नयी दिल्ली, नौ जून सहकारी संस्था हाफेड की ओर से सरसों बिक्री के लिए निविदा मंगाने के बीच बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में बाकी सभी तेल तिलहन कीमतों पर दवाब कायम हो गया तथा उनके दाम में गिरावट आई।
सरसों के महंगा होने से सरसों खल की जगह बिनौला खल की मांग बढ़ने से केवल बिनौला तेल और बिनौला खल के दाम मजबूत बंद हुए।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि सरसों बिक्री की यह पहल ऐसे समय में हो रही है जब किसानों के पूरी ऊपज अभी खपे नहीं हैं। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर किसी हालत में बिक्री करने को राजी नहीं है। वह खाद्यतेलों का आयात बढ़ने, सरसों के दाम और टूटने जैसी अफवाहों से मुंह फेरे हुए हैं और अपनी ऊपज को सही दाम मिलने के इंतजार में रोक रहे हैं।
सरसों बिकवाली की इस पहल के बीच विशेषकर खाद्यतेल उद्योग के कारोबारी बहुत परेशान हैं जो रोज ब रोज सरसों की घट-बढ़ से बेहाल हैं। वैसे देखें तो तिलहन किसान, तेल कारोबारी एवं उद्योग तो परेशान हैं ही उपभोक्ता भी इसलिए परेशान हैं कि क्योंकि उन्हें ऐसी किसी गिरावट का लाभ नहीं मिल रहा है और बाजार में उन्हें खाद्यतेल महंगे में ही खरीदना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा परिस्थिति से तेल तिलहन उद्योग को निकालना अब सरकार के लिए आसान नहीं है और आगे चलकर यह कष्टकारी स्थिति बन सकती है। सरकार को देश में तेल तिलहन उत्पादन बढ़ाने और सभी अंशधारकों को लाभ दिलाने के मकसद से एक सुस्पष्ट नीति बनानी चाहिये जिससे देश का तेल तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़े और मवेशी आहार के लिए खल की उपलब्धता में सुधार हो।
सूत्रों ने कहा कि सरसों के दाम महंगा होने की वजह से इसके खल के दाम भी मजबूत हुए हैं। सरसों के दाम में आई तेजी की वजह से बिनौल खल की मांग बढ़ी गई है। मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसी जगहों पर बिनौले की आवक लगभग खत्म हो चली है। कपास का अधिकांश ऊपज बाजार में खप चुका है और अगली फसल आने में अभी देर है।
पंजाब सहित कुछ राज्यों में कपास खेती का रकबा भी घटने की सूचना है। उन्होंने कहा कि खल की कमी की वजह से अभी एकदम हाल ही में ‘अमूल’ ब्रांड ने अपने दूध के दाम में तीन रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। दूध् की खपत खाद्यतेल मुकाबले लगभग सात गुना अधिक है।
सूत्रों ने कहा कि देश में मवेशी आहार के लिए सालाना 130-140 लाख टन खल की आवश्यकता होती है और यह मांग सालाना 5-10 प्रतिशत बढ़ रही है। देश में खल का उत्पादन लगभग 110 लाख टन का होता है। लेकिन वायदा कारोबार में लगभग पिछले छह महीने से बिनौले खल का भाव नीचे चला कर रखा गया है।
उन्होंने कहा कि पिछले फसल में से अगस्त महीने तक के लिए बिनौला खल का लगभग 90 हतार टन का सौदा हो चुका है और वायदा कारोबार के पास लगभग 70 हजार टन का ही स्टॅक है। असली बिनौला खल का हाजिर भाव 400-500 रुपये क्विन्टल बढ़े भी हैं। तो फिर वायदा कारोबार में ऐन बिजाई के मौसम में यह भाव 400-500 रुपये क्विन्टल नीचे कैसे चलाया जा रहा है?
इस वजह से विशेषकर पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में कपास बुवाई का रकबा और उत्पादन दोनों ही घटे हैं।
उन्होंने कहा कि डीओसी आयात मनमर्जी से किया जा सकता है पर आयात के माध्यम से बिनौला खल का आयात 30-40 हजार टन का ही किया जा सकता है जो गुणवत्ता में भी स्तरीय नहीं होते। ऐसे में खल की बढ़ती मांग को कैसे पूरा किया जायेगा, इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिये।
उन्होंने आगे बताया कि विदेशों में अधिकतम साल्वेंट प्लांट हैं जिससे तिलहन से केवल डी-आयल्ड केक (डीओसी) निकलता है जिसे मुर्गीदाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। इसलिए विदेशों से खल का बड़ी मात्रा में आयात करना भी संभव नहीं है। नयी सरकार को समय रहते इस दिशा में कोई ना कोई रास्ता निकालना होगा।
बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 100 रुपये की गिरावट के साथ 5,950-6,010 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 275 रुपये घटकर 11,450 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 35-25 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 1,865-1,965 रुपये और 1,865-1,990 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 110-110 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,730-4,750 रुपये प्रति क्विंटल और 4,530-4,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
इसी तरह, सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल का भाव क्रमश: 50 रुपये, 50 रुपये और 10 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 10,350 रुपये और 10,150 रुपये और 8,850 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में ऊंचे भाव की वजह से कम कारोबार के बीच मूंगफली तेल-तिलहन कीमतें अपरिवर्तित रहीं। मूंगफली तिलहन 6,125-6,400 रुपये क्विंटल, मूंगफली गुजरात 14,650 रुपये क्विंटल और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल के भाव भी 2,220-2,520 रुपये प्रति टिन पर स्थिर रहे।
समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चा पाम तेल (सीपीओ) 25 रुपये की गिरावट के साथ 8,775 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 50 रुपये की गिरावट के साथ 9,950 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 75 रुपये की गिरावट के साथ 8,950 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
सरसों के महंगा होने के कारण बिनौला खल की मांग बढ़ने और कपास खेती का रकबा घटने की खबरों के बीच अंकेला बिनौला तेल के साथ साथ बिनौला खल में तेजी रही। बिनौला तेल का भाव 125 रुपये की तेजी के साथ 10,200 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
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