पाकिस्तान-भारत एक और युद्ध नहीं झेल सकते: शाह महमूद कुरैशी

पाकिस्तान (Pakistan) के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी (Shah Mahmood Qureshi) ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान एक और युद्ध नहीं झेल सकते हैं क्योंकि दोनों परमाणु हथियारों से संपन्न देश हैं.

भारत और पाकिस्तान/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: File Photo)

इस्लामाबाद: पाकिस्तान (Pakistan) के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी (Shah Mahmood Qureshi) ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान एक और युद्ध नहीं झेल सकते हैं क्योंकि दोनों परमाणु हथियारों से संपन्न देश हैं. चीनी विदेश मंत्री वांग यी के एक बयान पर सवाल उठाने के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री की यह टिप्पणी आई है, जिन्होंने कहा था कि कुछ देशों ने सिर्फ एक फोन कॉल पर अपनी स्थिति बदल दी. कुरैशी ने कहा कि चीनी विदेश मंत्री द्वारा दिया गया बयान पाकिस्तान की ओर निर्देशित नहीं है.

भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में टिप्पणी करते हुए कुरैशी ने कहा कि यह पाकिस्तान का दृढ़ विश्वास है कि "सभी मुद्दों को बातचीत के माध्यम से हल किया जा सकता है." साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एक अनुकूल वातावरण बनाना भारत की जिम्मेदारी है.

उन्होंने कहा, "पाकिस्तान का भारत के साथ व्यापार पर एक स्पष्ट रुख है. बातचीत के लिए माहौल को अनुकूल बनाने के लिए अब भारत की बारी है." उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति के बारे में पाकिस्तान की 'गंभीर चिंताएं' हैं. "कश्मीर और विभिन्न राजनीतिक दलों के लोगों ने 5 अगस्त, 2019 के भारत सरकार के फैसले को पहले ही खारिज कर दिया था."

गौरतलब है कि कुरैशी का बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान में इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार ने भारत के साथ व्यापार खोलने के अपने फैसले पर यू-टर्न लिया है. इसके सारांश को बाद में कैबिनेट की बैठक में खारिज कर दिया गया, जिसमें दोहराया गया था कि भारत के साथ कोई व्यापार नहीं हो सकता जब तक यह 5 अगस्त, 2019 के अपने उस फैसले को पलट नहीं देता, जिसने तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को बदल दिया और अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त करते हुए इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.

पाकिस्तान सरकार का कहना है कि कश्मीर पर उसकी स्थिति नहीं बदल सकती, लेकिन विपक्षी पार्टियों ने देश की विदेश नीति से संबंधित बड़े फैसले लेने में सरकार की मंशा और योग्यता पर गंभीर सवाल उठाए हैं. इसके अलावा, हाल ही में पर्यावरण सम्मेलन के लिए अमेरिका द्वारा अनदेखी किए जाने के बाद देश की विदेश नीति और दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाए गए हैं.

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