मेघालय में जल संकट से निपटने में होगा एआई और ड्रोनों का इस्तेमाल

मेघालय सरकार ने बारिश और झरनों के पानी के संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीकों की मदद से राज्य के पांच हजार से ज्यादा झरनों की मैपिंग का फैसला किया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

मेघालय सरकार ने बारिश और झरनों के पानी के संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीकों की मदद से राज्य के पांच हजार से ज्यादा झरनों की मैपिंग का फैसला किया है.दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह पूर्वोत्तर भारत के जिस राज्य मेघालय में है, वह भी खासकर गर्मी के सीजन में पीने के पानी के गंभीर संकट से जूझ रहा है. अब मेघालय सरकार बारिश और झरनों के पानी के संरक्षण की दिशा में ठोस पहल करते हुए आधुनिक तकनीक के जरिए राज्य के पांच हजार से ज्यादा झरनों की मैपिंग करने जा रही है. इन झरनों के नीचे कुछ जगहों पर ऑटोमेटिक चेक डैम भी बनाए जाएंगे, जहां पानी का भंडारण किया जा सकेगा. इस राज्य में पूरे साल के दौरान जितनी बारिश होती है उसके महज दो फीसदी का ही संरक्षण हो पाता है. लेकिन अब यह मात्रा बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है.

मेघालय की राजधानी शिलांग में इसी नवंबर में मेघालय बेसिन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमबीडीओ) की ओर से जल संरक्षण के मुद्दे पर एक तीन-दिवसीय वर्कशाप आयोजित की गई. इसमें मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने बताया था कि सरकार आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के जरिए राज्य के पांच हजार झरनों की मैपिंग की कवायद कर रही है ताकि उनको जल संरक्षण के लिए अनुकूल बनाया जा सके. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों को बचाना हमारी जरूरत ही नहीं, जिम्मेदारी भी है.

ड्रोन और एआई से होगी मैपिंग और निगरानी

कोनराड संगमा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "हम झरनों की मैपिंग और जल संरक्षण के नए उपायों को लागू करने के लिए नॉर्थ ईस्टर्न स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर के साथ मिल कर काम कर रहे हैं. राज्य के झरनों, जंगल, प्राकृतिक संसाधनों और खनन पर निगरानी का जिम्मा सेंटर पर है. राज्य के जलाशयों पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता मैपिंग और निगरानी की जाएगी. हमारा मकसद उनको जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाते हुए राज्य में जल संकट पर काबू पाना है."

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सरकार ने बारिश के पानी के संरक्षण के लिए राज्य के सभी 12 जिलों में जल संरक्षण ढांचे और जलाशयों के निर्माण के लिए 515 करोड़ की एक महत्वाकांक्षी परियोजना को भी मंजूरी दी है. इस परियोजना का मकसद वर्ष 2013 तक राज्य की जल भंडारण क्षमता को बढ़ाना है.

दूसरी ओर, मेघालय बेसिन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने भी पानी के स्रोतों के संरक्षण और बचाव की दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं. इनमें मौके पर जाकर सर्वेक्षण करने के अलावा ड्रोन से उन पर निगाह रखना और प्राकृतिक जल स्रोतों का दस्तावेजीकरण शामिल है.

इतनी बारिश होती है तो कहां चला जाता है पानी

मुख्यमंत्री संगमा डीडब्ल्यू को बताते हैं, "राज्य के हर साल बारिश से करीब 63 अरब घनमीटर पानी मिलता है. लेकिन फिलहाल हम महज एक अरब घन मीटर का संरक्षण करने में ही सक्षम हैं. बाकी पानी में 31-31 अरब घनमीटर पानी बह कर क्रमशः बांग्लादेश और पड़ोसी असम में चला जाता है."

सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड की शिलांग शाखा के प्रमुख डी. राभा डीडब्ल्यू से कहते हैं, "पीने के संरक्षण के लिए निचले स्तर पर आम लोगों को भी इस मुहिम में शामिल करना जरूरी है. इसके लिए लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाना होगा. जल संरक्षण में स्थानीय लोगों की भूमिका सबसे अहम है."

शिलांग स्थित 'नार्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी' (नेहू) में मानव और पर्यावरण विज्ञान के डीन प्रोफेसर देवेश वालिया ने इसी कार्यशाला में अपने संबोधन में कहा था, "मेघालय में हर साल गर्मी में सीजन में पानी की समस्या बेहद गंभीर होती जा रही है. इस समस्या के समाधान के लिए बारिश के पानी का संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल पर जोर दिया जाना चाहिए. इसके लिए सबको मिल कर काम करना होगा."

दो साल पहले तक सबसे बारिश वाली जगह रही चेरापूंजी में भी लोगों को बीते कुछ वर्षों से गर्मी और जाड़े के सूखे सीजन में पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को जाड़ों में भी ऊंची कीमत पर निजी टैंकरों से पानी खरीदना पड़ता है. मौसम विज्ञानी और पर्यावरणविद इसके लिए तेजी से घटते जंगल, पत्थरों के बढ़ते खनन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बदलते मौसम को जिम्मेदार ठहराते हैं. हाल में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में कहा गया था कि मेघालय में बीते पांच साल के दौरान सालाना बारिश की मात्रा में 15 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, और भविष्य में इसके और घटने का अंदेशा है.

पर्यावरणविद् केसी मावलांग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "झरनों की मैपिंग और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में पहल एक सकारात्मक उपाय है. लेकिन इस कवायद को तेज करने के साथ स्थानीय लोगों और संगठनों को भी इस मुहिम में शामिल करना जरूरी है."

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