कैशलेस होती दुनिया में कैश लेना अनिवार्य बनाएगा ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया दुनिया के उन देशों में है जो सबसे तेजी से डिजिटल भुगतान की ओर जा रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया दुनिया के उन देशों में है जो सबसे तेजी से डिजिटल भुगतान की ओर जा रहे हैं. लेकिन वहां की सरकार ने कहा है कि व्यापारी कैश लेने से मना नहीं कर सकते.ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने जरूरी चीजों और सेवाओं के लिए कैश स्वीकार करना अनिवार्य करने की योजना बनाई है, ताकि उन लाखों ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों को सहायता दी जा सके जो कैश पर निर्भर हैं. साथ ही, सरकार ने 2029 तक चेक को पूरी तरह समाप्त करने की भी घोषणा की है.
ऑस्ट्रेलिया के वित्त मंत्री जिम चामर्स ने वित्तीय सेवा मंत्री स्टीफन जोंस के साथ एक संयुक्त बयान में कहा कि बढ़ते डिजिटल भुगतान के बावजूद, कैश तक पहुंच बनाए रखना जरूरी है. उन्होंने कहा, "लोग डिजिटल भुगतान के तरीकों का ज्यादा उपयोग कर रहे हैं, लेकिन हमारे समाज में कैश का एक अहम स्थान है. कैश को अनिवार्य करने का मकसद है कि जो लोग कैश पर निर्भर हैं, वे पीछे नहीं छूटेंगे.”
प्रस्तावित "कैश अनिवार्यता" पर इस साल के अंत तक विचार-विमर्श होगा और इसे अगले साल चुनाव के बाद लागू करने की योजना है. चामर्स के मुताबिक इस प्रस्ताव के तहत व्यवसायों को जरूरी वस्तुओं और सेवाओं जैसे राशन, ईंधन, दवाओं और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कैश स्वीकार करना होगा. छोटे व्यवसायों को इसमें कुछ छूट दी जाएगी.
ऑस्ट्रेलिया में कैश का घटता उपयोग
पिछले दशक में ऑस्ट्रेलिया में भुगतान करने के तरीकों में बड़ा बदलाव आया है. कैश के लेनदेन में भारी गिरावट आई है और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान को तेजी से अपनाया जा रहा है.
रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया (आरबीए) की 2019 पेमेंट्स सिस्टम बोर्ड वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया था कि 2018-19 में ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने औसतन 525 इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन किए, जो एक दशक पहले 235 थे. एटीएम का इस्तेमाल भी तेजी से घटा है और अब हर व्यक्ति औसतन साल में 23 बार ही कैश निकाल रहा है जो 2008 में 40 बार था. एक तिहाई ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने सर्वे अवधि में कोई कैश भुगतान नहीं किया.
क्यों उठा कैश का मुद्दा
बदलते चलन के बावजूद कैश भुगतान को लेकर देश में विवाद तब शुरू हुआ जब इस साल की शुरुआत में एक सांसद ने कैश से बिल देने की कोशिश की और दुकानदार ने उनसे कैश लेने से मना कर दिया. ऐसा तब हुआ जब संसद भवन के कैफेटेरिया में सांसद बॉब कैटर का कैश भुगतान अस्वीकार कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने इस मुद्दे को कई जगह उठाया और यह राष्ट्रीय चर्चा में आ गया. कैटर ने इसे "एक कैशलेस समाज, जो बैंकों को सारी ताकत देता है और आपकी स्वतंत्रता छीनता है" करार दिया.
हालांकि, ऑस्ट्रेलिया में कैश एक कानूनी मुद्रा है, लेकिन व्यवसायों के लिए इसे स्वीकार करना अनिवार्य नहीं है, बशर्ते वैकल्पिक भुगतान के तरीके उपलब्ध हों. कैश अनिवार्यता का उद्देश्य इस अंतर को पाटना है, ताकि जो उपभोक्ता कैश का उपयोग करना पसंद करते हैं या उस पर निर्भर हैं, वे इससे वंचित न हों.
सीनियर सिटिजन काउंसिल की सीईओ पैट्रीशिया स्पैरो ने इस कदम का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि कई बुजुर्ग डिजिटल भुगतान को लेकर सुरक्षा और गोपनीयता की चिंताओं के कारण झिझकते हैं. उन्होंने कहा, "यह उनके लिए बिना किसी अतिरिक्त शुल्क या लागत के आत्मविश्वास के साथ खरीदारी जारी रखने का एक अच्छा तरीका है.”
कैश सप्लाई की चुनौतियां
कैश के घटते इस्तेमाल ने इसकी सप्लाई चेन में भी समस्याएं पैदा की हैं. ऑस्ट्रेलिया में कैश की एकमात्र वितरक कंपनी आर्मागार्ड घटती नकदी मात्रा को संभालने की बढ़ती लागत के कारण गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रही है.
जून में, कंपनी के आठ सबसे बड़े ग्राहकों ने संचालन को एक और साल तक बनाए रखने के लिए पांच करोड़ डॉलर की सहायता दी थी. कैश अनिवार्यता से मांग को स्थिर करने और सप्लाई चेन को मदद मिलने की संभावना है.
कैश अनिवार्यता के साथ ही, सरकार ने 2029 तक चेक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना की भी घोषणा की है. 2028 के मध्य से बैंक चेक जारी करना बंद कर देंगे और सितंबर 2029 के बाद चेक स्वीकार नहीं किए जाएंगे.
जिम चामर्स ने बैंकों से आग्रह किया कि इस दौरान चेक का इस्तेमाल करने वालों की मदद की जाए. उन्होंने कहा, "पिछले दस वर्षों में चेक का इस्तेमाल 90 फीसदी तक घट गया है. सरकार ग्राहकों और व्यवसायों को अन्य भुगतान विधियों पर स्विच करने के लिए आवश्यक निश्चितता और सहायता देने के लिए काम कर रही है.”
कैशलेस होती दुनिया
दुनिया तेजी से डिजिटल भुगतान की ओर बढ़ रही है और कैश का इस्तेमाल लगातार घट रहा है. 2022 में, ऑस्ट्रेलिया में केवल 13 फीसदी भुगतान कैश में हुए, जो 2007 में 69 फीसदी थे.
स्वीडन कैशलेस भविष्य की ओर सबसे तेजी से बढ़ रहे देशों में से एक है. वहां कई व्यापारी कैश भुगतान लेने से इनकार कर सकते हैं और ज्यादातर बैंकों ने अपनी शाखाओं में कैश लेनदेन बंद कर दिया है.
वैश्विक स्तर पर, 2020 से 2025 के बीच कैशलेस भुगतान में 80 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि होने का अनुमान है और 2030 तक यह लगभग तीन गुना हो जाएगा. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देश तेजी से कैशलेस समाज बनने की ओर बढ़ रहे हैं.
भारत में भी तेजी से बदलाव
हाल के सालों में भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है और उसने सहयोगियों और प्रतिद्वंद्वियों को काफी पीछे छोड़ दिया है. 2022 में, वैश्विक डिजिटल लेन-देन का 46 प्रतिशत भारत में हुआ, और देश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा डिजिटल बाजार बन गया है, जो चीन के पहले स्थान के करीब पहुंच चुका है.
इसमें यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) का अहम योगदान है जिसे 2016 में नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने विकसित किया था. यह एक सिस्टम है "जो कई बैंक खातों को एक मोबाइल एप्लिकेशन में जोड़ता है", जिससे ग्राहक अपने फोन पर एक एप्लिकेशन के जरिए भुगतान कर सकते हैं. भारत में इसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है और इसके 30 करोड़ से ज्यादा सक्रिय उपयोगकर्ता हैं. 2023 में 117.7 अरब भुगतान यूपीआई के जरिए हुए, जिनमें लगभग 18,300 अरब रुपये का लेन-देन हुआ.