पोस्टर बॉय से भगोड़ा बनने वाले पूर्वी जर्मनी के पहले काले पुलिसकर्मी की कहानी
डिज्नी प्लस पर “सैम: ए सैक्सन” नामक सीरीज आई है.
डिज्नी प्लस पर “सैम: ए सैक्सन” नामक सीरीज आई है. इसमें पूर्वी जर्मनी के एक काले पुलिसकर्मी और जर्मनी के एकीकरण के बाद के मीडिया स्टार की अविश्वसनीय कहानी बतायी गई है, जो बाद में एक भगोड़ा बन जाता है.जब "सच्ची कहानी पर आधारित” फिल्मों और टीवी सीरीज की बात आती है, तो "आप इसे नहीं बना सकते” सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला वाक्यांश है. हालांकि, अगर कोई कहानी ‘कल्पना से ज्यादा अविश्वसनीय' लगती है, तो वह सैमुअल मेफायर की है.
डिज्नी प्लस ने मेफायर की जिंदगी पर आधारित नई सीरीज "सैम: ए सैक्सन” बनाई है, जिसकी कहानी अविश्वसनीय है. 1970 में लाइपजिष शहर के बाहर जन्मे कैमरूनियन पिता और जर्मन मां के बेटे मेफायर पूर्वी जर्मनी में पहले काले पुलिसकर्मी बने.
बर्लिन की दीवार गिरने के बाद, लेकिन जर्मनी के एकीकरण से ठीक पहले मेफायर 1990 में डॉयचे फोल्क्सपोलित्साई (जर्मन पीपुल्स पुलिस) में शामिल हो गए थे. 1990 के दशक की शुरुआत में वह थोड़े समय के लिए नये, उदार, और बहुसांस्कृतिक जर्मनी के लिए पोस्टर बॉय बन गए. वे एक पीआर कैंपेन का चेहरा बने जिसे पूर्व जीडीआर का एक अलग पक्ष दिखाने के लिए तैयार किया गया था.
पोस्टर बॉय बन गया भगोड़ा
हालांकि, कुछ ही दिनों के बाद मेफायर की लोकप्रियता में नाटकीय तौर पर गिरावट आई. पुलिस में मौजूद नौकरशाही और राजनीतिक भ्रष्टाचार से निराश मेफायर ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी. 1990 के दशक के अंत तक वह भगोड़ा बन चुके थे और हथियारों के बल पर डकैतियां करना चाहते थे. वह लगातार एक जगह से दूसरी जगह भागते रहे. आखिरकार वह जायरे (मौजूदा समय में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो) पहुंचे और गृह युद्ध में पकड़े गए. इसके बाद उन्हें प्रत्यर्पित कर जर्मनी लाया गया. यहां दोषी ठहराए जाने के बाद मेफायर ने सात साल जेल में बिताए.
जर्मनी पहुंचे बोरिस बेकर ने सुनाई जेल मेंं गुजरी रातों की कहानी
डिज्नी प्लस की सीरीज में कुछ कलात्मक बदलाव किए गए हैं. नाम बदला गया है, कुछ घटनाएं जोड़ी गई हैं और सात हिस्सों वाली इस सीरीज को बेहतर बनाने के लिए कुछ नई स्थितियों और घटनाओं को जोड़ा गया है. हालांकि, मूल रूप से इसमें मेफायर की जिंदगी से जुड़ी घटनाएं दिखाई गई हैं.
पूर्वी जर्मनी में जन्में काले लोगों की जिंदगी दिखाने की कोशिश
‘सैम: ए सैक्सन' के निर्माता यॉर्ग विंगर कहते हैं, "मैंने पहली बार सैम की कहानी के बारे में कई साल पहले सुना था और मैंने तुरंत सोचा कि यह एक अविश्वसनीय टीवी शो बन सकता है. वह साल था 2006. हर टीवी चैनल से हमें एक ही प्रतिक्रिया मिली कि व्यक्तिगत रूप से यह कहानी हमें पसंद है, लेकिन हमें नहीं लगता कि जर्मनी के दर्शक इसके लिए तैयार हैं.”
विंगर का कहना है कि टीवी अधिकारियों का यह मानना था कि जर्मन दर्शक सैमुअल मेफायर की वास्तविकता को स्वीकार नहीं करेंगे. पूर्वी जर्मनी में जन्मे काले व्यक्ति की व्यक्तिगत कहानी उनके साझा राजनीतिक इतिहास के एक अलग पहलू को सामने लाती है.”
जब बर्लिन की दीवार गिरी, तब पूर्वी जर्मनी में रहने वाले करीब एक लाख गैर-श्वेत प्रवासी श्रमिक के तौर पर पंजीकृत थे. उनमें से अधिकांश क्यूबा, वियतनाम, अंगोला, मोजाम्बिक सहित तथाकथित समाजवादी ‘ब्रदर स्टेट' के थे.
मेफायर कहते हैं कि उनके पिता कैमरून के एक इंजीनियरिंग छात्र थे. वे जर्मनी के ‘काफी हद तक सकारात्मक' दृष्टिकोण के साथ बड़े हुए. वह आगे कहते हैं, "कैमरून के जिस क्षेत्र से वे थे वहां के बारे में यह धारणा रही है कि जर्मनी के औपनिवेशिक शासन के दौरान वहां स्वर्ण युग था. बाद में यह इलाका फ्रांस के शासकों के अधीन आ गया.”
मेफायर ने अपने पिता को कभी नहीं देखा. जिस दिन उनका जन्म रहस्यमय परिस्थितियों में हुआ था उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई थी.
डिज्नी प्लस की सीरीज और मेफायर के संस्मरण ‘मी, ए सैक्सन' में बताया गया है कि उनकी मां ने कहा था कि उनके पिता को उन अधिकारियों ने जहर देकर मार दिया जो उन्हें रासायनिक रूप से नपुंसक बनाने की कोशिश कर रहे थे. मेफायर ने अपना संस्मरण जर्मन इतिहासकार और नाटककार लोथर किट्स्टेन के साथ मिलकर लिखा है.उत्तर कोरिया के भगोड़े की दक्षिण कोरिया में जिंदगी
बर्लिन की दीवार गिरने के बाद खराब हुए हालात
मेफायर मानते हैं कि पूर्वी जर्मनी में एक काले लड़के का जीवन आसान नहीं था. जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (जीडीआर) के खत्म होने के बाद हालात और भी बदतर हो गए, क्योंकि दक्षिणपंथी उपद्रवियों और नव-नाजियों ने राजनीतिक हालात का फायदा उठाया.
मेफायर कहते हैं, "पश्चिमी लोगों के लिए यह कल्पना करना लगभग असंभव है कि यह कैसा था. सैकड़ों की संख्या में नव-नाजी ड्रेसडेन की सड़कों पर मार्च कर रहे थे. किसी भी काले व्यक्ति को देखने पर वह उनका पीछा करते थे, उन पर हमला करते थे और उनकी पिटाई करते थे.”
अपनी किताब में मेफायर इस भीड़ को ‘समुद्री राक्षस' और ‘पिशाच' कहते हैं. हालांकि, मेफायर यह भी कहते हैं, "पुलिस विभाग मेरे लिए ‘एकजुटता और सौहार्द' का स्थान था. मैंने व्यक्तिगत रूप से किसी नस्लवाद या घृणा का अनुभव नहीं किया. यहां काफी ज्यादा भाईचारा था.”
काले लोगों की कहानी
डिज्नी प्लस की यह सीरीज स्ट्रीमर का अब तक का पहला जर्मन प्रोडक्शन है. इसमें राजनीतिक थ्रिलर भी है, अपराध भी है और एक युवा होते लड़के की कहानी भी, क्योंकि इसमें मेफायर की कहानी बताई गई है.
इस सीरीज में मेफायर का किरदार मलिक बाउर ने निभाया है. दूसरे ज्यादातर किरदार भी काले जर्मन ने निभाए हैं. सह-निर्माता/सह-लेखक टायरॉन रिकेट्स, न्यामंडी एड्रियान, पाउला एस्सम सहित अन्य लोगों ने इस बेहतर सीरीज को बनाने में अहम भूमिका निभाई है.
पर्दे के पीछे भी साफ तौर पर विविधता नजर आती है. पूर्वी जर्मनी में जन्मे एफ्रो-जर्मन अभिनेता और लेखक टोक्स कॉर्नर और ऑस्ट्रेलियाई-नाइजीरियाई पटकथा लेखक मलिना नवाबुओंवोर ने भी इस सीरीज को बनाने में योगदान दिया है. यह जर्मन टीवी के इतिहास में क्रांतिकारी बदलाव की तरह है. मुख्यधारा की इस सीरीज का लक्ष्य जर्मनी के काले लोगों की कहानी बताना है.
विंगर कहते हैं, "हमने बर्लिन में सैक्सनी राज्य सरकार के कार्यालय में फिल्म की स्क्रीनिंग की. राज्य सरकार के पूर्व गृह मंत्री हाइनस एगर्ट, जो तत्कालीन चांसलर हेल्मुट कोल के काफी करीबी थे, ने कहा कि इस सीरीज ने उन्हें उस इतिहास को अलग नजरिए से देखने का मौका दिया जिसे उन्होंने खुद जिया है.” 52 वर्षीय एगर्ट ने कहा, "सैम: ए सैक्सन सिर्फ मेफायर की कहानी नहीं है. ऐसा वास्तव में हुआ है. यह उनके अविश्वसनीय जीवन की भावनात्मक सच्चाई को दिखाता है.”
फिलहाल, मेफायर बॉन में अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ रहते हैं. यहां वे सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और सिक्योरिटी कॉन्ट्रैक्टर के तौर पर काम करते हैं. ‘सैम: ए सैक्सन' पूरी दुनिया में डिज्नी प्लस पर और अमेरिका में हुलु पर दिखाई जा रही है.