CAA Protest: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- विरोध करने के अधिकार की कोई सार्वभौमिक नीति नहीं हो सकती

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि विरोध प्रकट के अधिकार के मामले में कोई सार्वभौमिक नीति नहीं हो सकती है और परिस्थितियों के अनुरूप संतुलन बनाये रखने के लिये सड़कें अवरूद्ध करने जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने जैसी संतुलित कार्रवाई जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट (Photo Credits: PTI/File Image)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि विरोध प्रकट के अधिकार के मामले में कोई सार्वभौमिक नीति नहीं हो सकती है और परिस्थितियों के अनुरूप संतुलन बनाये रखने के लिये सड़कें अवरूद्ध करने जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने जैसी संतुलित कार्रवाई जरूरी है.  शीर्ष अदालत ने राजधानी दिल्ली के शाहीनबाग में पिछले साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में सड़क अवरूद्ध किये जाने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुये ये टिप्पणी की. न्यायालय ने कहा कि इस मामले में फैसला बाद में सुनाया जायेगा.

कोविड-19 महामारी की आशंका और इस वजह से निर्धारित मानदंडों के पालन के दौरान यहां पर स्थिति सामान्य हुयी थी. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा, ‘‘ कुछ आकस्मिक परिस्थितियों ने इसमें अहम भूमिका निभाई और यह किसी के हाथ में नहीं था। ईश्वर ने खुद ही इसमें हस्तक्षेप किया. शशांक देव सुधि सहित विभिन्न अधिवक्ताओं की दलीलों का संज्ञान लेते हुये पीठ ने कहा, ‘‘हमें विरोध प्रदर्शन के अधिकार और सड़कें अवरूद्ध करने में संतुलन बनाना होगा। हमें इस मुद्दे पर विचार करना होगा। इसके लिये कोई सार्वभौमिक नीति नहीं हो सकती क्योंकि मामले दर मामले स्थिति अलग-अलग हो सकती है।’’’ यह भी पढ़े | बिहार: CM नीतीश कुमार ने राज्यसभा में हुए हंगामे को बताया गलत, कहा- जो भी हुआ वह बुरा हुआ.

पीठ ने कहा, ‘‘संसदीय लोकतंत्र में संसद और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो सकता है लेकिन सड़कों पर इसे शांतिपूर्ण रखना होगा. इस समस्या को लेकर याचिका दायर करने वाले वकीलों में से एक अमित साहनी ने कहा कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुये इस तरह के विरोध प्रदर्शनों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘इसे 100 दिन से भी ज्यादा चलने दिया गया और लोगों को इससे बहुत तकलीफें हुयीं। इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिए. हरियाणा में कल चक्का जाम था। उन्हांने 24-25 सितंबर को भारत बंद का भी आह्वाहन किया है.

इस मामले में हस्तक्षेप करने वाले एक व्यक्ति की ओर से अधिवक्ता महमूद प्राचा ने कहा कि शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रकट करने का अधिकार है और ‘‘एक राजनीतिक दल के कुछ लोग वहां गये और उन्होंने दंगा किया. उन्होंने कहा, ‘‘हमें विरोध करने का अधिकार है। राज्य सरकार की मशीनरी पाक साफ नहीं है। एक राजनीतिक दल के सदस्य पुलिस के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने स्थिति बिगाड़ दी. पीठ ने सुनवाई पूरी करते हुये कहा कि उसने प्रयोग के तौर पर बातचीत के लिये नियुक्तियां कीं थी और उन्होंने कुछ सुझाव दिये हैं, जिन पर गौर किया जा सकता है.

पीठ ने कहा कि मध्यस्थता के लिये लोगों को भेजने का प्रयोग सफल हो भी सकता था और नहीं भी लेकिन कोविड-19 महामारी का भी इस स्थिति पर प्रभाव हो सकता है. केन्द्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विरोध करने का अधिकार निर्बाधित नहीं है। उन्होंने कहा कि इस बारे में कुछ फैसले भी हैं. शीर्ष अदालत ने इससे पहले नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सड़क अवरूद्ध करने वाले प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अमित साहनी, भाजपा के पूर्व विधाक नंद किशोर गर्ग और आशुतोष दुबे की याचिकाओं पर दलीलें सुनीं थीं.

साहनी ने कालिन्दी कुंज-शाहीन बाग पर यातायात सुगम बनाने का दिल्ली पुलिस को निर्देश देने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने स्थानीय प्राधिकारियों को कानून व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुये इस स्थिति से निबटने का निर्देश दिया था. इसके बाद, साहनी ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। नंद किशोर गर्ग ने अलग से अपनी याचिका दायर की थी जिसमें प्रदर्शनकारियों को शाहीन बाग से हटाने का अनुरोध किया गया था.

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