इक्वाडोर में भी इच्छा मृत्यु की इजाजत मिली
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

इक्वाडोर की अदालत ने मृत्यु शैया पर पड़े मरीजों के लिए इच्छा मृत्यु की इजाजत दे दी है. ऐसा करने वाला यह दूसरा दक्षिण अमेरिकी देश है.बुधवार को इक्वाडोर ने इच्छा मृत्यु या दया मृत्यु को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. ऐसा मृत्यु शैया पर पड़े एक मरीज द्वारा दायर मुकदमे की प्रतिक्रिया में हुआ.

इस मुकदमे की सुनवाई कर रही देश की संवैधानिक पीठ के नौ जजों में से सात की सहमति से यह फैसला सुनाया गया, जिससे डॉक्टरों को ऐसे मरीजों को मरने में मदद करने का अधिकार मिलेगा, जिनके ठीक होने की कोई गुंजाइश नहीं है.

अदालत ने अपने फैसले में कहा, "हत्या के लिए सजा का कानून ऐसे डॉक्टर पर लागू नहीं हो सकता जो इच्छा मृत्यु के तहत किसी व्यक्ति के सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार की सुरक्षा के लिए ऐसा करता है.”

पाओला रोल्डन का मामला

यह मुकदमा एक मरीज पाओला रोल्डन ने बीते साल अगस्त में दायर किया था. रोल्डन एमिट्रोफिक लैटरल स्क्लेरोसिस (एएलएस) नाम की एक बीमारी से ग्रस्त हैं. यह एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसे लू गेरिग्स डिजीज भी कहा जाता है.

अपनी अपील में रोल्डन ने इक्वाडोर के संविधान में पीनल कोड की एक धारा को चुनौती दी थी जिसमें हत्या करने पर 10 से 13 साल तक की सजा का प्रावधान है. नवंबर में हुई सुनवाई में उन्होंने एक वीडियो के जरिए अदालत में गवाही दी थी. इस गवाही में उन्होंने कहा, "मैं सुकून से सो जाना चाहती हूं. जो मेरे साथ हो रहा है वह दर्दनाक, अकेलेपन से लदा हुआ और क्रूर है.”

बिस्तर पर पड़ीं रोल्डन ने कहा, "यह लड़ाई मरने के लिए नहीं है. मुझे पता है मैं मर रही हूं. यह लड़ाई इस बात की है मेरी मौत कैसे होती है.”

इस मामले में इक्वाडोर ने कोलंबिया का ही रास्ता अपनाया है जहां 1997 में ही इच्छा मृत्यु को कानूनी इजाजत मिल गई थी. युरुग्वे और चिली में भी नीति-निर्माताओं के बीच इस मुद्दे पर बहस चल रही है. इसके अलावा मेक्सिको में एक कानून मौजूद है जिसे आमतौर पर ‘अच्छी मृत्यु' कानून कहा जाता है. इसके तहत मरीज या उसके परिजनों को मरीज को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाने का अधिकार है.

दर्द से छुटकारा पाने की स्वतंत्रता

इक्वाडोर पारंपरिक रूप से एक रूढ़िवादी देश माना जाता है लेकिन रोल्डन की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने उनके हक में फैसला सुनाया. जजों ने कहा, "अगर कोई व्यक्ति ऐसी स्थिति से गुजर रहा है तो उसे जिंदा रहने के लिए मजबूर करना तार्किक नहीं होगा. जब किसी व्यक्ति का निजी विकास प्रभावित होता है तो उसे सूचनाओं के आधार पर अपने बारे में फैसले लेने की स्वतंत्रता है. इसमें ठीक ना हो सकने वाली चोट या बीमारी से हो रही अत्यधिक पीड़ा को खत्म करने का विकल्प भी शामिल है.”

अदालत ने स्वास्थ्य मंत्रालय को कहा कि दो महीने के भीतर नियमों का एक मसौदा तैयार करे. इसके अलावा छह महीने के भीतर इच्छा मृत्यु कानून का बिल तैयार करना होगा और एक साल के भीतर इसे संसद से पारित कराना होगा.

हालांकि रोल्डन की वकील फारिथ सिमोन ने कहा कि कोर्ट का फैसला तुरंत लागू किया जा सकता है. सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "फैसला फौरी तौर पर लागू किया जा सकता है.”

जब रोल्डन का मुकदमा अपने अंतिम चरण में था तब उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "कई बार मुझे लगा कि मैं इस मुकदमे का सुखद अंत नहीं देख पाऊंगी. जैसे कोई पेड़ लगाता है ताकि कोई और उसके नीचे बैठकर उसकी छाया का आनंद ले सके.”

कुछ ही देशों में है अधिकार

दुनिया के कुछ ही देशों में इच्छा मृत्यु को कानूनी इजाजत दी गई है. ऑस्ट्रेलिया के अलावा बेल्जियम, कनाडा, कोलंबिया, लग्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, स्पेन में इच्छा मृत्यु का अधिकार दिया गया है.

पुर्तगाल भी ऐसा कानून पारित करने की तैयारी में है. अर्जेन्टीना में कुछ बदलावों के साथ इलाज से इनकार करने का अधिकार दिया गया है. इसी तरह जर्मनी में भी लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने का अधिकार दिया गया है.

ऑस्ट्रेलिया में इच्छा मृत्यु को कानूनन लागू करने वाला विक्टोरिया पहला राज्य था. वहां 2017 में ऐसा कानून लागू किया गया था. उसके बाद अन्य सभी राज्यों ने ऐसे ही कानून लागू कर दिए. हालांकि सभी राज्यों के कानूनों में थोड़ा-बहुत अंतर है लेकिन योग्यता के मानकों को लेकर सभी एक जैसे हैं और न्यूनतम आयु सीमा 18 साल रखी गयी है.

2017 विक्टोरिया में कानून के लागू होने के बाद से देशभर में सैकड़ों लोग इच्छा मृत्यु चुन चुके हैं. विक्टोरिया में ऐसा करने वालों की संख्या 600 से ज्यादा है. इनमें से 75 फीसदी लोगों की आयु 65 या उससे ऊपर थी और 80 प्रतिशत से ज्यादा कैंसर पीड़ित थे. वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया राज्य में कानून लागू होने के बाद एक साल के भीतर ही 190 लोग इच्छा मृत्यु को चुन चुके थे.

भारत में इच्छा मृत्यु अभी भी एक अपराध है और सिर्फ उन्हीं लोगों को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है जिनका मस्तिष्क काम करना बंद कर चुका है. ऐसा परिजनों की सहमति से किया जा सकता है.

विवेक कुमार (रॉयटर्स)