देश की खबरें | भारतीय न्याय संहिता में वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित अपवाद खतरनाक संदेश देता है: तृणमूल सांसद

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नयी दिल्ली, 12 फरवरी तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने बुधवार को कहा कि भारतीय न्याय संहिता में वैवाहिक बलात्कार के लिए दिया गया ‘पुराना’ अपवाद एक खतरनाक संदेश देता है कि एक बार शादी हो जाने के बाद महिला की सहमति का अधिकार अप्रासंगिक हो जाता है।

पिछले हफ्ते उक्त अपवाद को खत्म करने के लिए एक निजी विधेयक पेश करने वाले ओब्रायन ने इसे महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन बताया, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और गोपनीयता शामिल है।

राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के संसदीय दल के नेता ने ओब्रायन भारतीय न्याय संहिता के लागू होने से पहले इसका अध्ययन करने वाली संयुक्त संसदीय समिति का हिस्सा थे।

उन्होंने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा कि विपक्षी सांसदों ने समिति को सौंपे गए अपनी असहमति टिप्पणी में अपवाद का उल्लेख किया था।

ओब्रायन ने कहा, ‘‘भारतीय न्याय संहिता (इस सरकार द्वारा पारित तीन नए आपराधिक कानूनों में से एक) की धारा 63 वैवाहिक बलात्कार के लिए एक पीड़ादायी अपवाद प्रदान करती है, जो महिलाओं की स्वायत्तता और समानता को कमजोर करती है। यह पुरातन अपवाद एक खतरनाक संदेश देता है - कि एक बार शादी हो जाने के बाद महिला का सहमति का अधिकार अप्रासंगिक हो जाता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘पुरानी मान्यताओं और पितृसत्तात्मक व्यवस्थाओं में निहित यह अपवाद न केवल महिलाओं की गरिमा का अपमान है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और गोपनीयता सहित महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का भी सीधा उल्लंघन है।’’

तृणमूल नेता ने इसे ब्रिटिश औपनिवेशिक कानूनी प्रणाली की विरासत बताया, जो पुरुषों और महिलाओं की समानता को मान्यता नहीं देतीं।

ओब्रायन ने कहा, ‘‘परिवर्तन के लिए कई सिफारिशों के बावजूद यह विचित्र अपवाद बना हुआ है।’’

उन्होंने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य के रूप में, जिसने विधेयकों के अधिनियमन से पहले ‘जल्दबाजी में’ उनकी जांच की, उन्होंने और विपक्षी दलों के अन्य सांसदों ने अपवाद पर आपत्ति जताते हुए असहमति नोट प्रस्तुत किए थे।

उन्होंने कहा, ‘‘महिला के यौन अधिकार उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण घटक हैं। अपवाद महिलाओं को अपने शरीर पर नियंत्रण से वंचित करता है। जैसा कि न्यायालयों ने माना है, प्रजनन विकल्पों में यौन संबंध से दूर रहने, गर्भनिरोधक का उपयोग करने या बच्चे पैदा न करने का निर्णय लेने का अधिकार शामिल है। विवाह के भीतर महिलाओं को इस विवेकाधिकार से वंचित करना लिंग आधारित भेदभाव और हिंसा को बढ़ाता है।’’

ओब्रायन ने कहा कि इस अपवाद को हटाने में सरकार की विफलता ने हिंसा और भेदभाव के चक्र को और भी आगे बढ़ाया है जो विवाह और समाज में महिलाओं को परेशान करता रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार, उसके सहयोगी और विपक्ष के सदस्य एक साथ मिलकर ऐसा कानून पारित करें जो महिलाओं की गरिमा और समानता को दर्शाता हो।’’

बलात्कार को परिभाषित करने वाली भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 के तहत, ‘‘किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन क्रियाएं, जिसमें पत्नी की आयु 18 वर्ष से कम न हो’’ के लिए अपवाद प्रदान किया गया है, और कहा गया है कि यह बलात्कार नहीं है।

ओब्रायन द्वारा प्रस्तुत निजी विधेयक, ‘भारतीय न्याय संहिता (संशोधन) विधेयक, 2024’ इस अपवाद को प्रतिस्थापित करने का प्रस्ताव करता है।

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