देश की खबरें | एआईएमपीएलबी के रहमानी ने मदरसों के खिलाफ उत्तर प्रदेश, असम सरकारों की कार्रवाई पर चिंता जताई

जालना (महाराष्ट्र), पांच सितंबर ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ (एआईएमपीएलबी) के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने मदरसों पर उत्तर प्रदेश और असम जैसे राज्यों की कार्रवाई को इन संस्थानों के कामकाज में हस्तक्षेप करार दिया और इसे लेकर चिंता व्यक्त की।

रहमानी ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा कि संविधान सभी अल्पसंख्यकों को समान अधिकार देता है तथा उत्तर प्रदेश और असम की सरकारों की कार्रवाई इन अधिकारों का उल्लंघन है।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार मदरसों का सर्वेक्षण कर रही है, जबकि असम में सत्तारूढ़ सरकार कुछ पदाधिकारियों के अपराधियों आदि के साथ कथित संबंधों सहित विभिन्न कारणों का हवाला देकर इन संस्थानों को ध्वस्त कर रही है।

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के दौरे पर आए रहमानी ने कहा, ‘‘मदरसों के काम में दखल देना और उन्हें निशाना बनाना अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। यह संविधान के खिलाफ है। सरकार यह तय नहीं कर सकती कि मदरसों में किस तरह की शिक्षा दी जाएगी।’’

उन्होंने ‘तलाक-ए-हसन’ की प्रथा को समाप्त करने के लिए अदालत में दायर एक रिट याचिका के बारे में कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 विवाह और व्यक्तिगत कानूनों से संबंधित है और उनमें किसी भी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।

मुसलमानों में ‘तलाक-ए-हसन’ तलाक देने का एक तरीका है। इसके तहत शादीशुदा पुरुष तीन महीने में तीन बार एक निश्चित अंतराल पर तलाक बोलकर वैवाहिक संबंध तोड़ सकता है।

रहमानी ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा बनाया गया मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 शरीयत के खिलाफ है। अधिनियम ने ‘तीन तलाक’ को अवैध और शून्य घोषित कर दिया है।

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