नवलखा और तेलतुमबडे को जेल भेजने का न्यायालय का फैसला निराशाजनक : एमनेस्टी
एआईआई के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने बयान में कहा कि न्यायालय का फैसला पूर्व में दिए फैसले के भी विपरीत है जिसमें कोरोना वायरस महामारी के चलते देश की जेलों में भीड़ कम करने को कहा गया था और इस प्रकार दोनों कार्यकर्ताओं के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
नयी दिल्ली, 11 अप्रैल एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया (एआईआई) ने 2018 भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुमबडे को जेल प्रशासन के समक्ष आत्मसमर्पण करने के निर्देश को ‘‘निराशाजनक’’ करार दिया है।
एआईआई के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने बयान में कहा कि न्यायालय का फैसला पूर्व में दिए फैसले के भी विपरीत है जिसमें कोरोना वायरस महामारी के चलते देश की जेलों में भीड़ कम करने को कहा गया था और इस प्रकार दोनों कार्यकर्ताओं के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा ‘‘भारत में हाशिये पर रह रहे लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए नवलखा और तेलतुमबडे द्वारा किए गए काम का उल्लेख करते हुए मानवाधिकार संगठन ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी आंतकवाद निरोधी कानून के तहत की गई है जिसका बार-बार इस्तेमाल सरकार के आलोचकों को शांत कराने में हुआ है।’’
कुमार ने कहा, ‘‘एआईआई का मानना है कि भीमा कोरोगांव में इन दो लोगों सहित नौ कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित है और इसका मकसद शांतिपूर्ण मतभेद को शांत कराना है।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि भारत सरकार मानवाधिकार संरक्षकों की रक्षा करने और अभिव्यक्ति एवं एकत्र होने की आजादी को कायम रखने में नाकाम हुई है।
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने 16 मार्च को दोनों को तीन हफ्ते में आत्मसमर्पण करने को कहा था लेकिन नवलाखा और तेलतुमबडे ने इस अवधि को बढ़ाने की मांग की थी। हालांकि, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ ने बुधवार को कहा कि आरोपी अग्रिम जमानत खारिज करने और तीन हफ्ते में आत्मसमर्पण करने के फैसले का सम्मान करें।
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