देश की खबरें | सदी के अंत तक समुद्र की चरम घटनाएं हर साल घटित होने की आशंका : आईपीसीसी की रिपोर्ट

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की नयी रिपोर्ट में सोमवार को कहा गया कि समुद्र के स्तर की चरम घटनाएं जो पहले 100 वर्षों में एक बार होती थीं, इस सदी के अंत तक हर साल हो सकती हैं। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि समुद्र के स्तर में वृद्धि के साथ बाढ़, भारी वर्षा और ग्लेशियर का पिघलना जैसी चरम प्राकृतिक घटनाएं बढ़ने की आशंका हैं।

नयी दिल्ली/जिनेवा, नौ अगस्त जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की नयी रिपोर्ट में सोमवार को कहा गया कि समुद्र के स्तर की चरम घटनाएं जो पहले 100 वर्षों में एक बार होती थीं, इस सदी के अंत तक हर साल हो सकती हैं। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि समुद्र के स्तर में वृद्धि के साथ बाढ़, भारी वर्षा और ग्लेशियर का पिघलना जैसी चरम प्राकृतिक घटनाएं बढ़ने की आशंका हैं।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर6) ‘क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस’ में कहा गया है कि मानवीय हस्तक्षेप के कारण दुनिया के हर क्षेत्र में पर्यावरण में बदलाव आ रहा है।

आईपीसीसी कार्यकारी समूह एक की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘तटीय क्षेत्रों में 21वीं सदी के दौरान समुद्र के स्तर में निरंतर वृद्धि देखी जाएगी। निचले इलाकों में बाढ़ के साथ भूमि क्षरण की जो चरम घटनाएं पहले 100 वर्षों में एक बार होती थीं इस सदी के अंत तक हर साल होने लगेंगी।’’ एआर6 की पूरी रिपोर्ट 2022 में तैयार होगी, और यह उसका पहला भाग है।

आईपीसीसी के 195 सदस्य राष्ट्रों द्वारा 26 जुलाई से दो सप्ताह के लिए डिजिटल तरीके से बैठक में मंजूर रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि आने वाले दशकों में सभी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन में वृद्धि होगी। इसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से गर्म हवा की लहर, गर्मी के मौसम में वृद्धि होगी और ठंड की अवधि घट जाएगी। वहीं, दो डिग्री तापमान वृद्धि होने पर प्रचंड गर्मी के साथ कृषि क्षेत्र और स्वास्थ्य पर भी इसका गंभीर असर पड़ेगा।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘जलवायु परिवर्तन से केवल तापमान ही नहीं बढ़ेगा बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में भी व्यापक बदलाव होंगे। नमी के स्तर, शुष्कता में बढ़ोतरी होगी, हवा के रूख, तटीय इलाकों और समुद्र पर भी असर पड़ेगा।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘उदाहरणस्वरूप, जलवायु परिवर्तन से बारिश का रुख भी बदलता है। उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि होने की आशंका है, जबकि उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के ज्यादातर हिस्सों में इसके कम होने का अनुमान है। मॉनसून की वर्षा में परिवर्तन अपेक्षित है, जो क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होगा।’’ बहरहाल, रिपोर्ट में उम्मीद जतायी गयी है कि विज्ञान के दृष्टिकोण से तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने से इन परिवर्तनों की रफ्तार, चरम प्राकृतिक घटनाएं कम की जा सकती हैं।

आईपीसीसी रिपोर्ट के लेखकों में शामिल और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ‘इन्वायरमेंटल चेंज इंस्टीट्यूट’ के एसोसिएट निदेशक डॉ. फ्रेडरिक ओटो ने कहा, ‘‘अगर हम 2040 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के स्तर पर पहुंच जाएं तो 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक पहुंचने की दो-तिहाई संभावना है और अगर सदी के मध्य तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के स्तर पर पहुंच जाएं तो इस लक्ष्य को हासिल करने के एक तिहाई आसार हैं।’’ ओटो ने कहा, ‘‘तापमान में वृद्धि को रोकने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली अन्य गैसों का उत्सर्जन तेजी से और लगातार घटाना जरूरी है। इसके साथ ही हवा की गुणवत्ता में सुधार करने के प्रयास भी करने होंगे।’’

रिपोर्ट में कहा गया है कि हवा की गुणवत्ता में सुधार के असर तेजी से दिखेंगे लेकिन वैश्विक तापमान के स्थिर होने में 20-30 साल लग जााएंगे। धरती के गर्म होने से बर्फ का दायरा भी घटेगा, हिमनद पिघलते जाएंगे और ग्रीष्मकालीन आर्कटिक समुद्री बर्फ भी पिघल जाएंगी। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘समुद्र में भी असर दिखेगा। पानी और अम्लीय होगा और ऑक्सीजन का स्तर घट जाएगा जो कि प्रत्यक्ष तौर पर इंसानी दखल से जुड़ा हुआ है। इन बदलावों से समुद्र की पारिस्थितिकी और इस पर आश्रित लोग भी प्रभावित होंगे।’’

रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरों में जलवायु परिवर्तन के कुछ पहलुओं का असर तेजी से दिख सकता है। गर्मी बढ़ेगी (शहरी क्षेत्र आमतौर पर अपने परिवेश से अधिक गर्म होते हैं), भारी वर्षा की घटनाओं से बाढ़ की आशंका और तटीय इलाकों में स्थित शहरों में भी समुद्र के बढ़ते जल स्तर से असर पड़ेगा।

पहली बार, छठी मूल्यांकन रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन का अधिक विस्तृत क्षेत्रीय मूल्यांकन प्रदान करती है। इसमें उन उपयोगी सूचनाओं का भी जिक्र किया गया है कि कैसे खतरे का आकलन कर सकते हैं, हालात के मुताबिक कदम उठा सकते हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करके और अन्य प्रदूषणकारी कारकों को घटाकर इंसानों के पास अब भी इसकी शक्ति है कि वह अपने कदमों से जलवायु के भविष्य का निर्धारण कर सकता है।

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