
नयी दिल्ली, 6 जून : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि पीड़ित को मुआवजा देना सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता. न्यायालय ने कहा कि यदि सजा कम करने के लिए मुआवजे का भुगतान एक विकल्प बन जाता है, तो इसका आपराधिक न्याय व्यवस्था पर ‘‘गंभीर’’ प्रभाव पड़ेगा. न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामले में पीड़ित को मुआवजा देने का उद्देश्य उन लोगों का पुनर्वास करना है जिन्हें अपराध के कारण नुकसान उठाना पड़ा हो या उन्हें चोट पहुंची हो और यह सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता. अदालत ने कहा कि इसका नतीजा यह होगा कि अपराधियों के पास न्याय से बचने के लिए बहुत सारा पैसा होगा, जिससे आपराधिक कार्यवाही का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जायेगा.
दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 357 न्यायालय को दोषसिद्धि का निर्णय सुनाते समय पीड़ितों को मुआवजा देने का अधिकार देती है. न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘‘पीड़ित को मुआवजा देना अभियुक्त पर लगाए गए दंड को कम करने का आधार नहीं हो सकता है, क्योंकि पीड़ित को मुआवजा देना दंडात्मक उपाय नह�
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