देश की खबरें | अदालत ने युवक को 75 लाख का मुआवजा देने वाले अपने आदेश पर रोक लगाई
एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली, नौ सितंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को अपने उस आदेश के अमल पर रोक लगा दी जिसमें एक युवक के परिवार को 75 लाख रुपये के मुआवजे का भुगतान करने के लिए दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया गया था। यह युवक सड़क पर एक साथ लगाए गए अवरोधकों की वजह से दुर्घटना का शिकार हुआ था और तब से ‘वेजिटेटिव’ अवस्था में है।

‘वेजिटेटिव’ अवस्था में व्यक्ति जागृत स्थिति में रहता है, लेकिन वह किसी भी चीज पर प्रतिक्रिया नहीं करता है।

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मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने एकल न्यायाधीश के 18 मई के आदेश के अमल पर रोक लगा दी है। उस आदेश में दिल्ली पुलिस के अपने कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही बरतने और नाकाम रहने के लिए पीड़ित को क्षतिपूर्ति के लिए पात्र ठहराया गया था।

खंडपीठ ने 18 मई के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की अपील पर आदेश पारित किया है।

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उच्च न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया और अंतिम सुनवाई के लिए मामले को 22 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता गौतम नारायण ने पीठ को कहा कि एकल न्यायाधीश के समक्ष उठाए गए मुद्दे रिट याचिका में विचारणीय नहीं है, क्योंकि इसमें तथ्यों का प्रश्न शामिल है और क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी मुकदमा दायर किया जा सकता था।

वकील ने पीठ को बताया कि उच्चतम न्यायालय का एक फैसला है जो कहता है कि जिन मामलों में तथ्यों का प्रश्न शामिल हो, उनमें केवल दीवानी मुकदमा ही विचारणीय है।

उन्होंने कहा कि 75 लाख रुपये की रकम को दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के यहां जमा करा दिया गया है।

पीठ ने निर्देश दिया कि राशि को किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा में रखा जाए।

एकल न्यायाधीश ने कहा था कि कि अवरोधकों पर ऐसी कोई चीज नहीं लगी हुई थी, जिससे वे दूर से दिखाई दे सकें।

उच्च न्यायालय ने 2015 की इस घटना के संबंध में याचिकाकर्ता धीरज कुमार को 75 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। उस समय कुमार 21 साल के थे।

घटना दिसंबर 2015 में वेस्ट पंजाबी बाग इलाके के निकट हुई थी, उस वक्त कुमार और उनके पिता मोटरसाइकिल पर घर जा रहे थे। इस दौरान उनकी मोटर साइकिल पुलिस अवरोधकों से टकरा गई थी ।

पीड़ित को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कई ऑपरेशनों और इलाज के बाद उसे बेहोशी की हालत में ही छुट्टी दी गई।

अदालत को बताया गया कि अस्पताल से छुट्टी मिलने के सारांश रिकॉर्ड के मुताबिक वह स्पष्ट रूप से सोचने या ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ था और अब तक उसकी हालत ऐसी ही है।

युवक के पिता ने उच्च न्यायालय का रुख कर इलाज का खर्च, आय का नुकसान समेत अन्य कारणों का हवाला देकर मुआवजे का अनुरोध किया था।

वहीं, पुलिस ने कहा था कि हादसा कुमार की लापरवाही के कारण हुआ। वह तेज गति से बाइक चला रहा था और अवरोधकों से टक्कर नहीं हो, इसके लिए समय पर ब्रेक नहीं लगा पाया।

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