जर्मनी में भारी विरोध के बावजूद पारित हुआ एंटीसेमिटिज्म प्रस्ताव
जर्मन संसद के निचले सदन ने यहूदी-विरोधी भावना से निपटने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है, जिस पर विवादास्पद बहस हो रही है.
जर्मन संसद के निचले सदन ने यहूदी-विरोधी भावना से निपटने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है, जिस पर विवादास्पद बहस हो रही है. आखिर क्या है एंटीसेमिटिज्म और भारी विरोध के बावजूद यह प्रस्ताव किस तरह पारित हुआ?बुंडेस्टाग, यानी जर्मन संसद के निचले सदन में अलग-अलग दलों के सांसदों के बहुमत से जर्मनी में यहूदी-विरोधी भावना, यानी एंटीसेमिटिज्म से निपटने के लिए एक विवादास्पद प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई. कानूनी मामलों के कई विशेषज्ञ, नागरिक अधिकार समूह और जाने-माने यहूदी बुद्धिजीवी इस प्रस्ताव के कुछ हिस्सों को लेकर कड़ा विरोध जता रहे थे.
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इस प्रस्ताव पर सहमति बनाने के लिए महीनों तक सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्ष के नेताओं के बीच बंद कमरे में बातचीत चली. यही वजह रही कि पक्ष और विपक्ष, दोनों तरफ के सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया.
7 अक्टूबर 2023 को इस्राएल पर हमास के आतंकी हमले के बाद जर्मनी में यहूदी विरोधी घटनाएं बढ़ने लगी थीं. इसी के बाद पहली बार यह प्रस्ताव पेश किया गया था. प्रस्ताव लाए जाने के बाद इसके कुछ हिस्सों को लेकर विवाद होने लगा. इस विवाद की मुख्य वजह यह है कि सरकार संस्कृति और विज्ञान से जुड़ी परियोजनाओं के लिए दिए जाने वाले फंड के लिए एक शर्त रखना चाहती है. शर्त यह है कि पब्लिक फंड पाने वाले इंटरनेशनल होलोकॉस्ट रिमेंबरेंस एलायंस (आईएचआरए) की परिभाषा के अनुसार तय नियमों का पालन करें.
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इस परिभाषा के तहत कहा गया है, "बुंडेस्टाग यह सुनिश्चित करने के अपने फैसले की पुष्टि करता है कि वह उन संगठनों या परियोजनाओं को वित्तीय सहायता नहीं देगा जो यहूदी विरोधी विचार फैलाते हैं, इस्राएल के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं, इस्राएल का बहिष्कार करते हैं या बीडीएस (बॉयकॉट, डिवेस्टमेंट, सैंक्शन) अभियान का समर्थन करते हैं."
इस प्रस्ताव पर मतदान से पहले 'एमनेस्टी इंटरनेशनल जर्मनी' ने कहा कि वह एंटीसेमिटिज्म और नस्लवाद से निपटने के साथ-साथ यहूदी लोगों के जीवन की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों का स्वागत करता है, लेकिन उसके विचार में यह प्रस्ताव "न केवल इस लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल है, बल्कि मौलिक मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन और कानूनी अनिश्चितता की आशंका भी पैदा करता है."
इस संगठन ने डीडब्ल्यू को बताया, "मानवाधिकार संगठनों, कला, संस्कृति और शिक्षा जगत से जुड़े कई लोग पहले से ही उलझे हुए हैं. वे मध्य-पूर्व में हो रहे संघर्ष में मानवाधिकारों के उल्लंघन, यहूदी-विरोधी, मुस्लिम-विरोधी नस्लवाद, इस्राएल और फलस्तीन से जुड़े विषयों पर सार्वजनिक रूप से बोलने या सड़कों पर उतरने से हिचक रहे हैं. उन्हें डर है कि अगर वे इन मुद्दों पर कुछ भी बोलते हैं, तो वे दमन का शिकार हो सकते हैं या उनपर किसी तरह का दबाव बनाया जा सकता है. ऐसे में इस तरह के प्रस्ताव से उनपर दबाव और अधिक बढ़ जाएगा. साथ ही, इससे अविश्वास और विभाजन की प्रवृत्ति को मजबूती मिलेगी."
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जर्मन समाचार पत्रिका 'डेर श्पीगल' ने बताया कि ग्रीन पार्टी के नौ संघीय कार्य समूहों ने पार्टी कार्यकारिणी को लिखे एक संयुक्त पत्र में प्रस्ताव के मसौदे को पहले ही खारिज कर दिया था. इस पत्र में उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव गलत है क्योंकि इसमें आईएचआरए की परिभाषा को अपनाने की बात कही गई है. इस समूह का कहना है कि इस परिभाषा का इस्तेमाल, "इस्राएल की सरकार की वैध आलोचना को यहूदी-विरोधी कहकर बदनाम करने के लिए" किया जा सकता है.
केवल पॉप्युलिस्ट पार्टी सारा वागेनक्नेष्ट अलायंस (बीएसडब्ल्यू) ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया. इस पार्टी ने 7 नवंबर को हुए मतदान में शामिल न होने का फैसला किया. सत्तारूढ़ एसपीडी की सांसद नीना शेअर ने भी मतदान से पहले प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि यह "अंतरराष्ट्रीय कानून के संभावित उल्लंघनों को नाम देने और उसका समाधान करने में बाधा डालता है और इस प्रकार संवैधानिक कानून का उल्लंघन करता है."
जर्मनी में यहूदियों की केंद्रीय परिषद ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. इस परिषद की स्थापना होलोकॉस्ट के बाद की गई थी. इसके संचालन के लिए सरकार की ओर से आर्थिक मदद दी जाती है. यह जर्मन यहूदियों और सरकार के बीच मध्यस्थ के रूप में काम करती है. साथ ही, जर्मनी में मौजूद कई यहूदी समूहों का प्रतिनिधि संगठन है.
इस परिषद के अध्यक्ष योजेफ शुस्टर ने पिछले हफ्ते कहा था, "यहूदी समुदाय की सुरक्षा के लिए अब नींव तैयार हो चुकी है, लेकिन इन उपायों को जल्दी और प्रभावी तरीके से लागू करने की जरूरत है."
प्रस्ताव पर बहस करने के लिए बुंडेस्टाग की बैठक से पहले ग्रीन पार्टी के सदस्यों ने एक बयान प्रकाशित किया. इसमें कहा गया कि वे बहुदलीय प्रस्ताव के खिलाफ वर्तमान में चलाए जा रहे अभियानों से 'स्तब्ध और काफी चिंतित' थे. जर्मन-इस्राएली सोसायटी एक क्रॉस-पार्टी लॉबी संगठन है, जो दोनों देशों के बीच के संबंधों को बढ़ावा देता है. इस संगठन ने भी प्रस्ताव को मंजूरी दी है.
प्रस्ताव को अव्यावहारिक मानते हैं कानूनी विशेषज्ञ
हैम्बर्ग स्थित माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर कंपेरेटिव एंड इंटरनेशनल प्राइवेट लॉ के निदेशक राल्फ मिषाएल्स कहते हैं, "कानूनी नजरिए से यह प्रस्ताव काफी निराशाजनक है. वकीलों ने पहले के मसौदों की कड़ी आलोचना की थी, क्योंकि वे संभवतः असंवैधानिक थे. इन आलोचनाओं के मद्देनजर यह देखकर हमें हैरानी हो रही है कि प्रस्ताव के फाइनल ड्राफ्ट में भी लगभग किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है."
मिषाएल्स उन कई विशेषज्ञों में से एक हैं जिन्होंने वैकल्पिक प्रस्ताव पेश किया है. उनके मुताबिक, प्रशासन के लिए ऐसी सभी परियोजनाओं का पहले से मूल्यांकन करना 'व्यावहारिक रूप से असंभव' है, जिसपर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा सकता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो किसी भी परियोजना के बारे में पहले से यह पता लगाना मुश्किल है कि वह आईएचआरए के तहत तय की गई शर्तों का पालन करेगा या नहीं. इस तरह का नियम संभवतः कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा.
मिषाएल्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "इन अधिकारों को संविधान में संरक्षित मानव गरिमा के आधार पर सीमित किया जा सकता है, लेकिन निश्चित रूप से इस्राएल विरोधी गतिविधियों की आईएचआरए की विवादास्पद परिभाषा के आधार पर नहीं, जिसे बुंडेस्टाग लागू करना चाहता है."
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मिषाएल्स कहते हैं कि मौजूदा प्रस्ताव के साथ एक और समस्या यह है कि यह बुंडेस्टाग द्वारा 2019 में पारित प्रस्ताव को बनाए रखता है. उस प्रस्ताव के मुताबिक, बीडीएस मूवमेंट को यहूदी-विरोधी माना जाता है. जबकि, हकीकत यह है कि बुंडेस्टाग की रिसर्च यूनिट ने 2019 के प्रस्ताव में शामिल की गई बातों को संविधान विरुद्ध माना है. साथ ही, कई अदालतों ने उन निष्कर्षों के आधार पर प्रशासनिक फैसलों को खारिज कर दिया है.
उन्होंने विस्तार से बताया, "यह प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, लेकिन 2019 के प्रस्ताव के अनुभव से पता चलता है कि यह प्रशासनिक दिशानिर्देश और सेल्फ-सेंसरशिप के तौर पर प्रभावी होगा. दूसरी ओर, कानूनी और व्यावहारिक बाधाओं को देखते हुए वादा किए गए कानून के लागू होने की संभावना बहुत कम है." पुलिस और आव्रजन अधिकारियों ने दमनकारी उपायों को लागू करने के लिए भी उस प्रस्ताव का सहारा लिया है.
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आईएचआरए परिभाषा विवादास्पद क्यों है?
कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और जर्मनी सहित 43 देशों ने आईएचआरए की परिभाषा को अपनाया या उसका समर्थन किया है. हालांकि, इसकी आलोचना भी व्यापक तौर पर की गई है, क्योंकि यह इस्राएल सरकार की आलोचना को यहूदी-विरोधी गतिविधि के साथ जोड़ता है.
इसमें यहूदी-विरोधी गतिविधियों के उदाहरण दिए गए हैं. जैसे, यहूदी लोगों को उनके खुद के निर्णय के अधिकार से वंचित करना. उदाहरण के लिए, यह दावा करना कि इस्राएल का अस्तित्व एक नस्लवादी प्रयास है. इस्राएल को दूसरे लोकतांत्रिक देशों से अलग मानक पर रखना और इस्राएल की मौजूदा नीतियों की तुलना नाजियों से करना.
दक्षिण कैरोलिना के चार्ल्सटन कॉलेज में यहूदी अध्ययन के एसोसिएट प्रोफेसर योशुआ शेन्स बताते हैं कि आईएचआरए की परिभाषा मूल रूप से यहूदी-विरोधी और नरसंहार के शोध को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी. परिभाषा के लेखकों के मूल इरादे के विपरीत, शेन्स का कहना है कि इस्राएल का समर्थन करने वाले कुछ लोगों ने आईएचआरए की परिभाषा को "हाइजैक" कर लिया. वे इस परिभाषा का इस्तेमाल, इस्राएल में यहूदी आधिपत्य की आलोचना को रोकने और उसकी रक्षा करने के लिए कर रहे हैं.
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "आपको इस्राएल की आलोचना करने की अनुमति सिर्फ तब है, जब आप इसे यहूदी सत्ता और यहूदी वर्चस्व की पुष्टि करने वाले तरीके से करते हैं, न की समानता की पुष्टि करने वाले तरीके से करते हैं. अगर आप समानता की मांग करने वाली किसी भी चीज को यहूदी-विरोधी कहना चाहते हैं, तो आपको आईएचआरए की मदद लेनी होगी. आईएचआरए आपको यह करने में मदद करेगा."
शेन्स के मुताबिक, कभी-कभी यहूदी-विरोधी भावनाएं इस्राएल-विरोधी भावनाओं के रूप में छिपाई जा सकती हैं. अगर हम यहूदी लोगों के बारे में कुछ नकारात्मक कहते हैं तो उसे यहूदी-विरोधी कहा जाता है. वहीं, अगर हम इस्राइल के बारे में कुछ नकारात्मक कहते हैं, तो उसे सामान्य बात माना जाता है.
शेन्स आगे कहते हैं, "मुझे लगता है कि वेस्ट बैंक में नस्लवाद जैसी स्थिति है. वेस्ट बैंक में इस्राइल द्वारा किए जा रहे उपायों को रंगभेद कहा जा सकता है, भले ही आप इससे सहमत न हों. हालांकि, किसी चीज को गलत कहना यहूदी-विरोधी नहीं है, लेकिन आईएचआरए की परिभाषा के कारण इस्राएल की आलोचना को यहूदी-विरोधी माना जाता है. इस तरह, इस्राएल की आलोचना करना और फलस्तीनियों के लिए समानता की मांग करना मुश्किल हो जाता है."
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं पर बहस
पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के हमले और उसके बाद इस्राएल द्वारा गाजा पर की गई जवाबी कार्रवाई के बाद जर्मनी में यहूदियों के जीवन पर पहले से ही चर्चा हो रही थी. इस प्रस्ताव के बाद यह विमर्श और तेज हो गई है. लोग बहस कर रहे हैं कि आखिर इन मुद्दों को लेकर अभिव्यक्ति की आजादी की क्या सीमा होनी चाहिए.
इस साल अगस्त में जर्मनी में रहने वाले करीब 150 यहूदी कलाकारों, लेखकों और विद्वानों के एक समूह ने इस प्रस्ताव पर 'गहरी चिंता' व्यक्त करते हुए खुला पत्र लिखा था. इसमें कहा गया था कि इस प्रस्ताव में 'जर्मनी में यहूदी लोगों की रक्षा' करने का दावा किया गया है, लेकिन "सभी यहूदियों को इस्राएल सरकार की गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है. इससे यहूदी-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा मिलेगा. यह पुराना यहूदी-विरोधी तरीका है."
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों में कलाकार कैंडिस ब्राइत्स, बारेनबोइम-जाइड एकेडमी के प्रोफेसर और वेस्ट-ईस्टर्न दीवान ऑर्केस्ट्रा के कंसर्टमास्टर मिषाएल बारेनबोइम, 'अनऑर्थोडॉक्स' और 'यूडेनफेटिश' नाम की किताबों के लेखक डेबोरा फेल्डमान और संगीतकार पीचेस निस्कर शामिल हैं.
इन्होंने लिखा कि जर्मनी में यहूदी-विरोधी अपराध ज्यादातर दक्षिणपंथी गुटों द्वारा किए जाते हैं, लेकिन इस प्रस्ताव में इस बात का जिक्र बहुत कम किया गया है. इसके बजाय, प्रस्ताव में विदेशियों और अल्पसंख्यकों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है, जो जर्मनी में यहूदियों के लिए सबसे बड़े खतरे से ध्यान हटाने का प्रयास है. यह साबित करता है कि जर्मनी अपने अतीत से पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है.
'यहूदियों की सुरक्षा इस प्रस्ताव का उद्देश्य नहीं है'
इस प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों से आने वाले लोगों के बीच यहूदी-विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं, जो आंशिक रूप से इस्लामिक और इस्राइल-विरोधी विचारधारा के कारण है. इस प्रस्ताव के अनुसार, यहूदी-विरोधी गतिविधियों के खिलाफ कानून बनाए जाएंगे और यह प्रवासन, शरणार्थी और नागरिकता के कानूनों पर भी लागू होगा. दूसरे शब्दों में कहें, तो अगर कोई व्यक्ति यहूदी-विरोधी गतिविधियों में शामिल पाया जाता है, तो उसे देश से निकाला भी जा सकता है.
मिषाएल बारेनबोइम ने डीडब्ल्यू को बताया, "यहूदियों की सुरक्षा इस प्रस्ताव का उद्देश्य नहीं है." वह आगे कहते हैं, "इस प्रस्ताव में लगातार इस्राएल का जिक्र किया गया है, जो मेरे विचार से दो उद्देश्यों को पूरा करता है. सबसे पहले तो यह जर्मनी में यहूदी-विरोधी भावना के लिए फलस्तीनियों और उनके समर्थकों को जिम्मेदार ठहराना चाहता है. इसके साथ ही वे सेंसरशिप, पुलिस के दबाव जैसी चीजों के सहारे इस्राएल की आलोचना करने वाले समूह की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरी बात, यह प्रस्ताव इस्राएल के अपराध में जर्मनी की मिलीभगत को सही ठहराने का प्रयास करता है जिसकी वजह से फलस्तीन के लोग दशकों से अमानवीय हालात में जी रहे हैं."
डीडब्ल्यू को दिए बयान में, कैंडिस ब्राइत्स ने कहा कि इस प्रस्ताव का मकसद यहूदियों के लिए स्वतंत्र देश के विचारकों की रक्षा और बचाव करना है, न कि यहूदी लोगों की. उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव 2019 के बीडीएस विरोधी प्रस्ताव की तरह है, जो यहूदी पहचान को इस्राएल की जातीय-राष्ट्रवादी नीतियों से जोड़ता है और यह एक खतरनाक विचारधारा है.
ब्राइत्स के बयान में कहा गया है, "यह मूलभूत अधिकारों, जैसे कि बोलने की आजादी, कलात्मक अभिव्यक्ति की आजादी, शैक्षणिक स्वतंत्रता और सभा आयोजित करने की स्वतंत्रता को कमजोर करता है. यह किसी देश की विचारधारा के प्रति वफादारी की शपथ लेने की अनिवार्यता की ओर ले जाता है, जो जर्मनी में पढ़ाई करने, सरकार से आर्थिक मदद प्राप्त करने, शरणार्थी या नागरिक बनने की शर्त बन जाती है. ऐसे समय में जब जातीय-राष्ट्रवादी विचारधारा जर्मन मतदाताओं के बीच लोकप्रिय हो रही है, यह प्रस्ताव जर्मनी में ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) और अन्य दक्षिणपंथी समूहों को मजबूत करता है."