इक्कीसवीं सदी के भारत की आकांक्षाएं माओवाद के वैश्विक दृष्टिकोण से काफी अलग: गृह मंत्रालय

नयी दिल्ली, 9 अक्टूबर गृह मंत्रालय ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि माओवादी हिंसा ने देश के कई हिस्सों में विकास प्रक्रिया को दशकों पीछे धकेल दिया है, जिसे नागरिक संस्थाओं और मीडिया को पहचानने की जरूरत है ताकि नक्सलियों पर हिंसा छोड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने का दबाव बनाया जा सके. वर्ष 2022-23 के लिए गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह आवश्यक है कि नक्सली इस तथ्य को पहचानें कि 21वीं सदी के भारत की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक गतिशीलता तथा आकांक्षाएं माओवाद के वैश्विक दृष्टिकोण से बहुत दूर हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत सरकार बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाकर इस खतरे से समग्र रूप से निपट रही है और परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) से होने वाली हिंसा में 2014 के बाद से लगातार गिरावट और भौगोलिक प्रसार में काफी कमी देखी गई है.” मंत्रालय ने कहा कि यह स्पष्ट है कि माओवादी नहीं चाहते कि अल्प विकास जैसी मूल समस्याओं को सार्थक तरीके से संबोधित किया जाए क्योंकि वे बड़े पैमाने पर स्कूल भवनों, सड़कों, रेलवे, पुलों, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और संचार सुविधाओं को निशाना बनाते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, “माओवादी अपनी पुरानी विचारधारा को कायम रखने के लिए अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों की आबादी को हाशिए पर रखना चाहते हैं. नतीजतन, वामपंथी उग्रवाद के प्रभाव के कारण देश के कई हिस्सों में विकास की प्रक्रिया दशकों पीछे चली गई है.”

मंत्रालय के अनुसार, “नागरिक संस्थाओं और मीडिया को इसे पहचानने की जरूरत है ताकि माओवादियों पर हिंसा छोड़ने, मुख्यधारा में शामिल होने और इस तथ्य को पहचानने का दबाव बनाया जा सके कि 21वीं सदी के भारत की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक गतिशीलता तथा आकांक्षाएं माओवाद के वैश्विक दृष्टिकोण से बहुत दूर हैं.”

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