अनियमित प्रवासियों और शरणागतों को दाखिल होने से रोकने के लिए जर्मनी अपनी सीमा को ज्यादा चाक-चौबंद कर रहा है. पड़ोसी देशों से जुड़ी जर्मन सीमा पर अब जांच बढ़ जाएगी. क्या इससे शेंगन जोन की मुक्त आवाजाही प्रभावित होगी?जर्मनी में अब जमीन के रास्ते दाखिल होने पर सख्तियां बढ़ाई जा रही हैं. जर्मन सरकार ने घोषणा की है कि वह जमीनी सीमाओं पर नियंत्रण बढ़ाने की योजना बना रही है. सरकार ने बताया है कि इस कवायद का मकसद अवैध प्रवासियों को रोकना और इस्लामिक चरमपंथ जैसे खतरों से लोगों को बचाना है. हालिया समय में चाकू से हुए कई हमलों के संदर्भ में यहां माइग्रेशन को नियंत्रित करने और आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को जर्मनी से बाहर भेजने की मांग ने जोर पकड़ा है.
कितने देशों के साथ जुड़ी है जर्मनी की सीमा
जर्मनी में आंतरिक मामलों की मंत्री नैंसी फेजर ने कहा कि "लैंड बॉर्डर कंट्रोल" में प्रस्तावित सख्ती 16 सितंबर से लागू होगी. अभी इसे छह महीने तक जारी रखने की योजना है. उन्होंने सीमा सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत को चिह्नित करते हुए कहा, "जब तक हम संयुक्त यूरोपीय शरण संबंधी व्यवस्था के साथ विस्तृत सुरक्षा हासिल नहीं कर लेते हैं, तब तक हमें अपनी राष्ट्रीय सीमाओं को और सुरक्षित करना होगा."
उन्होंने बताया, "हम आंतरिक सुरक्षा मजबूत कर रहे हैं और अनियमित प्रवासियों के खिलाफ सख्ती बरकरार रख रहे हैं." जर्मन सरकार ने इस बारे में यूरोपीय संघ (ईयू) और पड़ोसी देशों को भी सूचित कर दिया है. नैंसी फेजर ने यह भी कहा कि बॉर्डर कंट्रोल का एक नया मॉडल ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को सीमा से ही लौटाने का साधन देगा. हालांकि, यह मॉडल क्या होगा इसका ब्योरा उन्होंने नहीं दिया.
जर्मनी की सीमा नौ देशों के साथ जुड़ी है. उत्तर में डेनमार्क है. पश्चिम में नीदरलैंड्स, बेल्जियम, लक्जमबर्ग और फ्रांस हैं. पूर्व में चेक रिपब्लिक और पोलैंड हैं. और, दक्षिण में स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया हैं. यूरोप में सबसे ज्यादा पड़ोसियों से घिरा देश जर्मनी ही है.
11 साल बाद फिर हुआ शेंगन का विस्तार
जर्मनी के ये सभी पड़ोसी "शेंगन जोन" में हैं. साल 1985 में गठित इस जोन में अब 29 देश हैं और यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त यात्रा क्षेत्र है. यूरोपीय संघ (ईयू) के 27 में से 25 सदस्य देश (आयरलैंड और साइप्रस को छोड़कर) शेंगन जोन का हिस्सा हैं. यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन के सभी सदस्य (आइसलैंड, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड और लिष्टेनश्टाइन) भी इसमें आते हैं. मुक्त आवाजाही का यह बड़ा इलाका यूरोपीय एकजुटता का अहम हिस्सा है. इस व्यवस्था में लोग एक ही 'शेंगन वीजा' से सभी सदस्य देशों में जा सकते हैं. अलग-अलग देशों में आने-जाने के लिए अलग-अलग वीजा नहीं लेना पड़ता.
पहले से ही कई देशों की सीमा पर लागू हैं अतिरिक्त उपाय
ईयू के नियमों के तहत, शेंगन इलाके के देश उसी सूरत में सीमा पर चेकिंग जैसे उपाय लागू कर सकते हैं जब या तो आंतरिक सुरक्षा पर खतरा हो या यह नीतिगत जरूरत हो. आतंकवादी हमलों या बड़े खेल आयोजनों की स्थिति में पहले भी सघन जांच जैसे एहतियात उठाए जाते रहे हैं. 2015 में जर्मनी ने प्रवासियों की बड़ी संख्या को रोकने के लिए ऑस्ट्रिया के साथ अपनी सीमा पर अस्थायी कंट्रोलिंग लागू की थी. यह अभी तक लागू है.
पिछले साल पोलैंड, चेक रिपब्लिक और स्विट्जरलैंड से जुड़ी सीमा पर भी ऐसे ही उपाय लागू किए गए. यानी, नए फैसले के अंतर्गत नीदरलैंड्स, डेनमार्क, फ्रांस, लक्जमबर्ग और बेल्जियम से जुड़ी सीमा पर चेकिंग जैसे सुरक्षा प्रावधान लागू किए जाएंगे. जर्मन सरकार ने बताया है कि सीमा पर अधिक नियंत्रण के कारण अक्टूबर 2023 से अब तक उसे करीब 30,000 प्रवासियों को बॉर्डर से लौटाने में सफलता मिली है.
शेंगन की मुक्त आवाजाही पर असर पड़ेगा?
ईयू की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और कई पड़ोसियों से घिरा होने के कारण जर्मनी ब्लॉक का एक बड़ा केंद्र है. जर्मन फेडरल एम्प्लॉयमेंट एजेंसी के मुताबिक, पड़ोसी देशों के करीब 2,40,000 लोग कामकाज के लिए यहां आते हैं. सीमा पर जांच बढ़ने से इन यात्रियों को आने-जाने में ज्यादा वक्त लग सकता है. परिवहन धीमा हो सकता है.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, जर्मनी के इस फैसले से यूरोपीय एकता पर भी असर पड़ सकता है. खासकर ऐसी स्थिति में अगर जर्मनी शरणागतों और प्रवासियों की बड़ी संख्या उन्हें अपने यहां लेने को कहे.
पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने जर्मनी की इस घोषणा को "अस्वीकार्य" बताया है. उन्होंने चेताया कि वह इस मसले पर संबंधित देशों की सरकारों से तत्काल बात करेंगे. समाचार एजेंसी डीपीए के मुताबिक, "पोलैंड को सीमा पर अधिक नियंत्रण की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें ईयू की बाहरी सीमाओं की रक्षा के लिए जर्मनी जैसे देशों की ओर से ज्यादा भागीदारी की जरूरत है."
इस योजना पर अमल करने में एक बड़ा सवाल यह भी है कि जर्मनी जिन लोगों को अपनी सीमा से लौटाएगा, उनका क्या होगा और वे कहां जाएंगे. ऑस्ट्रिया ने कहा है कि वह लौटाए गए लोगों को अपने यहां नहीं आने देगा. ऑस्ट्रिया के आंतरिक मामलों के मंत्री गेरहार्ड कार्नर ने एक समाचार पत्र से बात करते हुए कहा, "इसमें बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं. यह कानून है. मैंने पुलिस निदेशक को निर्देश दिया है कि वह कोई ट्रांसफर (लौटाए गए शरणार्थियों या प्रवासियों का) ना करें."
पहले ही शरणार्थियों के मसले पर हंगरी और ईयू के बीच तनाव है. हंगरी ने हाल ही में कहा कि उसकी सीमा में घुसने वाले माइग्रेंट्स को वह ब्रसेल्स भेज सकता है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बेल्जियम की विदेश मंत्री और ईयू कमिश्नर हदजा लाबीब ने सोशल मीडिया पर लिखा, "माइग्रेशन नीति एक चुनौती है, जिसके साथ समुचित तरीके से और सभी सदस्य देशों के बीच एकजुटता रखते हुए निपटा जाना चाहिए."
प्रवासियों और शरणार्थियों का मुद्दा
प्रवासियों, खासकर युद्ध प्रभावित देशों से आए रिफ्यूजियों, को शरण देने का मामला करीब एक दशक से जर्मनी में राजनीतिक और सामाजिक बहस का मुद्दा रहा है. 2015 में तत्कालीन चांसलर अंगेला मैर्केल ने 10 लाख से ज्यादा शरणार्थियों को जर्मनी में आने की इजाजत दी. मैर्केल के फैसले पर एक बड़ी चिंता यह जताई गई कि इससे दुनियाभर में बड़ी संख्या में अनियमित प्रवासियों और मानवीय आधार पर आने वाले माइग्रेंट्स के लिए जर्मनी आने के रास्ते खुल जाएंगे.
क्या जर्मन सरकार के गले की फांस बन गए हैं शरणार्थी?
2015 की माइग्रेशन रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल पिछले साल की तुलना में 135 फीसदी ज्यादा लोगों ने जर्मनी में शरण के लिए आवेदन दिया. आवेदकों में बहुतायत गृह युद्ध से प्रभावित सीरिया के थे. इसी रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में 21.4 लाख इमिग्रेंट्स पंजीकृत किए गए. इनमें अधिकांश संख्या सुरक्षा मांगने वालों की थी, लेकिन यूरोपीय संघ के देशों के भी लोग खासी तादाद में थे.
फरवरी 2022 में युक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भी यूक्रेनी शरणार्थियों की एक बड़ी खेप जर्मनी आई है. हालांकि, हालिया सालों में शरण मांगने वालों की संख्या कम हुई है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक खबर के मुताबिक, इस साल अगस्त तक असाइलम आवेदनों की संख्या में 21.7 फीसदी तक की गिरावट आई है.
क्या घरेलू राजनीति से प्रभावित है यह फैसला?
जर्मनी की आंतरिक राजनीति में अभी माइग्रेशन सबसे गर्म विषयों में है. पहले तो जून में हुआ यूरोपीय संसद का चुनाव, फिर सितंबर की शुरुआत में सैक्सनी और थुरिंजिया में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे और फिर इसी महीने ब्रांडनबुर्ग राज्य का चुनाव, सभी जगहों पर माइग्रेशन एक प्रमुख थीम रहा.
जर्मनी: धुर-दक्षिणपंथ की बड़ी जीत, लेकिन सत्ता मिलनी मुश्किल
हालिया महीनों में जर्मनी में चाकू से हुए हमलों ने और ऐसी कई वारदातों में प्रवासी या शरणार्थी पृष्ठभूमि के लोगों के शामिल होने ने इस बहस को और तेज किया है. धुर-दक्षिणपंथी और लोक-लुभावनवादी दलों ने इसे अपने चुनाव अभियान में प्रमुखता से जगह दी. धुर-दक्षिणपंथी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) और जारा वागनक्नेष्ट की पार्टी 'जारा वागनक्नेष्ट अलायंस' (बीएसडब्ल्यू) को मिली चुनावी सफलता में इन मुद्दों का बड़ा असर माना जा रहा है. वहीं, जर्मनी की मौजूदा गठबंधन पार्टी के तीनों घटक दलों का जनाधार काफी घटा है.
जर्मनी: विश्व युद्ध के बाद पहली बार राज्य विधानसभा में नंबर 1 आ सकती है धुर-दक्षिणपंथी पार्टी
अगले साल जर्मनी में आम चुनाव होने हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सरकार अपनी खोयी जमीन पाने की कोशिश कर रही है. इसकी सबसे तात्कालिक वजह ब्रांडनबुर्ग राज्य को माना जा रहा है, जहां 22 सितंबर को विधानसभा के लिए मतदान होना है. पोलिटप्रो के ताजा चुनावी सर्वेक्षणों में एएफडी को यहां 28 फीसदी मत मिलने का अनुमान है.
1990 से ही ब्रांडनबुर्ग की सत्ता में रही चांसलर शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) को 21.6 फीसदी वोट मिलने की संभावना है. पिछले 30 दिनों के भीतर यहां एएफडी के समर्थन में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ब्रांडनबुर्ग में यूक्रेन युद्ध और महंगाई के अलावा माइग्रेशन और सुरक्षा प्रमुख चुनावी मुद्दों में है. ब्रांडनबुर्ग में एसपीडी, सीडीयू और ग्रीन की गठबंधन सरकार सत्ता में बने रहने के लिए संघर्ष कर रही है.
जर्मनी: जोलिंगन हमले के बाद तेज हुई इमिग्रेशन विरोधी बहस
मार्कुस एंगलर, जर्मन सेंटर फॉर इंटिग्रेशन एंड माइग्रेशन रिसर्च में शोधकर्ता हैं. सीमा पर नियंत्रण बढ़ाने के शॉल्त्स सरकार के निर्णय की समीक्षा करते हुए उन्होंने रॉयटर्स से कहा, "सरकार की मंशा यह दिख रही है कि वह जर्मनों और संभावित प्रवासियों को सांकेतिक तौर पर यह दिखाना चाहती है कि प्रवासियों की अब यहां जरूरत नहीं है."
एसएम/सीके (रॉयटर्स, एपी, एएफपी, डीपीए)