नयी दिल्ली, छह अप्रैल उच्च सदन में लगातार व्यवधान पर चिंता जताते हुए राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को कहा कि संसद के कामकाज को बाधित कर राजनीति को हथियार बनाने के परिणाम देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए गंभीर हो सकते हैं और जनता को यह बात कतई पसंद नहीं आ रही है।
सभापति धनखड़ ने उच्च सदन के 259वें सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से पहले अपने पारंपरिक संबोधन में यह टिप्पणी की।
सदन में हंगामे से अप्रसन्न धनखड़ ने कहा, ‘‘राज्य सभा के 259वें सत्र का समापन कुछ चिंता के साथ आज हो रहा है। संसद लोकतंत्र की प्रहरी है और जनता हमारी संरक्षक और स्वामी है। हमारा मुख्य दायित्व उनकी सेवा करना है। संसद का पवित्र परिसर जनता के समग्र कल्याण के लिए चर्चा और विचार-विमर्श, वाद-विवाद और निर्णय के लिए है।’’
उन्होंने कहा कि यह विडम्बना की बात है कि संसद में अव्यवस्था, एक नयी व्यवस्था, एक नया मानक बनती जा रही है, जो लोकतंत्र के मूल तत्व को नष्ट कर रही है।
उन्होंने कहा, ‘‘कितनी चिंताजनक और खतरनाक स्थिति है! संसद में सर्वोपरि वाद-विवाद, संवाद, विचार-विमर्श और चर्चा का स्थान व्यवधान और अशांति ने ले लिया है। संसद के कामकाज को बाधित करके राजनीति को हथियार बनाने के परिणाम हमारी राजव्यवस्था के लिए गंभीर हो सकते हैं। जनता को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आ रही है। जनता की नजरों में हम सब उपेक्षा और उपहास के पात्र बन रहे हैं।’’
उल्लेखनीय है कि व्यवधान के कारण बजट सत्र के प्रथम भाग की उत्पादकता 56.3 प्रतिशत रही, जबकि दूसरे भाग में यह सिर्फ 6.4 प्रतिशत रही। सदन में कुल 24.4 प्रतिशत समय का ही उपयोग किया जा सका और व्यवधानों के कारण सदन के 103 घंटे 30 मिनट बेकार चले गए।
धनखड़ ने कहा कि जनता की उच्च अपेक्षाओं के संबंध में ‘‘हमें अपने कार्य-निष्पादन पर मंथन करने की आवश्यकता है’’। उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी हमारा मूल्यांकन नारों के शोर के आधार पर नहीं, वरन इस बात से करेगी कि राष्ट्र के विकास पथ को मजबूती देने में हमारे विविध योगदान क्या रहे।
उन्होंने सदन के निराशाजनक कार्य-निष्पादन पर सदस्यों से चिंतन करने और कोई रास्ता निकालने का आह्वान किया।
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