ओलंपिक में 33 मेडल जीतकर भी जर्मनी निराश क्यों है

पेरिस ओलंपिक में जर्मनी का प्रदर्शन कमोबेश ठंडा रहा.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

पेरिस ओलंपिक में जर्मनी का प्रदर्शन कमोबेश ठंडा रहा. पदक जीतने वाले 84 देशों की सूची में जर्मनी 10वें स्थान पर रहा. जर्मनी 2036 या 2040 में ओलंपिक की मेजबानी करने की मंशा रखता है.पेरिस ओलंपिक 2024 में जर्मन खिलाड़ियों ने कुल 33 पदक जीते. इनमें 12 स्वर्ण पदक, 13 रजत पदक और आठ कांस्य पदक हैं. टोक्यो ओलंपिक से तुलना करें, तो जर्मनी ने दो ज्यादा गोल्ड मेडल जीते, लेकिन पदक तालिका में वह एक स्थान नीचे आ गया.

टोक्यो ओलंपिक में 37 पदक जीतकर जर्मनी 9वें नंबर पर रहा था. वहीं 2008, 2012 और 2016 में जर्मनी पदक जीतने वाले शीर्ष छह देशों में था.

कई दशकों में जर्मनी का सबसे खराब प्रदर्शन

1990 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण के बाद से ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में यह जर्मनी का सबसे खराब प्रदर्शन है. एकीकरण के बाद 1992 में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में जर्मनी ने 33 गोल्ड मेडल समेत कुल 82 मेडल जीते थे.

पेरिस ओलंपिक 2024 में हालांकि जर्मनी एथलेटिक्स और तैराकी जैसे ओलंपिक के मुख्य आकर्षणों में अपना प्रदर्शन बेहतर किया, लेकिन कुश्ती, तलवारबाजी और शूटिंग जैसे खेलों में मेडलों की कमी हैरानी का विषय रही. जर्मन साइक्लिंग फेडरेशन की उम्मीदों से विपरीत साइक्लिंग मुकाबलों में जर्मनी को दो ही पदक मिले. इनमें एक रजत और एक कांस्य पदक है.

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व्यापक रणनीति की जरूरत

थोमास वाइकेर्ट, जर्मन ओलंपिक खेल संघ के अध्यक्ष हैं. जर्मनी के टीवी ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ से बात करते हुए उन्होंने प्रदर्शन सुधारने के लिए कई स्तरों पर कदम उठाने की जरूरत बताई. उन्होंने रेखांकित किया, "कई स्तरों पर कदम उठाए जाने की जरूरत है. हमें ज्यादा संख्या में कोच चाहिए और कोचों के लिए बेहतर वेतन होना चाहिए. मैं कई साल से इस दिशा में कोशिश कर रहा हूं. अभी तक इसमें कामयाबी नहीं मिली है."

यॉर्ग ब्यूगनर, जर्मन एथलीट्स एसोसिएशन के खेल निदेशक हैं. समाचार एजेंसी डीपीए से बातचीत में जर्मनी के खराब प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, "हम एक्सेल स्प्रेडशीट बनाते हैं. बाकी ट्रेनिंग करते हैं. यह सही तो नहीं हो सकता."

जर्मनी में ओलंपिक मेजबानी की कोशिशें

ओलंपिक में जर्मन खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद इस लिहाज से भी ज्यादा है कि जर्मनी में ओलंपिक मेजबानी के लिए दावा पेश करने की तैयारी हो की जा रही है. जर्मन ओलंपिक स्पोर्ट्स कंफेडरेशन (डीओएसबी) ने 2036 और 2040 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की मेजबानी के लिए अभियान चलाया है, जिसे चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सरकार से भी समर्थन मिल रहा है.

इस आयोजन में जर्मनी के बर्लिन, हैम्बर्ग, लाइपजिग और म्युनिख शहरों को शामिल किए जाने की योजना है. बीते दशकों में मेजबानी से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं को जर्मनी में स्थानीय लोगों से ज्यादा समर्थन नहीं मिला है. विशालकाय खर्च, पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं जैसे कारणों से जर्मनी में ऐसे बड़े आयोजनों की आलोचना बढ़ रही है.

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अगर मेजबानी से जुड़ा अभियान सफल होता है, तो घरेलू टीम से ज्यादा अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद होती है. पेरिस ओलंपिक 2024 का मेजबान फ्रांस 64 पदकों के साथ तालिका में पांचवें नंबर पर रहा. टोक्यो ओलंपिक के 33 मेडलों से यह करीब दोगुनी संख्या है. फ्रांस के गोल्ड मेडल भी बढ़े हैं. टोक्यो ओलंपिक में जहां उसने 10 स्वर्ण पदक जीते थे, वहीं पेरिस ओलंपिक में फ्रांस ने 16 गोल्ड जीते हैं. इसी तरह टोक्यो ओलंपिक में भी 27 गोल्ड मेडल समेत कुल 58 पदक जीतकर मेजबान जापान पदक तालिका में तीसरे स्थान पर रहा.

खेल प्रतियोगिताओं में चीन का दबदबा

मेजबानी से इतर कई जानकार ओलंपिक जैसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक ढांचे को अहम बताते हैं. इसे चीन के उदाहरण से समझा जा सकता है.

चीन में छोटी उम्र से ही बच्चों को अलग-अलग खेलों में प्रशिक्षित करने के लिए व्यापक राष्ट्रीय ढांचा है. हालांकि, यह आलोचना भी होती है कि चीन में खिलाड़ियों पर मेडल लाने का काफी ज्यादा दबाव होता है. अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में ज्यादा पदक जीतना चीन में राष्ट्रीय गौरव से जोड़कर देखा जाता है.

चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' ने पेरिस ओलंपिक खत्म होने के बाद प्रतियोगिता में टीम चाइना के प्रदर्शन की तारीफ करते हुए इसे रिकॉर्डतोड़ बताया. अखबार ने लिखा, "चीन के विश्लेषकों ने कहा कि यह साबित करता है कि चीन के आधुनिकीकरण की कामयाबी केवल आर्थिक तरक्की ही नहीं ला सकती है, बल्कि यह जन स्वास्थ्य के विकास में भी फायदा पहुंचा रही है."

ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा, "विशेषज्ञ कहते हैं कि यह मुख्य कारण है कि क्यों पिछले दशकों में चीन की 140 करोड़ की आबादी में से इतनी संख्या में युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ी लगातार उभर रहे हैं और वे उन खेलों में वैश्विक कीर्तिमान भी तोड़ सकते हैं, जिनमें लंबे समय तक अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का दबदबा रहा है."

ग्लोबल टाइम्स ने कथित विशेषज्ञों के हवाले से यह आरोप भी लगाया कि अमेरिका, मीडिया और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उन देशों की राह में रोड़े अटकाने की कोशिश करता है, जो पदक तालिका में उसे चुनौती देने की क्षमता रखते हैं. हालांकि, अतीत में चीन के खिलाड़ियों पर डोपिंग के आरोप लगते रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय खेल मुकाबलों में चीन लगातार अच्छा प्रदर्शन करता रहा है. 2008 में हुए बीजिंग ओलंपिक में तो मेजबान चीन ने पहली बार अमेरिका को पीछे छोड़ दिया. उसने कुल 100 पदक जीते, जिनमें 48 गोल्ड मेडल थे. वहीं अमेरिका ने 112 पदक जीते, लेकिन गोल्ड के मामले में वह 36 पदकों के साथ चीन से काफी पीछे रहा.

इसके बाद 2012 में हुए लंदन ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में अमेरिका ने फिर से टॉप पर वापसी की. टीम यूएसए को 104 और टीम चाइना को 92 पदक मिले. दोनों देशों के स्वर्ण पदकों की संख्या क्रमश: 48 और 39 रही.

चीन और अमेरिका में कड़ी टक्कर

रियो ओलंपिक 2016 में चीन का प्रदर्शन थोड़ा फीका रहा और वह अमेरिका और ब्रिटेन के बाद तीसरे नंबर पर रहा था. हालांकि, दिलचस्प यह था कि पदकों की कुल संख्या में चीन (70 मेडल) ब्रिटेन (67) से अधिक था, लेकिन 27 स्वर्ण जीतकर ब्रिटेन पदक तालिका में दूसरे नंबर पर रहा. चीन ने यहां 26 गोल्ड मेडल जीते थे. वहीं, अमेरिका ने 46 स्वर्ण पदक समेत कुल 121 मेडल जीते.

इसके बाद के ओलंपिक मुकाबलों को देखें, तो एक दिलचस्प रुझान नजर आता है. चीन भले ही पदक तालिका में अमेरिका के बाद हो, लेकिन दोनों देशों के स्वर्ण पदकों की संख्या में फर्फ कम होता जा रहा है.

टोक्यो ओलंपिक में अमेरिका ने 39 और चीन ने 38 स्वर्ण पदक जीते. पदकों की कुल संख्या में अमेरिका को 113 और चीन को 89 मेडल मिले.

पेरिस ओलंपिक में 91 मेडलों के साथ चीन पदक तालिका में दूसरे स्थान पर रहा. 126 मेडलों के साथ पहले नंबर पर रहे अमेरिका और चीन, दोनों ने 40-40 गोल्ड मेडल जीते. अर्थव्यवस्था और भूराजनीति में चीन और अमेरिका के बीच जारी प्रतिद्वंद्विता का एक अध्याय इन बड़े खेल आयोजनों में भी दिखता है.

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यह प्रदर्शन ऐसे देश का है, जिसने पहली बार 1984 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में हिस्सा लिया. शू हाइफेंग ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का प्रतिनिधित्व करते हुए पहली बार मेडल जीता. इससे पहले चीन इस खेल प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेता था. इसकी वजह ताइवान को मिली मान्यता थी.

संयुक्त राष्ट्र की मान्यता के आधार पर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति भी रिपब्लिक ऑफ चाइना, यानी ताइवान को चीन का आधिकारिक प्रतिनिधि मानती थी. जबकि अपनी 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत बीजिंग का दावा था कि चीन नाम का एक ही संप्रभु देश है, उसकी सत्तारूढ़ चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी ही वैध सरकार है और ताइवान, चीन का अभिन्न अंग है.

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