Marital Rape: ‘वैवाहिक बलात्कार’ पर दिल्ली हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी, कहा- गैर वैवाहिक संबंध और वैवाहिक संबंध एक जैसे नहीं
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pxhere)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने सोमवार को कहा कि जहां महिलाओं के यौन स्वायत्तता के अधिकार के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है और बलात्कार (Rape) के किसी भी कृत्य को दंडित किया जाना चाहिए, वहीं वैवाहिक और गैर-वैवाहिक संबंध के बीच 'गुणात्मक अंतर' है, क्योंकि वैवाहिक संबंध में जीवनसाथी से उचित यौन संबंध की अपेक्षा करने का कानूनी अधिकार होता है और यह आपराधिक कानून में वैवाहिक बलात्कार के अपराध से छूट प्रदान करता है. Facebook के जरिए पहले युवती से की दोस्ती, फिर गांव बुलाकर किया बलात्कार, वीडियो भी बनाया

न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर ने वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा कि गैर-वैवाहिक संबंध और वैवाहिक संबंध ‘समानांतर’ नहीं हो सकते. न्यायमूर्ति हरिशंकर उस खंडपीठ का हिस्सा थे, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति राजीव शकधर कर रहे थे.

न्यायमूर्ति हरिशंकर ने कहा, ‘‘एक लड़का और लड़की चाहे कितने ही करीब हों, किसी को भी यौन संबंध की उम्मीद करने का अधिकार नहीं है. प्रत्येक को यह कहने का पूर्ण अधिकार है कि मैं तुम्हारे साथ यौन संबंध नहीं बनाऊंगा/बनाऊंगी. विवाह में गुणात्मक अंतर होता है.’’

न्यायमूर्ति शंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि बलात्कार का अपराध दंडनीय है और इसके लिए 10 साल की सजा का प्रावधान है. वैवाहिक बलात्कार छूट को हटाने के मुद्दे पर ‘गंभीरता से विचार’ करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा, “एक महिला के यौन और शारीरिक अखंडता के अधिकार के साथ कोई समझौता नहीं है. पति अपनी पत्नी को मजबूर नहीं कर सकता है. (लेकिन) अदालत इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती कि इसे (वैवाहिक बलात्कार अपवाद) समाप्त करने का क्या परिणाम होगा.’’

न्यायाधीश ने ‘वैवाहिक बलात्कार’ शब्द के उपयोग के संबंध में भी अपनी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि बलात्कार के हर कृत्य को दंडित किया जाना चाहिए, लेकिन पति तथा पत्नी के बीच अनिच्छुक यौन संबंध के किसी भी रूप को ‘वैवाहिक बलात्कार’ के रूप में बार-बार परिभाषित करना ‘पूर्व निर्णय’ कहा जा सकता है.

न्यायमूर्ति हरिशंकर ने कहा, ‘‘भारत में वैवाहिक बलात्कार की कोई (अवधारणा) नहीं है... अगर यह बलात्कार है –चाहे वह वैवाहिक हो, गैर-वैवाहिक या किसी भी तरह का बलात्कार, तो इसे दंडित किया जाना चाहिए. मेरे हिसाब से इस शब्द का बार-बार इस्तेमाल वास्तविक मुद्दे को उलझा देता है.’’

पीठ गैर सरकारी संगठनों –आरआईटी फांउडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन – की याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी. इन संगठनों की ओर से अधिवक्ता करुणा नंदी पेश हुईं.

गैर सरकारी संगठनों ने आईपीसी की धारा 375 की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों द्वारा किये गये यौन उत्पीड़न के मामले में यह भेदभाव करती है. मामले में सुनवाई 11 जनवरी को जारी रहेगी.

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)