नयी दिल्ली, 19 अगस्त हरियाणा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी दल कांग्रेस सत्ता के मुख्य दावेदार हैं, लेकिन यहां तीसरा कारक भी है जो दोनों बड़ी पार्टियों में से किसी का भी खेल बिगाड़ने की क्षमता रखता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्षेत्रीय दल और निर्दलीय विधानसभा चुनावों में कितना समर्थन हासिल कर पाते हैं।
हाल के लोकसभा चुनावों में राज्य में विपक्षी वोटों के एकजुट होने से भाजपा की सीटों की संख्या घटकर पांच रह गई तथा शेष सीट कांग्रेस के खाते में चली गईं, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि अब छोटी पार्टियां अधिक वोट हासिल करेंगी, जैसा कि अक्सर विधानसभा चुनावों में होता है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में सभी 10 सीट पर जीत हासिल की थी।
कांग्रेस नेताओं को विश्वास है कि एक अक्टूबर को होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों की अनुपस्थिति में भाजपा से दूरी रखने वाले मतदाताओं की लामबंदी और तेज होगी।
इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबंधन, पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत सिंह चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) और 2019 में जीत हासिल कर चुके कई निर्दलीय विधायक राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
जजपा और इनेलो (जिसका नेतृत्व दुष्यंत सिंह चौटाला के चाचा अभय सिंह चौटाला कर रहे हैं) तथा विधायक बलराज कुंडू जैसे निर्दलीय उम्मीदवारों को मुख्य रूप से जाटों से समर्थन प्राप्त है, वहीं भाजपा का मानना है कि वे गैर-भाजपा वोटों में सेंध लगाएंगे।
हरियाणा में 26 प्रतिशत से ज्यादा आबादी के साथ जाट सबसे बड़ा जाति समूह है। वहीं, बसपा का समर्थन मुख्य रूप से दलितों के एक वर्ग तक ही सीमित है।
हाल में ‘पीटीआई-’ के साथ एक साक्षात्कार में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने क्षेत्रीय दलों को ‘‘वोट कटवा’’ करार दिया था। उन्होंने कहा था कि कोई भी इन पाटियों को वोट नहीं देगा।
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