बाबा राम दास का 88 साल की उम्र में निधन, जानिए एक डॉक्टर से संत बनने तक का उनका सफर
बाबा राम दास का 88 साल की उम्र में निधन हो गया है. आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त करने से पहले उन्होंने हार्वर्ड एकेडमिक साथी टिमोथी लेरी के साथ साइकेडेलिक दवाओं को 1960 बनाकर उस लोकप्रिय बनाया था. बाबा राम दास का असलीनाम डॉ. रिचर्ड एल्पर्ट था
बाबा राम दास (Baba Ram Dass) का 88 साल की उम्र में निधन हो गया है. आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त करने से पहले उन्होंने हार्वर्ड एकेडमिक साथी टिमोथी लेरी (Timothy Leary) के साथ साइकेडेलिक दवाओं (Psychedelic Drugs) को 1960 में बनाकर उसे लोकप्रिय बनाया था. रविवार को मौई (Maui) में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन की खबर उनके आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर दी गई है. बाबा राम दास का असलीनाम डॉ. रिचर्ड एल्पर्ट (Richard Alpert) था और वे पहली बार साल 1967 में भारत आए थे. भारत में वे हार्वर्ड के प्रमुख मनोवैज्ञानिक और साइकोडेलिक डॉ. टिमोथी लेरी के साथ आए थे. भारत की पावन धरा पर उन्हें आध्यात्म की प्रेरणा मिली और वे डॉक्टर से संत बनने की राह पर चल पड़े. चलिए जानते हैं एक डॉक्टर से संत बनने तक का उनका दिलचस्प सफर.
बताया जाता है कि साल 1967 में वे साइकेडेलिक शोध के लिए भारत आए थे, जहां उनकी मुलाकात आध्यात्मिक गुरु नीम करोली बाबा से हुई. डॉ. रिचर्ड को नीम करोली बाबा (महाराज जी) से आध्यात्म की राह पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली. महाराज जी ने ही डॉ. रिचर्ड एल्पर्ट को नया नाम (राम दास) दिया.
कौन थे डॉ. रिचर्ड एल्पर्ट?
बाबा राम दास का असली नाम डॉ. रिचर्ड एल्पर्ट था और उनका जन्म साल 1930 के आसपास बोस्टन, मैसाचुसेट्स में हुआ था. वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग में प्रोफेसर बन गए. करीब पांच साल के मनोविश्लेषण के बाद भी वे साल 1961 तक डिप्रेस, परेशान और चिंताग्रस्त रहते थे. मनोविज्ञान के बारे में उनकी समझ के कारण परिवार से उनका मोह भंग हो गया था और उन्हें अपने परिवार से खास लगाव नहीं था, लेकिन जब वे बाबा नीम करौली से मिले और उनसे आध्यात्म की प्रेरणा ली तो उनके जीवन में परिवर्तन आने लगा.
आध्यात्म की राह पर आते ही बदला पूरा जीवन
संत राम दास के आधिकारिक वेबसाइट www.ramdass.org पर उनकी बायोग्राफी दी गई है, जिसमें जिक्र किया गया है कि कैसे आध्यात्म की राह पर आते ही उनका पूरा जीवन बदल गया. आध्यात्म के पथ पर जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए उनकी सोच और जीवन में कई परिवर्तन आते गए. डॉक्टर से आध्यात्मिक संत के तौर पर पहचान मिलने के बाद उन्होंने तीन पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई. उन्होंने ऐसी यात्राएं की जो लाखों लोगों को बंधनों से मुक्त करने में मदद करती रही. अपने नाम की तरह वे ईश्वर के सेवक बनकर लोगों को राह दिखाते रहे.
साल 1968 के बाद आध्यात्म की राह पर चलते हुए वे भगवान हनुमान की भक्ति करने लगे. उनकी भक्ति के साथ-साथ वे प्राचीन ज्ञान परंपराओं को आध्यात्म के जरिए अपने भीतर समाते गए. इसके बाद विविध धर्मों के रहस्यमय अध्ययनों की दिशा में आगे बढ़े. साल 1974 में उन्होंने हनुमान फाउंडेशन बनाया, जिसका काम निस्वार्थ भाव से लोगों में सेवा भावना को बढ़ावा देना था.
डॉक्टर से संत बनने का सफर
साल 1961 में साइकोलॉजिस्ट के तौर पर उन्होंने साइकेडेलिक दवाओं पर शोध किया. शोध के दौरान वे psilocybin, LSD-25 और अन्य साइकेडेलिक केमिकल्स पर अध्ययन कर रहे थे. उनके साथ इस शोध में टिमोथी लेरी, राल्फ मेट्जनर, एल्डस हक्सले और एलेन गिन्सबर्ग जैसे मनोचिकित्सक भी शामिल थे. अपने शोध की विवादास्पद प्रकृति की वजह से रिचर्ड एल्पर्ट और टिमोथी लेरी व्यक्तित्वहीनता की स्थिति में पहुंच गए, जिसके कारण उन्हें साल 1963 में हार्वर्ड से निकाल दिया गया.
गौरतलब है कि साल 1967 में वे साइकेडेलिक शोध के लिए जब भारत आए तो यहां कि आध्यात्मिक मिट्टी से ही उन्हें आध्यात्म की राह पर चलने की प्रेरणा मिली और यहीं से उनके आध्यात्मिक सफर की शुरुआत हुई. इस तरह से डॉ. रिचर्ड एल्पर्ब बाबा राम दास बन गए.