देश की खबरें | ‘काल्पनिक याचिकाओं’ के लिए दंत चिकित्सा महाविद्यालयों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना

बेंगलुरू, आठ अक्टूबर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कुछ विद्यार्थियों को दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में नामांकन की अनुमति के लिए उसका दरवाजा खटखटाने वाले दो दंत चिकित्सा महाविद्यालयों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि कॉलेज छात्रों की ओर से याचिकाएं दायर नहीं कर सकते।

अदालत ने कहा, ‘‘यदि याचिकाकर्ता-विद्यार्थी वास्तव में सीट से वंचित थे जिनके वे पात्र थे, तो वे स्वतंत्र रूप से अदालत का दरवाजा खटखटा सकते थे। कॉलेज छात्रों की ओर से रिट याचिका दायर नहीं कर सकते हैं।’’

न्यायमूर्ति बी. वीरप्पा और न्यायमूर्ति के एस हेमलेखा की खंडपीठ ने जुर्माना लगाते हुए कहा, “छात्रों का कीमती समय बर्बाद किया गया है। साथ ही, याचिकाकर्ताओं (महाविद्यालयों) ने अदालत का आधे दिन का समय बर्बाद करके अन्य वास्तविक वादकारियों को भी वंचित किया है।’’

श्री वेंकटेश्वर डेंटल कॉलेज, बेंगलुरु और केवीजी डेंटल कॉलेज, सुलिया ने छह विद्यार्थियों की ओर से अदालत का दरवाजा खटखटाया था। (याचिकाओं में) यह दावा किया गया था कि कर्नाटक परीक्षा प्राधिकरण (केईए) की वेबसाइट दो और तीन मई को उस वक्त नहीं खुल रही थी, जब विद्यार्थियों को बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी) पाठ्यक्रमों के लिए काउंसलिंग के मॉप-अप राउंड के वास्ते पंजीकरण और भुगतान करना था।

श्री वेंकटेश्वर डेंटल कॉलेज ने दावा किया था कि कॉलेज में 40 में से छह सीट खाली थीं। इसी तरह केवीजी डेंटल कॉलेज का दावा था कि कॉलेज की 100 में से चार सीट खाली थीं।

पीठ ने कहा कि यही महाविद्यालयों का असली मकसद था। अदालत ने कहा, ‘‘इस प्रकार महाविद्यालयों ने रिक्त सीट भरने का आदेश प्राप्त करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, अर्थात महाविद्यालयों की याचिकाएं अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए है, न कि छात्रों के लाभ के वास्ते।’’

याचिकाओं को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, ‘‘इस प्रकार के मुकदमे दायर करना और लड़ना कुछ और नहीं, बल्कि इस अदालत का कीमती सार्वजनिक समय बर्बाद करना है और यह प्रतिवादी-प्राधिकारियों को अनावश्यक रूप से परेशान करने के अलावा और कुछ नहीं है। चूंकि याचिकाकर्ता साफ नीयत से अदालत नहीं आए हैं, इसलिए वे इस अदालत के समक्ष किसी राहत के हकदार नहीं हैं।’’

अदालत ने कहा, ‘‘हमारा अनुभव है कि वर्षों से विभिन्न न्यायालयों के समक्ष काल्पनिक याचिकाएं दायर करने का चलन बढ़ा है। यह सुनिश्चित करना अदालतों का कर्तव्य है कि इस तरह के मुकदमों को तरजीह देने के बजाय पहली बार में ही खारिज कर दिया जाए और पात्र वादकारियों को यह समय दिया जाए।’’

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