नई दिल्ली: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) से कहा कि आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार का ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ (ONORC) योजना लागू करने संबंधी दावा भ्रामक है क्योंकि इस योजना का पूरी तरह क्रियान्वयन नहीं होने के कारण दिल्ली में बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत सब्सिडी वाला खाद्यान्न नहीं ले पा रहे. One Nation One Ration Card Scheme: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, खाद्य सुरक्षा को पोर्टेबल बनाता है वन नेशन वन राशन कार्ड
केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष दायर हलफनामे में कहा कि आप सरकार ने केवल सर्कल 63 सीमापुरी में एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड योजना लागू की है. शपथपत्र में कहा गया है, ‘‘यह अभिवेदन दिया गया है कि दिल्ली में एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड (ओएनओआरसी) योजना शुरू करने के संबंध में दिल्ली सरकार का दावा भ्रामक है. उनका दावा है कि इसे केवल सर्कल 63 सीमापुरी में लागू किया गया है. केवल एक सर्कल में लगभग 42 ईपीओएस मशीनों के साथ किए गए कुछ मुट्ठी भर लेनदेन ओएनओआरसी का क्रियान्वयन नहीं माने जा सकते.’’
उसमें कहा गया है, ‘‘इसके अलावा, एनसीटी दिल्ली के सभी सर्किल की उचित मूल्य की सभी दुकानों में जब तक राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी लेनदेन औपचारिक रूप से शुरू नहीं किया जाता है, तब तक इसे ओएनओआरसी का क्रियान्वयन नहीं माना जा सकता. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में 2000 से अधिक इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल (ईपीओएस) मशीनों की आपूर्ति की गई है, जिन्हें अभी संचालित किया जाना है.’’
केंद्र ने कहा कि पूरी दिल्ली में बड़ी संख्या में अन्य राज्यों से आए प्रवासी मौजूद हैं, जो एनएफएसए के तहत अपना खाद्यान्न प्राप्त नहीं कर पा रहे, वे अपने गांवों / गृहनगर से दूर होने के कारण सब्सिडी वाले खाद्यान्न के अपने कोटे का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं और इसका कारण ओएनओआरसी के पूर्ण कार्यान्वयन का अभाव है.
उसने कहा कि ओएनओआरसी योजना लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों की है. केंद्र ने कहा कि अधिकांश राज्य ओएनओआरसी लागू कर रहे हैं, लेकिन चार राज्यों - असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल - ने अभी तक यह योजना लागू नहीं की है और यह राशन कार्ड की पोर्टेबिलिटी को लागू करने के लिए उनकी ‘‘तकनीकी तत्परता’’ पर निर्भर करेगा.
केंद्र ने कहा कि उसने उन सभी लाभार्थियों के लिए खाद्यान्न की योजना का विस्तार किया है, जो एनएफएसए के तहत कवर नहीं हैं और जिन्हें राज्य सरकारों द्वारा हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम खाद्यान्न देने की उनकी योजना के तहत राशन कार्ड जारी किए गए हैं.
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 20 मई, 2021 और 25 मई, 2021 को खाद्यान्न संबंधी अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उल्लिखित योजनाओं का लाभ उठाने और प्रवासियों / फंसे हुए लोगों सहित उन लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की सलाह दी गई थी, जो एनएफएसए के तहत कवर नहीं होते.’’
शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से 11 जून को कहा था कि उन्हें ओएनओआरसी योजना को लागू करना चाहिए क्योंकि यह प्रवासी श्रमिकों को उन अन्य राज्यों में भी उनके कार्यस्थल पर राशन प्राप्त करने की अनुमति देता है जहां उनके राशन कार्ड पंजीकृत नहीं हैं.
शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करने के लिये असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों के पंजीकरण के लिये सॉफ्टवेयर विकसित करने में देरी पर कड़ा रुख भी जताया था. न्यायालय ने केंद्र से पूछा थाकि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत इस साल नवंबर तक उन प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त खाद्यान्न कैसे मिलेगा, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने कार्यकर्ताओं अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप चोकर की ताजा अर्जियों पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ ने केंद्र, याचिकाकर्ताओं और राज्यों से इस मामले में लिखित में अपनी बातें रखने का निर्देश दिया था.
कोविड-19 मामलों के फिर से बढ़ने के बीच देश में लगाई गई पाबंदियों के कारण प्रवासी श्रमिकों को होने वाली समस्याओं के मुद्दे पर 2020 के लंबित स्वत: संज्ञान मामले में ये आवेदन दायर किये गये थे.
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