नयी दिल्ली, 8 जनवरी: उच्चतम न्यायालय ने गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार की शिकार बिलकीस बानो की ओर से राज्य सरकार द्वारा मामले में 11 दोषियों को सजा माफी के फैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिका को सोमवार को सुनवाई योग्य करार दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद-32, भारतीय संविधान के भाग-3 का हिस्सा है जो मौलिक अधिकारों से संबंधित है और इस अनुच्छेद के तहत याचिका दायर करने का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है.
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां की पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता (बिलकीस बानो) ने संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत अपनी रिट याचिका दायर की है ताकि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपने मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सके, जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की बात करता है. साथ ही अनुच्छेद 14 के तहत, जो समानता और कानूनों की समान सुरक्षा के अधिकार से संबंधित है.’’
पीठ ने कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद-32, जिसे ‘संविधान की आत्मा’ भी माना जाता है और जो अपने आप में एक मौलिक अधिकार है, का उद्देश्य संविधान के भाग-3 में अन्य मौलिक अधिकारों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना है. हमारा मानना है कि उपरोक्त संवैधानिक उपाय संविधान की प्रस्तावना में निहित लक्ष्यों को लागू करने के लिए भी है, जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की बात करते हैं.’’
उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए 2002 के दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सोमवार को रद्द कर दिया और दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल भेजने का निर्देश दिया. न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया.
घटना के वक्त बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं. बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 2002 में भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था. दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी. गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था.
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