देश की खबरें | न्यायालय ने असम में अप्रवासियों को नागरिकता देने पर आंकड़ा मांगा

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के लाभार्थियों पर आंकड़ा मांगा और कहा कि उसके सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह संकेत दे सके कि 1966 और 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रभाव इतना बड़ा था कि इसका जनसांख्यिकीय और सीमावर्ती राज्य की सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ा।

नयी दिल्ली, पांच दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के लाभार्थियों पर आंकड़ा मांगा और कहा कि उसके सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह संकेत दे सके कि 1966 और 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रभाव इतना बड़ा था कि इसका जनसांख्यिकीय और सीमावर्ती राज्य की सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ा।

असम में सीमा पार घुसपैठ की समस्या को स्वीकार करते हुए, प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बांग्लादेश की मुक्ति के लिए 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के मानवीय पहलू का उल्लेख किया, जिसके कारण शरणार्थी आए।

पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने असम में अवैध प्रवासियों से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता की जांच करने के लिए 17 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।

नागरिकता कानून की धारा 6ए को असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता से जुड़े मुद्दे से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में जोड़ा गया था।

इस प्रावधान में कहा गया है कि 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के अनुसार जो लोग एक जनवरी, 1966 को या उसके बाद, लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से असम आए हैं और तब से असम के निवासी हैं, उन्हें नागरिकता के लिए धारा 18 के तहत स्वयं का पंजीकरण कराना होगा।

परिणामस्वरूप, प्रावधान में असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए ‘कट-ऑफ’ (अंतिम) तारीख 25 मार्च, 1971 तय की गई।

वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ से कहा कि शरणार्थियों की आमद और विशेष प्रावधान के कारण मूल निवासियों के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और अन्य अधिकार प्रभावित हो रहे हैं। इस पर पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता से कहा, “लेकिन आपके तर्क का परीक्षण करने के लिए हमारे सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह बताए कि 1966-71 के बीच आए नागरिकों को कुछ लाभ देने का प्रभाव इतना गंभीर था कि राज्य की जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक पहचान उन पांच वर्षों से प्रभावित हुई थी।”

न्यायालय ने कहा, “हां, हमें यह देखना होगा कि क्या धारा 6ए का प्रभाव ऐसा था कि 1966 से 1971 के बीच राज्य में जनसांख्यिकी में इस हद तक आमूलचूल परिवर्तन हुआ कि असम की सांस्कृतिक पहचान प्रभावित हो गयी।”

पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से 1966 से 16 जुलाई 2013 तक कानून के लाभार्थियों पर डेटा प्रदान करने के लिए कहा। मेहता ने आश्वासन दिया कि वह इसे दाखिल करेंगे।

सॉलिसिटर जनरल ने पहले राज्यसभा में एक सांसद द्वारा पेश किए गए आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि 1966 और 1971 के बीच 5.45 लाख अवैध अप्रवासी असम आए थे। उन्होंने कहा कि 1951 से 1966 तक यह आंकड़ा 15 लाख था।

प्रावधान का विरोध करने वाले असम के कई याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए दीवान ने कहा कि इसने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है।

मामले में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।

याचिकाकर्ताओं ने केवल पूर्वोत्तर राज्य पर लागू होने वाली नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देते हुए न्यायालय से कहा कि इससे असम के स्थानीय लोग अपनी ही मातृभूमि में भूमिहीन और विदेशी बनने के लिए बाध्य हैं।

इस मुद्दे पर 2009 में गैर सरकारी संगठन असम पब्लिक वर्क्स द्वारा दायर याचिका सहित कम से कम 17 याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं।

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