा, वहीं दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों के 75 वर्ष पूरे होने से कुछ महीने पहले समझौता होने के समय ने भी लोगों के मन में जिज्ञासाएं पैदा कीं. हाल के महीनों में बीजिंग अपनी अर्थव्यवस्था में मंदी को दूर करने के संघर्ष के बाद नरम पड़ता दिखाई दिया. उसकी अर्थव्यवस्था संपत्ति संकट और बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ग्रस्त थी.

चार साल से अधिक समय के दौरान, द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित नहीं हुआ, बल्कि यह लगातार बढ़ता रहा. चीन के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2023 में द्विपक्षीय व्यापार कुल 138.2 अरब डॉलर का था, जिसमें चीनी निर्यात बढ़कर 122 अरब डॉलर हो गया तथा भारत का चीन को निर्यात 16.2 अरब डॉलर हो गया. पिछले साल चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 105.8 अरब डॉलर था.

बीजिंग में भारतीय दूतावास के आंकड़ों के अनुसार, इस साल के पहले छह महीनों में व्यापार घाटा बढ़कर 41.89 अरब डॉलर हो गया, जिसमें चीनी निर्यात कुल 50.35 अरब डॉलर था, जबकि भारत का चीन को निर्यात 8.46 अरब डॉलर था.

भारी शुल्क के साथ चीन के निर्यात को बाधित करने के अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रयासों के बीच, चीन अगले साल अपने निर्यात के साथ-साथ भारत में निवेश, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों में निवेश को बढ़ावा देना चाहता है.

यहां के विशेषज्ञ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत के साथ व्यापार विस्तार को अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में इसके संभावित नुकसान की आंशिक रूप से भरपाई करने के एक नए रास्ते के रूप में भी देखते हैं. चीन ने इस साल हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से पहले अपनी विदेश, व्यापार और सैन्य नीतियों को नए सिरे से तैयार किया है.

अधिकारियों का कहना है कि बीजिंग में इस बात को लेकर काफी चिंता है कि ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में और तेजी आएगी, खासतौर पर अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान का क्वाड समूह मजबूत होगा, जिसे चीन खुद को नियंत्रित करने के उद्देश्य वाले गठबंधन के रूप में देखता है. भारत के अलावा, चीन ने ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भी खराब होते संबंधों में फिर से मधुरता लाने की कोशिश की है.

इस बीच, जब चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी के शासन के 75 साल पूरे किए, जुलाई में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक में 2035 तक समाजवादी आधुनिकीकरण हासिल करके सुस्त विकास को ऊपर उठाने के लिए व्यापक सुधारों का प्रस्ताव पारित किया गया. राष्ट्रपति शी, जिन्होंने सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी और सैन्य अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का चाबुक चलाना जारी रखा है, ने जनवरी में उनसे बिना किसी दया के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने को कहा. इस बीच चीन ने तिब्बत पर अपने नियंत्रण के 65 वर्ष होने का जश्न मनाया और तिब्बत तथा अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे अभी भी विवादास्पद बने हुए हैं.

अमेरिका के जो बाइडन प्रशासन ने मार्च में अरुणाचल प्रदेश को भारतीय क्षेत्र कहा था. बाइडन ने जुलाई में ‘तिब्बत-चीन विवाद अधिनियम पर प्रस्ताव की ओर बढ़ने’ संबंधी कानून पर हस्ताक्षर भी किया था जिसके बाद चीन की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई.

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