नयी दिल्ली, 21 जून : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि ‘अग्निपथ’ योजना के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की जांच एक विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लिए तब सूचीबद्ध किया जाएगा, जब प्रधान न्यायाधीश इस संबंध में निर्णय ले लेंगे. 14 जून को घोषित ‘अग्निपथ’ योजना के तहत सशस्त्र बलों में साढ़े 17 वर्ष से 21 वर्ष की आयु के युवाओं को संविदा के आधार पर चार साल के लिए भर्ती करने का प्रावधान है. इनमें से 25 प्रतिशत युवाओं को नियमित सेवा में बरकरार रखा जाएगा. योजना को लेकर देश के कई हिस्सों में हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए, जिसके बाद सरकार ने 2022 में भर्ती के लिए ऊपरी आयु सीमा बढ़ाकर 23 वर्ष कर दी.
अधिवक्ता विशाल तिवारी ने न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अवकाशकालीन पीठ से मामले को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया. इस पर अवकाश के दौरान मामलों को सूचीबद्ध किए जाने की व्यवस्था का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह मामला प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जााएगा और वह इस पर फैसला करेंगे.’’ जनहित याचिका में केंद्र और उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, हरियाणा एवं राजस्थान की सरकारों को हिंसक विरोध-प्रदर्शनों पर एक स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है. तिवारी ने अपनी याचिका में ‘अग्निपथ’ योजना और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सेना पर इसके प्रभाव की जांच के लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश दिए जाने का भी आग्रह किया है. यह भी पढ़ें : MP राज्य सेवा परीक्षा में कश्मीर को लेकर पूछे गए आपत्तिजनक सवाल पर विवाद
उन्होंने याचिका में उच्चतम न्यायालय के 2009 के एक फैसले में निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों को दावा आयुक्त नियुक्त करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है. केंद्र की ‘अग्निपथ’ योजना के खिलाफ सोमवार को उच्चतम न्यायालय में एक अन्य याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए वर्षों पुरानी चयन प्रक्रिया को रद्द कर दिया है, जो संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है और इसके लिए संसद की मंजूरी भी नहीं ली गई है.