‘डिजिटल रुपया’ लाने का फैसला रिजर्व बैंक की सलाह से सोच-समझकर लिया गया- मंत्री निर्मला सीतारमण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Photo Credits: ANI)

बेंगलुरु, 8 मार्च : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि केंद्रीय बैंक द्वारा संचालित डिजिटल मुद्रा के स्पष्ट लाभ हैं और ‘डिजिटल रुपया’ लाने का फैसला भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सलाह से सोच-समझकर लिया गया है. सीतारमण ने मंगलवार को यहां इंडिया ग्लोबल फोरम के वार्षिक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए डिजिटल रुपये पर एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘यह केंद्रीय बैंक- भारतीय रिजर्व बैंक की सलाह से सोच-समझकर किया गया फैसला है... हम चाहते हैं कि वे इसे जिस तरह से लाना चाहें, उस तरह डिजाइन करें, लेकिन हम केंद्रीय बैंक से इस साल मुद्रा लाने की उम्मीद करते हैं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि केंद्रीय बैंक द्वारा संचालित डिजिटल मुद्रा के स्पष्ट लाभ हैं, क्योंकि आज के दौर में देशों के बीच होने वाले थोक भुगतान, संस्थानों के बीच बड़े लेनदेन और प्रत्येक देश के केंद्रीय बैंकों के बीच बड़े लेनदेन, ये सभी डिजिटल मुद्रा के जरिये बेहतर ढंग से हो सकते हैं.’’ क्रिप्टो क्षेत्र को विनियमित करने के बारे में पूछे जाने पर वित्त मंत्री ने कहा कि हितधारकों से परामर्श के बाद सरकार इस बारे में फैसला करेगी. उन्होंने कहा, ‘‘परामर्श जारी है .... इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति का सुझाव देने के लिए स्वागत है. परामर्श की प्रक्रिया पूरी होने के बाद मंत्रालय इसपर विचार करेगा. हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हम किसी कानूनी अनिवार्यता से परे नहीं जा रहे हैं, उसके बाद हम इसपर अपना रुख सामने लाएंगे.’’ यह भी पढ़ें : Tamil Nadu: तमिलनाडु का युवा यूक्रेन की सेना में हुआ शामिल, रूसी सैनिकों के खिलाफ लड़ेगा लड़ाई

यह पूछने पर कि क्या वह भारत में क्रिप्टो के लिए भविष्य देखती हैं, उन्होंने कहा, ‘‘कई भारतीयों ने इसमें अत्यधिक संभावनाएं देखी हैं और इसलिए मुझे इसमें राजस्व की गुंजाइश दिखाई देती है.’’ हाल में पेश किए गए आम बजट के बारे में सीतारमण ने कहा कि बजट में ‘अमृत काल’ का उल्लेख अधिक से अधिक डिजिटलीकरण और प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के संबंध में है. उन्होंने कहा कि इस बजट में 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयों (डीबीयू) की घोषणा की गई है. सीतारमण ने कहा कि भारत को इनकी जरूरत है, क्योंकि आजादी के 75 वर्षों में एक राष्ट्रीयकृत बैंकिंग नेटवर्क के बावजूद बैंकिंग और वित्तीय समावेशन पूरा नहीं हो सका.