अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के खुफिया दस्तावेजों के लीक होने से अमेरिका और उसके सहयोगी खासे परेशान हैं. ये दस्तावेज यूक्रेन युद्ध से जुड़े कई राज खोल रहे हैं.यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका के खुफिया सैन्य दस्तावेज लीक हुए, अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ है. लेकिन अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की हवाइयां उड़ रही हैं. वह पूरी तरह डैमेज कंट्रोल की मुद्रा में है. अमेरिका अपने सहयोगियों को भरोसा दिलाना चाह रहा है कि ऐसा आगे नहीं होगा और उनके हित सुरक्षित रहेंगे. साथ ही लीकेज कहां से हुई, इसकी पड़ताल भी की जा रही है.
लीक से क्या क्या पता चला है
लीक दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को पता है कि कैसे रूसी ऑपरेटिव्स संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से रिश्ते पक्के कर रहे हैं. यूएई में अमेरिकी सेना के अहम ठिकाने हैं. यूएई और अमेरिका साझेदार देश भी हैं, लेकिन लीक दस्तावेजों के सामने आने के बाद रिश्ते असहज हो रहे हैं. यूएई ने रूसी तंत्र के साथ नजदीकी रिश्तों के आरोपों को खारिज किया है.
पुतिन ने यूक्रेन पर रूसी हमले का ठीकरा पश्चिमी देशों के सिर पर फोड़ा
अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक मिस्र के राष्ट्रपति ने अपने अधिकारियों को गुपचुप तरीके से 40,000 रॉकेट, जहाज के जरिए रूस भेजने का आदेश दिया. इन रॉकेटों को यूक्रेन युद्ध के लिए भेजा जाना था. मिस्र के विदेश मंत्रालय ने "इस संकट में कोई हिस्सेदारी नहीं और दोनों पक्षों से समान दूरी बनाए रखने" का दावा करते हुए, इन आरोपों को खारिज किया है.
लीक हुए एक और दस्तावेज के आधार पर दावा किया जा रहा है कि कैसे अमेरिकी दबाव के बावजूद दक्षिण कोरिया के नेता यूक्रेन को तोप के गोले देने में हिचक रहे हैं. एक डॉक्यूमेंट के मुताबिक, इस्राएली खुफिया एजेंसी मोसाद, प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू के प्रस्तावित न्यायिक सुधारों का विरोध कर रही है.
इंटरनेट पर जारी हुए खुफिया दस्तावेजों में यह भी कहा गया है कि सर्बिया, यूक्रेन को हथियार देने के लिए तैयार हो चुका है या शायद उसने हथियार भेज भी दिए हैं. सर्बिया यूरोप में ऐसा अकेला देश है, जिसने यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा नहीं की थी.
कुछ दस्तावेजों में इस बात का भी जिक्र है कि किन परिस्थितियों में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों पर सवाल
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को हर साल 90 अरब डॉलर का बजट मिलता है. इसकी मदद से उनके पास इलेक्ट्रॉनिक संवाद को दर्ज करने, जासूसों की मदद लेने और सैटेलाइटों से निगरानी करने वाला बेहद मजबूत तंत्र है. अमेरिका खुफिया एजेसियों की ताकत का अंदाजा सार्वजनिक रूप से नहीं के बराबर होता है. हालांकि इतने बड़े लीकेज ने खुफिया एजेंसियों की गोपनीयता कायम रखने की काबिलियत पर बट्टा लगा दिया है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय, पेंटागन ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर लीक हुए दस्तावेजों के असर की जांच शुरू कर दी है. इसकी कमान मिलेंसी डी हैरिस को दी गई है. साथ ही पेंटागन ने ब्रीफिंग में शामिल होने वाले लोगों की संख्या भी घटा दी है. पेंटागन के अधिकारी ये भी जांच कर रहे हैं कि लीक हुआ मटीरियल कहां कहां अपलोड किया गया है.
सीआईए के डायरेक्टर विलियम बर्न्स ने लीक को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है. बर्न्स ने कहा, "यह कुछ ऐसा है जिसे अमेरिकी सरकार बेहद गंभीरता से लेती है. पेंटागन और न्याय मंत्रालय ने इसकी तह तक जाने के लिए बहुत ही कड़ी जांच शुरू कर दी है.
लीकेज का असर
अमेरिकी सेना के वरिष्ठ अधिकारी सहयोगी देशों से संपर्क कर, नुकसान को कम करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं. उच्च स्तर पर हो रही इस बातचीत में खुफिया तंत्र की सुरक्षा का आश्वासन दिया जा रहा है और सुरक्षा साझेदारी को निभाने की कसमें भी दोहराई जा रही हैं. एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक ये बातचीत सप्ताहांत में शुरू हुई और अब भी जारी है.
अमेरिका-जर्मन संबंधों का टेस्ट बना यूक्रेन युद्ध
अगले हफ्ते कई अमेरिकी अधिकारियों को जर्मनी आना है. जर्मनी में कॉन्टेक्ट ग्रुप की मीटिंग होनी है. इसमें 50 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे और यूक्रेन को मदद देने की रणनीति पर चर्चा की जाएगी. माना जा रहा है कि इस बैठक में अमेरिकी अधिकारियों को कई कड़े सवालों का सामना करना पड़ेगा.
लीक कांड के बाद सहयोगी देशों के मन में यह सवाल भी उठ सकते हैं कि अमेरिकी इंटेलिजेंस के साथ जानकारी साझा करना कितना सुरक्षित है.
इस बीच अमेरिकी रक्षा मंत्रालय का बार बार कहना है कि लीक हुई जानकारी में बहुत सी इंफॉर्मेशन झूठी है. उसका दावा है कि लीक की आड़ में गलत जानकारी फैलाकर प्रोपेगंडा चलाने की कोशिश की जा रही है.
ओएसजे/एनआर (एपी)