दिल्ली उच्च न्यायलय ने यौन उत्पीड़न पीड़िताओं की गर्भसमाप्ति के निर्देश के पालन होने में विलंब पर जतायी आपत्ति
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नयी दिल्ली, 4 नवंबर : दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के चिकित्सीय गर्भपात को लेकर चिकित्सकों और पुलिस द्वारा उसके निर्देशों का पालन नहीं करने पर ''कड़ी आपत्ति'' व्यक्त की है. उच्च न्यायालय ने कहा कि अधिकारियों की ऐसी गलतियां नाबालिगों के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं. उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म की एक नाबालिग पीड़िता के गर्भवती होने और उसके द्वारा अदालत से 25 महीने के अपने गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति मांगने के मामले में जनवरी में कुछ दिशा-निर्देश और निर्देश पारित किए थे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मेडिकल बोर्ड गठित करने के लिए अदालत से निर्देश मांगने और उसके बाद प्रक्रिया के लिए आदेश जारी करने की प्रक्रिया में दुष्कर्म पीड़ितों की गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति के लिए कीमती समय बर्बाद न हो.

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि निर्देश यह ध्यान में रखते हुए दिये गए थे कि ऐसी गर्भावस्था का हर दिन, हर घंटा, हर मिनट पीड़िता और उसके परिवार के लिए न केवल दर्दनाक होता है बल्कि पीड़िता तथा उसके परिवार के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. अदालत ने कहा कि यह निर्देश लेकिन गर्भावस्था की समाप्ति की स्थिति में यह उसके शारीरिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है. उच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के कारण गर्भवती हुई 16 वर्षीय एक किशोरी के मामले में शुक्रवार को सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. नाबालिग ने अपनी 25 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया है जबकि कानून के मुताबिक 24 सप्ताह के गर्भ को ही समाप्त करने की अनुमति है. अदालत ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि भविष्य में अधिकारियों की ओर से इस तरह की चूक को गंभीरता से लिया जाएगा क्योंकि यह पीड़िता के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है और हर गुजरता दिन नाबालिग के जीवन के लिए खतरा बन जाता है तथा उसकी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करना मुश्किल हो जाता है. यह भी पढ़ें : Mukesh Ambani Threat Case: मुकेश अंबानी को धमकी देने का मामला, मुंबई क्राइम ब्रांच ने एक आरोपी को गुजरात के गांधीनगर से किया गिरफ्तार

अदालत को सूचित किया गया कि जब पीड़िता के परिवार ने यहां गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल से संपर्क किया, तो चिकित्सकों ने न्यायिक आदेश के अभाव में गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति के संबंध में राय देने से इनकार कर दिया था. अदालत ने कहा कि उसके जनवरी के निर्देशों के अनुसार, अस्पताल और चिकित्सक कोई चिकित्सीय राय देने के लिए बाध्य हैं कि क्या यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन की प्रक्रिया से गुजरने के लिए शारीरिक रूप से सही अवस्था में है. अदालत ने इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई कि पुलिस और अस्पतालों द्वारा उसके दिशा-निर्देशों और आदेशों का पालन नहीं हो रहा है. न्यायमूर्ति शर्मा ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए निर्देश दिया कि नाबालिग पीड़िता को शनिवार को पुलिस अधिकारियों द्वारा जीटीबी अस्पताल ले जाया जाए और अस्पताल अधीक्षक यह सुनिश्चित करेंगे कि उसकी तुरंत मेडिकल बोर्ड द्वारा जांच की जाए. अदालत ने आदेश दिया कि यदि मेडिकल बोर्ड की राय है कि पीड़िता गर्भावस्था को चिकित्सीय रूप से समाप्त कराने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक है, तो अधीक्षक यह सुनिश्चित करेगा कि प्रक्रिया को बेहतर होगा 24 घंटे के भीतर पूरा करने के लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाएं की जाएंगी.