मुंबई, 21 सितंबर बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार 33 वर्षीय कार्यकर्ता महेश राउत को बृहस्पतिवार को जमानत दे दी और कहा कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने उनके खिलाफ जो सबूत पेश किए, वे अफवाह थे और उनकी पुष्टि नहीं हो पाई।
न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की पीठ ने कहा कि राउत को कुछ हद तक, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सदस्य कहा जा सकता है, लेकिन किसी भी गुप्त या प्रत्यक्ष आतंकी गतिविधि के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है।
पीठ ने कहा कि एनआईए ने यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया कि वह प्रतिबंधित संगठन में लोगों की भर्ती करने में शामिल थे।
पीठ के आदेश सुनाने के बाद, एनआईए की ओर से पेश हुए विशेष लोक अभियोजक संदेश पाटिल ने इस पर दो सप्ताह के लिए रोक लगाने का अनुरोध किया, इसके बाद पीठ ने अपने आदेश के क्रियान्वयन पर एक सप्ताह के लिये रोक लगा दी।
राउत को जून 2018 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह मुंबई के बाहरी इलाके में स्थित तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत में हैं।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “मौजूदा मामले में, संदिग्ध दस्तावेजों से किसी भी तरह से प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि अपीलकर्ता (राउत) ने यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम) की धारा 15 के तहत अपराध माने जाने वाले किसी 'आतंकी कृत्य' को अंजाम दिया है, या उसमें शामिल रहे हैं।”
पीठ ने कहा कि अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि राउत भाकपा (माओवादी) के सदस्य थे और इस पर केवल यूएपीए की धारा 13 और 38 के प्रावधान लागू होंगे।
अदालत ने कहा, “हमारे अनुसार, ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिसके आधार पर यह माना जाए कि अपीलकर्ता के खिलाफ यूएपीए की धारा 16, 17, 18, 20 और 39 के तहत आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं।”
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद से संबंधित है। पुणे पुलिस के अनुसार माओवादियों ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था।
पुलिस ने आरोप लगाया था कि सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन पुणे में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक पर हिंसा हुई।
बाद में, एनआईए ने मामले की जांच की।
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