नई दिल्ली, 12 जुलाई: अमेरिका में नए वीजा नियमों की घोषणा के बाद भारतीय छात्रों को वैश्विक संकट के बीच निर्वासित होने, कर्ज चुकाने, कोविड-19 (Covid-19) की चपेट में आने, सेमेस्टर की पढ़ाई छूटने और कॉलेज दोबारा नहीं जा पाने का डर सता रहा है. दरअसल, अमेरिकी आव्रजन प्राधिकरण ने घोषणा की है कि उन विदेशी छात्रों को देश छोड़ना होगा या निर्वासित होने के खतरे का सामना करना होगा जिनके विश्वविद्यालय कोरोना वायरस की महामारी के चलते इस सेमेस्टर पूर्ण रूप से ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करेंगे.
इस कदम से सैकड़ों-हजारों भारतीय छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. हालांकि हार्वर्ड विश्वविद्यालय, मैसाच्यूसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) और जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय ने इस आदेश पर रोक लगाने के लिये याचिका दायर की है, जिसका प्रिंस्टन विश्वविद्यालय, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, कैलिफॉर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान और कॉर्नेल विश्वविद्यालय समेत कुछ विश्वविद्यालयों ने समर्थन किया है.
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भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने इस सप्ताह की शुरुआत में अमेरिका के राजनीतिक मामलों के उप विदेश मंत्री डेविड हेल के साथ ऑनलाइन बैठक के दौरान यह मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा था कि दोनों देशों के बीच शैक्षिक आदान-प्रदान और लोगों के बीच संपर्क की भूमिका को ध्यान में रखने की आवश्यकता है क्योंकि इन्होंने द्विपक्षीय संबंधों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
हालांकि इससे छात्रों की चिंताएं कम नहीं हुई हैं और वे इस मामले पर ताजा जानकारी का इंतजार कर रहे हैं.
ड्यूक विश्वविद्यालय की छात्र शोभना मुखर्जी ने 'पीटीआई-' से कहा, "यह लंबे समय रुकने की योजना लेकर अमेरिका आए छात्रों के लिये बड़ा झटका होगा. कोरोना वायरस के मद्देनजर कॉलेज जब बंद हुआ तो मैं देश में ही रुक गई. मैं तो जाना भी नहीं चाहती हूं क्योंकि समय में फर्क होने के चलते ऑनलाइन कक्षाएं ले पाना भी मुश्किल है. लेकिन अब अचानक ही यहां मेरा प्रवास अब अवैध हो गया है."