सिमटी ताकत और हिंदू प्रधानमंत्री वाले ब्रिटेन में राजा की ताजपोशी

ब्रिटेन और ब्रिटेन के लोग आज के दौर में भी राजशाही के मोहपाश से मुक्त नहीं हुए हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

ब्रिटेन और ब्रिटेन के लोग आज के दौर में भी राजशाही के मोहपाश से मुक्त नहीं हुए हैं. दुनिया भर में परंपरा और रिवायतें पीछे छूट रही हैं लेकिन ब्रिटेन में आज भी बड़ा तबका उन लोगों का है जो राजशाही को लेकर उत्साह में हैं.ब्रिटेन में 70 बरस बाद 74 वर्ष के किंग चार्ल्स तृतीय की औपचारिक ताजपोशी की चर्चा लाजमी है. हालांकि यह समारोह ब्रिटेन के राजा को गद्दी पर बैठाने से जुड़ी परंपरागत रस्मों को निभाने का मौका भर है क्योंकि चार्ल्स महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की मौत के बाद से ही राजा का कार्यभार संभाल चुके हैं.

खास बात यह है कि स्वर्गीय महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी और 2023 में ब्रेक्जिट और कोविड महामारी के बाद हो रही इस भव्य रस्म अदायगी के बीच ब्रिटेन की वैश्विक ताकत और सामाजिक परिस्थितियां में बहुत अंतर चुका है. 1953 में दूसरे विश्वयुद्ध से उबर रहे ब्रिटेन में 27 वर्ष की युवा महारानी की ताजपोशी का समारोह, ब्रिटेन की सैन्य और आर्थिक ताकत दिखाने और देश को उम्मीद बंधाने का एक प्रतीकात्मक मौका था लेकिन किंग चार्ल्स के आते-आते देश और दुनिया खासे बदल चुके हैं.

राजकुमार से राजा तक चार्ल्स

चार्ल्स का जन्म 14 नवंबर 1948 को बकिंघम पैलेस में हुआ. जब उनकी मां एलिजाबेथ के सिर पर ताज रखा गया तब वो चार बरस के थे. उनकी पढ़ाई-लिखाई पश्चिमी लंदन के हिल हाउस और दो दूसरे स्कूलों में पूरी हुई. साल 1969 में 20 वर्ष की उम्र में उन्हें प्रिंस ऑफ वेल्स की उपाधि दी गई. चार्ल्स ने 29 जुलाई 1981 को लेडी डायना स्पेंसर से शादी की जिनके साथ उनके दो बेटे है- विलियम और हैरी. ये शादी 1996 में टूट गई और 1997 में लेडी डायना की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई.

साल 2005 में चार्ल्स ने कैमिला पार्कर बाउल्स से शादी कर ली. चार्ल्स के राजा बनने के बाद कैमिला पार्कर क्वीन कॉन्सॉर्ट यानी राजा की पत्नी घोषित की गईं. इस ताजपोशी समारोह के दौरान इस पद की औपचारिक रस्में भी निभाई जा रही हैं.

गौर करने लायक बात यह है कि 2023 में जिस आर्थिक-सामाजिक हालात में सदियों पुरानी इन रीतियों को निभाया जा रहा है वहां ना सिर्फ राजशाही की प्रासंगिकता सवालों के घेरे में है बल्कि ब्रेक्जिट के बाद खुद ब्रिटेन की वैश्विक भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है. राजा को सिंहासन सौंपने की इस रस्म में एक दिलचस्प बात ये भी है कि पहली बार दक्षिण-एशियाई पृष्ठभूमि वाले हिंदू प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने बाइबिल के एक हिस्से का पाठ करने की परंपरा निभाएंगे जो राजशाही के इतिहास में अभूतपूर्व पल है.

जितनी चर्चा राजा और उनकी पत्नी कैमिला के ताज और कपड़ों की है, उतनी ही चर्चा इस बात की भी है कि आखिर इस समारोह और आधुनिक ब्रिटेन में राजशाही की जरूरत ही क्या है. ब्रिटिश लोग आज भी राजपरिवार के दीवाने क्यों हैं और ताजपोशी उनके लिए क्या मायने रखती है, ये जानना दिलचस्प है.

राजशाही- परंपरा और स्थायित्व

78 साल के डेरेक ब्राउन वेल्स से लंदन पहुंचे हैं सिर्फ किंग चार्ल्स की ताजपोशी का नजारा देखने. डेरेक 1953 में आठ बरस के थे जब उन्होने टीवी पर स्वर्गीय महारानी एलिजाबेथ द्वीतीय को ताज पहनाने का समारोह देखा था. डीडब्ल्यू से बातचीत में डेरेक वो कहते हैं कि "हो सकता है बहुत सारे लोगों के लिए राज-परिवार उनकी ब्रिटिश पहचान का हिस्सा हो लेकिन मेरी समझ से राजशाही इस देश में स्थायित्व का प्रतीक है. युद्ध के बाद ब्रिटेन में एलिजाबेथ का रानी बनना बहुत उम्मीदें लेकर आया था और मुझे किंग चार्ल्स के दौर से भी उतनी ही उम्मीद है, अपने लिए नहीं अपने छह नाती-पोतों के लिए. उस वक्त मीडिया इतना फैला नहीं था और इतनी निंदा नहीं होती थी लेकिन मुझे लगता है कि शाही परिवार ने चुनी हुई सरकार से अलग अपनी सामाजिक भूमिका बेहतर ढंग से निभाई है.”

सकारात्मकता का प्रतीक

ताजपोशी समारोह के लिए राजा-रानी की शाही सवारी के तयशुदा रास्ते के किनारे गुरुवार से ही डेरा जमाए लिवरपूल शहर की एलिसन हैमिल्टन के लिए राजशाही और ताजपोशी समारोह दोनों की खासी अहमियत है. एलिसन कहती हैं कि "मुझे लगता है कि यह मौका हर उस चीज का भरपूर प्रदर्शन करता है जो ब्रिटेन को खास बनाता है- रीति-रिवाज का भव्य प्रदर्शन, इतिहास और प्रतिष्ठा. हम खुशकिस्मत है कि हमें इस अद्भुत पल का गवाह बनने का मौका मिल रहा है. राजपरिवार ब्रिटिश जीवन का सकारात्मक पहलू है”.

इसी तरह की राय एलिजाबेथ ऐलिंगम की है. ब्रिटेन के लेस्टर शहर से राजा-रानी की झलक देखने की आस लिए आईं एलिजाबेथ मानती हैं कि "बड़ी संख्या में ब्रिटिश लोगों के लिए राजशाही मायने रखती है क्योंकि यह परंपरा और इतिहास की अनवरत यात्रा का प्रतीक है. इस समारोह के लिए हजारों लोगों की मौजूदगी ये जताती है कि उनका इस देश पर और उसके शासन पर भरोसा है”.

युवाओं में भी जोश

सिर्फ बूढ़े और अधेड़ लोगों ही राजशाही के दीवाने हैं, ऐसा नहीं है. उत्तरी इंग्लैंड के रहने वाले 20 साल के डैनी अपने दोस्तों के साथ इस समारोह का हिस्सा बनने को लेकर उत्साहित हैं. उनका कहना है कि उन्हें राजपरिवार के सारे सदस्य तो पसंद नहीं हैं लेकिन राजशाही के लिए उनके मन में इज्जत है. वजह पूछने पर वो कहते हैं "लोग इस व्यवस्था की आलोचना करते हैं, राजपरिवार की संपत्ति पर टिप्पणियां की जाती हैं लेकिन परिवारवाद तो ऐसी बहुत सी पूंजीवादी कंपनियों का भी चल रहा है जिनका बिजनेस पूरी दुनिया में है. यहां बस एक परिवार है जिसके पास बहुत सारी जमीन और पैसा है और हम उस व्यवस्था का हिस्सा हैं”.

ब्रिटिश जनता में राजशाही के लिए लगाव इतिहास और पहचान से जुड़ा है लेकिन परंपरा और प्रतिष्ठा का ये जमावड़ा गैर-ब्रिटिश लोगों के लिए भी कौतूहल का विषय है. दक्षिण अमेरिकी देश चिली के रहने वाले डैनियल गतिका चंद महीनों से ब्रिटेन में काम कर रहे हैं और इस मौके को देखने का मोह नहीं छोड़ पाए.

इस रस्म-अदायगी की जरूरत पर बात करते हुए डैनियल एक दिलचस्प विचार सामने रखते हुए कहते हैं कि दुनिया के बहुत से देशों में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है जो उनके लिए राष्ट्रीय महत्व का दिन होता है. ब्रिटेन को आजादी का मतलब तो नहीं पता लेकिन ये समारोह ही यहां की जनता के लिए एकजुट होकर राष्ट्रीय पर्व मनाने जैसा है.”

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ब्रिटिश जनता के लिए राजा की ताजपोशी इतिहास, परंपरा और पहचान को एकसाथ पिरोने वाला पल है जो दशकों में पहली बार आया है. हालांकि जिसकी चर्चा इन भावनापूर्ण बातों में नहीं होती वो इस ताज से जुड़ा ब्रिटेन का अन्यायपूर्ण साम्राज्यवादी इतिहास है जिसे पढ़ाने की रस्म इस देश में नहीं निभाई जाती.

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