नयी दिल्ली, 18 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सड़क हादसे में मृत व्यक्ति के परिजनों को 50 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा दिए जाने के खिलाफ उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और पीड़ित के परिवार को मुआवजा देने का निर्देश दिया।
न्यायधीश न्यायमूर्ति बी आर गवई एवं के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का आदेश ‘अजीब’ था।
सतना जिले में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी) ने पीड़ित की पत्नी और बेटे के दावे को स्वीकार कर लिया था। अधिकरण ने पीड़ित के परिवार को 50,41,289 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया ।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें आश्चर्य है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 173 के तहत दायर पहली अपील में, उच्च न्यायालय ने मामले को नजरअंदाज कर दिया और एक संक्षिप्त आदेश द्वारा एमएसीटी द्वारा पारित फैसले को पलट दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 173 के तहत अपील, पहली अपील की प्रकृति की थी और (उच्च न्यायालय द्वारा) ‘कम से कम’ यह अपेक्षित था कि एमएसीटी के समक्ष रखे गए ‘मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण’ किया जाए।
शीर्ष अदालत का फैसला पीड़ित के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर अपील पर आया, जिन्होंने अगस्त, 2023 में पारित उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।
पीठ ने कहा कि उसने मामले को उच्च न्यायालय द्वारा नए सिरे से विचार के लिए वापस भेजने पर विचार किया।
अदालत ने कहा कि चूंकि घटना वर्ष 2018 की है, और पहले ही छह साल बीत चुके हैं, इसलिए हमें लगा कि आगे की कोई भी देरी पहले से ही तबाह परिवार की पीड़ा को और बढ़ा देगी ।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस आधार पर निर्णय को रद्द कर दिया कि दावेदारों ने यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं पेश किया कि दुर्घटना मामले में शामिल ट्रक से हुई थी।
यह रिकॉर्ड में आया कि पीड़ित मैहर तहसील में सहायक पोस्ट मास्टर के रूप में काम कर रहा था और 18 जून, 2018 को घर वापस लौटते समय वह गाड़ी चला रहा था, जब एक तेज रफ्तार ट्रक ने उसकी कार को टक्कर मार दी।
दावेदारों ने कहा कि उसे रीढ़ की हड्डी टूटने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन 28 जून, 2018 को उसकी मौत हो गई।
एमएसीटी द्वारा पीड़ित के परिवार के सदस्यों को मुआवजा दिए जाने के बाद, बीमा कंपनी ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ हमें लगता है कि उच्च न्यायालय का फैसला पूरी तरह से अस्वीकार्य है।’’
एमएसीटी के इस निष्कर्ष को न्यायालय ने बहाल रखा कि मौत लापरवाही से चलाए जा रहे ट्रक के कारण हुई थी।
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