फिर लौटा अफस्पा; मणिपुर में कब सामान्य होंगे हालात?

मणिपुर के जिरिबाम जिले में हाल में हिंसा की करीब एक दर्जन घटनाएं सामने आई हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

मणिपुर के जिरिबाम जिले में हाल में हिंसा की करीब एक दर्जन घटनाएं सामने आई हैं. इसमें कम से कम एक दर्जन लोग मारे गए और एक दर्जन से ज्यादा का अपहरण कर लिया गया.लंबे अरसे से जातीय हिंसा की चपेट में रहे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में इस सप्ताह की शुरुआत से नए सिरे से भड़की हिंसा में कम से कम एक दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा एक दर्जन से ज्यादा लोगों का अपहरण किया जा चुका है. इसकी वजह से केंद्र सरकार को राज्य के छह थाना क्षेत्रों में विवादास्पद 'सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम' (अफस्पा) दोबारा लागू करना पड़ा है. इससे पहले वर्ष 2022 से 2023 के बीच केंद्र ने कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार का हवाला देते हुए इन इलाकों से अफस्पा हटा लिया था.

इस बार जिरिबाम इलाका हिंसा के केंद्र में है. ताजा हिंसा के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में सवाल उठने लगा है कि मणिपुर में आखिर हालात कब सामान्य होंगे और हिंसा के इतने लंबे दौर की वजह क्या है.

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ताजा हिंसा

राज्य के जिरिबाम जिले में हाल में हिंसा की करीब एक दर्जन घटनाएं सामने आई हैं. बीते सोमवार को सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए 10 संदिग्ध उग्रवादियों की मौत की घटना के बाद से जिले में कर्फ्यू है और छह लोग लापता हैं. हालात बेकाबू होते देख कर केंद्रीय सुरक्षा बलों की 20 अतिरिक्त बटालियनों को यहां भेजा गया है.

मणिपुर में सुरक्षाबलों पर बढ़ रहे हैं हमले

इस सप्ताह की शुरुआत में जिरिबाम में उग्रवादियों ने एक घर में आग लगा दी. इसमें जल कर दो लोगों की मौत हो गई. उसके बाद हथियारबंद कुकी उग्रवादियों के एक गुट ने सीआरपीएफ के एक कैंप के अलावा बोरोबेकरा थाने पर हमला कर दिया. लेकिन सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में 10 उग्रवादियों की मौत हो गई. इसके बाद कुकी संगठनों ने फर्जी मुठभेड़ में बेकसूर युवकों की हत्या करने का आरोप लगाया था. इन कथित हत्याओं के विरोध में इलाके में 24 घंटे बंद रखा गया और कुकी जनजाति के लोगों ने खाद्यान्नों से लदे दो ट्रकों में आग लगा दी थी.

उसके बाद संदिग्ध उग्रवादियों ने जिरिबाम इलाके से एक परिवार के छह लोगों का अपहरण कर लिया. उनमें तीन महिलाएं और तीन बच्चे शामिल हैं. पुलिस और सुरक्षाबलों की ओर से बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान के बावजूद अब तक उनका पता नहीं चल सका है. सत्तारूढ़ बीजेपी समेत तमाम राजनीतिक दलों ने इस घटना की निंदा करते हुए मानवता के आधार पर अपहृत लोगों को रिहा करने की अपील की है.

पूर्वोत्तर के छात्रों में बढ़ रहा है एचआईवी का संक्रमण

इस अपहरण के विरोध में कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी ने इंफाल घाटी में 24 घंटे का बंद रखा था. राज्य के 13 प्रमुख संगठनों ने सरकार को सात दिनों का अल्टीमेटम देते हुए कहा है कि अगर अपहृत लोगों की सुरक्षित रिहाई नहीं हुई तो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से समर्थन वापस ले लिया जाएगा.

इस घटना के विरोध में 14 नवंबर को बाल दिवस के मौके पर राज्य के विभिन्न इलाके के छात्रों और बच्चों ने 'काला बाल दिवस' मनाया और मानव श्रृंखला बनाई.

राज्य पुलिस के आईजी (ऑपरेशन) आईके मुइवा ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम इलाके में सघन तलाशी अभियान चला रहे हैं. अपहृत लोगों की रिहाई के लिए हरसंभव कदम उठाए जा रहे हैं."

हिंसा के ताजा दौर के बाद जांच और गश्त तेज कर दी गई है. राज्य के पर्वतीय और मैदानी जिलों में 108 नई जांच चौकियां बनाई गई हैं.

इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जिरिबाम हिंसा की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी है.

मंशा पर सवाल

दूसरी ओर, तमाम राजनीतिक दलों ने हिंसा के ताजा दौर की निंदा करते हुए आम लोगों से शांति और संयम बनाए रखने की अपील की है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष ए. शारदा देवी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "हमने तमाम गुटों से शांति बहाल करने और अपहृत लोगों की शीघ्र रिहाई की अपील की है. हिंसा हर कीमत पर बंद होनी चाहिए. सरकार भी अपनी ओर से हालात को सामान्य बनाने का भरसक प्रयास कर रही है."

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम ईबोबी सिंह ने भी सवाल उठाया है कि आखिर मणिपुर में हालात कब सामान्य होंगे? वे पूछते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर केंद्रीय बलों की तैनाती के बावजूद राज्य में हिंसा पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? उन्होंने इस मुद्दे पर राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य से मुलाकात कर अपहृत लोगों की रिहाई के लिए जरूरी कदम उठाने का अनुरोध किया है. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "सरकार इस संकट के समाधान में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है."

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मणिपुर से सटे मिजोरम के राजनीतिक दलों ने भी इस हिंसा पर गहरी चिंता जताई है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष लाल थांजारा डीडब्ल्यू से कहते हैं, "मौजूदा परिस्थिति से लगता है कि केंद्र सरकार मणिपुर संकट का समाधान कर राज्य में शांति बहाली की इच्छुक नहीं है."

राजनीतिक विश्लेषक के. ज्ञानेश्वर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "मणिपुर की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थिति इतनी जटिल है कि सिर्फ सुरक्षा बलों की तादाद बढ़ाने या अफस्पा लगाने से शांति बहाल करना संभव नहीं है. इस समस्या का समाधान दोनों गुटों के बीच बातचीत से ही संभव है. लेकिन केंद्र या राज्य सरकार ने अब तक इसमें खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है. ऐसे में फिलहाल हिंसा थमने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं."

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